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Sunday, April 11, 2010

एमपी पोस्ट ने कराइ चुनाव प्रक्रिया पर चर्चा

भोपाल। मध्यप्रदेश के पहले इंटरनेट समाचार पत्र एमपी पोस्ट द्वारा आज ३.३० बजे से स्वराज भवन में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा का मुख्य विषय सुचना प्रोधौगिकी चुनाव और राजनीति था। इसके आलावा एमपी पोस्ट मध्य प्रदेश में चुनाव प्रक्रिया का वृहद् परिदृश्य और राजनितिक अतीत पर एक डिजिटल दस्तावेज का विमोचन किया गया। इस मौके पर मुख्य वक्ता थे देश के जाने मने एक्सिट और ओपिनियन पोल, मीडिया विशेषग्य, चेअरमेन-सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के
डॉ न भास्कर राव
विशिष्ट वक्तव्य-
राज्यसभा सदस्य और भाजपा के प्रदेश उपाध्क्ष अनिल माधव दावे।
मध्य पदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता अरविन्द मालवीय।
इनके अलावा चुनाव प्रक्रिया को कवर करने वाले
पत्रकारों ने भई कार्यक्रम को संबोधित किया।
इनमें दैनिक भास्कर के स्टेट ब्यूरो चीफ श्री गणेश संकल्ले, स्टार न्यूज़ के विशेष संवाददाता श्री ब्रिजेश राजपूत, हिंदुस्तान टाइम्स के विशेष संवाददाता श्री रंजन श्रीवास्तव और इंडिया टुडे के प्रमुख संवाददाता अम्बरीश मिश्र शामिल थे।

Wednesday, February 17, 2010

टीवी न्यूज़ चैनल करेंगे IPL-3 का बॉयकाट



इंडियन प्रिमियर लीग के आयोजकों द्वारा टीवी चैनलों के लिए फुटेज की अवधि कम करने से इलेक्ट्रानिक मीडिया ने तीखी प्रतिक्रिया की है। चैनलों के संगठन न्यूज ब्रॉडकास्टर्स असोसिएशन ने आईपीएल-3 के मैचों का बहिष्कार करने का फैसला लिया है।
आईपीएल मैचों के आधिकारिक प्रसारक सेट मैक्स ने कवरेज को लेकर एनबीए की शर्तों को मानने से साफ इनकार कर दिया। इसका असर ये होगा कि अब आईपीएल के मैचों की फुटेज और उनका विश्लेषण टीवी न्यूज़ चैनलों पर नहीं दिखेगा।
टीवी फुटेज के मसले पर आईपीएल अध्यक्ष ललित मोदी ने चैनलों के किसी फोन कॉल का जवाब तो नहीं दिया पर सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर के ज़रिये कहा है, आईपीएल मैचों के सीधे प्रसारण का अधिकार सिर्फ सेट मेक्स के पास है। आईपीएल से जुड़ी खास खबरों के लिए दर्शक हमारी वेबसाइट IPLT20.com पर क्लिक कर प्राप्त कर सकते हैं।
आईपीएल के नवीन मीडिया नियमों के अनुसार हर न्यूज़ चैनल आईपीएल मैचों की फुटेज एक दिन में सिर्फ सात मिनट के लिए दिखा सकेगा। और ये फुटेज भी लाइव मैच से आधे घंटे बाद की होगी। साल 2008 में टीवी चैनल लाइव मैच से पांच मिनट बाद की फुटेज दिखा सकता था।

Monday, December 14, 2009

इंदौर प्रेस क्लब पत्रकारिता कम राजनीती का अड्डा ज्यादा


भोपालइंदौर प्रेस क्लब की पानी गरिमा कभी हुआ करती थी, लेकिन बीती कुछ वर्षों में ये अर्श से फर्श पर आ गई है। यहाँ पत्रकारिता सीखने अब कोई नही आता। हाँ पहले जरुर वे पत्रकार जो करियर की शुरुआत करते थे, यहाँ आया करते थे की शायद कोई वरिष्ठ पत्रकार मिल जाए जो एकाध स्टोरी बता देन या फ़िर कोई स्टोरी आईडिया बता दे। लेकिन अब ऐसानही होता क्योंकि प्रेस क्लब के सदस्य इन दिनों चुनाव में व्यस्त हैं। पुरी पोलखोल रहे हैं इंदौर के अग्नि ब्लास्ट के सम्पादक मुकेश ठाकुर।
पड़ें-प्रेस क्लब में भटकती पत्रकारिता की आत्मा

Saturday, December 05, 2009

युद्ध पत्रकारिता पर एक बेहतरीन पुस्तक

रक्षा विषयों और खासतौर पर रक्षा पत्रकारिता पर हिन्दी में, पुस्तकों का व्यापक अभाव है। आज हिन्दी के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का ही व्यापक विस्तार नहीं हुआ है। बल्कि प्रसार और पाठकों की दृष्टि से हिन्दी को व्यापक स्वीकार्यता व समर्थन मिला है। इस सबके बावजूद त्रासदी यह है कि विज्ञान और तकनीकी की पुस्तकों की तरह रक्षा विषयों पर हिन्दी में पुस्तकों के साथ ही दूसरी पठन-पाठन सामग्री अत्याधिक अल्प मात्रा में उपलब्ध है। ऐसे में छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी रायपुर द्वारा, प्रकाशित शिव अनुराग पटैरया की पुस्तक प्रतिरक्षा पत्रकारिता एक अच्छी पहल है। प्रतिरक्षा पत्रकारिता के क्षेत्र में अब तक शायद ही कोई पुस्तक हिन्दी में उपलब्ध हो। श्री पटैरया की पुस्तक इस कमी को पूरा ही नहीं करती है बल्कि प्रतिरक्षा पत्रकारिता के विद्यार्थियों के साथ ही दूसरे आम लोगों में रक्षा विषयों की समझ व सरोकार पैदा कर सकती है। प्रतिरक्षा पत्रकारिता की भूमिका में प्रसिद्ध पत्रकार और छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी के संचालक श्री रमेश नैयर ने लिखा है- प्रतिरक्षा रिपोर्टिंग हिन्दी पत्रकारिता की एक नई शाखा है, जो इधर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाती है। हिन्दी प्रतिरक्षा रिपोर्टिंग का इतिहास भले ही महाभारत काल से तलाश लिया जाए और महाभारत के महासमर का ऑखो देखा हाल बयान करने वाले संजय को प्रथम समर-संवाददाता बता दिया जाए, परंतु आधुनिक हिंदी पत्रकारिता में प्रतिरक्षा रिपोर्टिंग का क्षेत्र खाली-खाली सा दिखाई देता रहा है। सन् १९४७ के अंत में पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर किए गए आक्रमण की रिपोर्टिंग कुछ अंग्रेजी अखबारों और ऑल इंडिया रेडियो द्वारा सरकारी एजेंसियों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर की गई। पाकिस्तान द्वारा १९६५ में किए गए आक्रमण और दोनों देशों के बीच हुए युद्ध की रिपोर्टिग अंग्रेजी के साथ ही हिन्दी एवं अन्य भाषाई समाचार-पत्रों और समाचार एजेंसियों द्वारा कुछ विस्तार से की गई। फिर १९७१ में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और उसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान द्वारा पूरब और पश्चिम में एक साथ भारत के विरूद्ध मोर्चे खोल दिए जाने पर पहली बार भारतीय मीडिया ने समरक्षेत्र के बहुत निकट पहुंचकर घटनाक्रम की रिपोर्टिंग की। उस दौरान पत्रकारों ने कुछ जोखिम उठाकर युद्ध-क्षेत्र के जीवंत वृतांत प्रस्तुत किए। "धर्मयुग" के संपादक श्री धर्मवीर और साहित्य, पत्रकारिता एवं राजनीति में समान रूप से सक्रिय श्री विष्णुकांत शास्त्री ने बंगलादेश मुक्ति संग्राम का आंखो देखा जो विस्तृत विवरण सिलसलेवार प्रकाशित किया, वह हिंदी में परिपक्व "प्रतिरक्षा रिपोर्टिंग का उत्कृष्ठ उदाहरण था! परंतु तब भी भारतीय पत्रकारिता में प्रतिरक्षा रिपोटिंग की स्वतंत्र शाखा विकसित नहीं हो पाई थी। स्थितियां अब तेजी से बदल रही है। कारगिल युद्ध के बाद से भारतीय मीडिया में "प्रतिरक्षा रिपोर्टिंग" का महत्व समझा जाने लगा है। पत्रकार एवं संस्कृतिकर्मी श्रीमती शालीना चतुर्वेदी द्वारा संकलित जानकारी के अनुसार कारगिल युद्ध में मेजर पुरूषोत्तम चौबें ने दोहरी भूमिका निभाई थी। हथियारों से लैस वह युद्ध क्षेत्र में डटे ही थे, परंतु उसके साथ ही समर-रिपोर्टिंग का दायित्व भी वह समय-समय पर संभालते रहे। पत्रकार मित्रों की जान बचाते हुए ही मेजर चौबे ने शहादत दी थी। इसी प्रकार कर्नल जौली ने भी पत्रकारिता का विधिवत् प्रशिक्षण लिया मेरा ऐसे कुछ सेनाधिकारियों से परिचय रहा है, जो सेना से सेवानिवृत्ति लेकर पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हुए और प्रतिरक्षा विशेषज्ञ के रूप में नाम भी कमाया।२९ अध्यायों में बटी श्री पटैरया की पुस्तक में भारतीय महाद्वीप के संदर्भ में भारत की सुरक्षा चिंताओं को रेखांकित करते हुए, देश की सामरिक शक्ति तीनों सेनाओं थल, जल और नभ की न केवल सार्मथ्य की व्यवस्था की गई है, बल्कि अतीत में हुए रूद्धों का सिलसिलेवार विवरण भी दिया गया है। निश्चिततौर पर यह पुस्तक केवल प्रतिरक्षा पत्रकारिता के छात्रों के लिए उपयोगी होगी, बल्कि उन लोगों को भी पसंद आएगी, जो भारतीय उपमहाद्वीप के रक्षा संदर्भो को, अपनी भाषा में पढ़ना चाहते है।
sabhar-dakhal.net

Friday, December 04, 2009

गैस ट्रेजिडी पर भास्कर की अदभुत श्रधान्जली

भोपाल। दुनिया में कई काम अदभुत होते हैं कुछ नेक नियत के साथ तो कुछ ग़लत नियत के साथ। लेकिन दैनिक भास्कर ने गैस ट्रेजिडी पर जिस तरह से श्रधांजलि दी वह अदभुत है, न केवल मानवीयता के लिहाज से बल्कि पत्रकारिता में भी एक मिसाल है। शायद इसी लिए भास्कर सबसे अलग है। इसके पहले केवल नई दुनिया ने आपातकाल के समय पेज खाली देकर लोगों को सही मायने में आपातकाल का अहसास दिलाया था। इस भास्कर ने २ दिसंबर की कलि रात को हुए हादसे के लिए ३ दिसंबर के अख़बार के सभी पेज ब्लेक एंड व्हाइट रखे। ३ दिसंबर की सुबह जब लोगों ने अख़बार पड़ा तो उनको २५ साल पहले हुई घटना का अहसास हुआ। आम और खास ने उस रात को महसूस किया। इसके लिए भास्कर की टीम बधाई और साधुवाद की पात्र है। भास्कर ने ३ दिसंबर को जो कंटेंट लिया वहभी लाजवाब है। एक बानगी उस हादसे की भास्कर के द्वारा।

गैस ट्रेजिडी पर भास्कर बना नेट की दुनिया में चर्चा का विषय

गैस कांड में छा गए दैनिक भास्कर और इंडिया टीवी
भोपाल गैस त्रासदी को २५ बरस बीत गए हैं ! इन २५ सालों में मध्यप्रदेश में बहुत कुछ बदला हैं , नहीं बदला हैं तो सिर्फ गैस पीड़ितों का दुःख-दर्द इस दर्द और दुःख को इस बार खबरिया चैलनों और अख़बारों ने भरपूर जगह दी टेलीविजन चैनल्स पर इंडिया टीवी और स्टार न्यूज़ ने इसमें बाजी मरी तो अख़बारों में दैनिक भास्कर इसके कवरेज में टॉप पर बना रहा भोपाल के गैस पीड़ितों से जुड़े दुःख-दर्द को बड़े अख़बार और टेलीविजन भुला चुके थे लेकिन गैस त्रासदी के २५ साल पूरा होने पर टेलीविजन और अख़बार एक बार फिर सकारात्मक सक्रिय भूमिका में नज़र आए २५ सालों को याद कर दैनिक भास्कर, भोपाल में ब्लैक एंड व्हाइट छपा वहीँ वरिष्ट पत्रकार राजकुमार केशवानी के संपादन में गैस कांड पर एक दस्तावेज प्रकाशित किया गया हैं जिस कारण भास्कर एक बार फिर सिरमोर साबित हुआ हैं भास्कर के ऐसे प्रयोग उसे दूसरे अख़बारों से अलग बना देते हैं भोपाल गैस कांड की २५ वीं बरसी पर इस बार न्यूज़ चैनल भी पूरी तैयारी के साथ नज़र आए स्टार न्यूज़ और इंडिया टीवी ने इसमें बाजी मारी वहीँ सबसे आगे और सर्वक्षेष्ठ का दम भरने वाला आज तक इस मामलें में फिसड्डी साबित हुआ गैस पीड़ितों की आवाज बुलंद करने के लिए बने कार्यक्रम में इंडिया टीवी का "नरसंहार" इस तरह के कार्यक्रमों में सर्वक्षेष्ठ रहा दूसरे नंबर पर स्टार न्यूज़ का "टैंक नं। ६१०" रहा तीसरे नंबर पर एन डी टीवी के बेहतरीन कवरेज को माना जा सकता हैं स्टार न्यूज़ ने हांलाकि इस कार्यक्रम को बनाने के लिए अपने एक दर्जन लोगो को लगाया और भरपूर पैसा खर्च किया लेकिन इस सब के बावजूद वह उतना कैचिंग नहीं बना जितना इंडिया टीवी का "नरसंहार" भोपाल गैस त्रासदी पर बने कार्यक्रमों से एक बात फिर साफ़ हो गई कि विज्युअल , स्क्रिप्ट और कुल मिलाकर पैकेजिंग अच्छी हो तो दर्शक हर खबर देखता हैं स्टार न्यूज़ के ब्रजेश राजपूत और उनके एक दर्जन साथी "टैंक नं. ६१० को" लाव लश्कर के साथ तैयार कर रहे थे तो बाकी चैनल के रिपोर्टर अकेले अपनी कैमरा टीम के साथ लगे थे इंडिया टीवी के अनुराग उपाध्याय के "नरसंहार" और एन डी टीवी की रुबीना खान शापू के कवरेज को इस मामले पर एक मिसाल माना जा सकता हैं यह पहला मौका हैं जब चैनल और अख़बार एक साथ किसी एक जन त्रासदी से जुड़े मामले पर एक राय नज़र ही नहीं आए उन्होंने आम लोगो कि आवाज भी जमकर बुलंद की

साभार-दखल नेट

Friday, November 20, 2009

एक ही तो बोलता है, इसी की बोलती बंद कर दो.

भोपाल। मुंबई में ibn7 के ऑफिस पर हमला बोलकर शिवसैनिकों ने जाता दिया की वे अपने खिलाफ किसी को नही बोलने देंगे। फ़िर चाहे वह मीडिया ही क्यों न हो। ऐसा हो भी क्यों नही। जब सरकार और कानून खामोश रहेगा तो सिव्सैनिकों के होसलें तो बढेंगे ही। शिवसैनिक और राज ठाकरे के खिलाफ अब केवल न्यूज़ चेनल ही बोल रहे थे। इस हमले के बाद भी क्या होना है। सरकार आलोचना करेगी और चुप बेथ जायेगी लेकिन क्या आपको लगता है की शिवसैनिकों के हाथों से पिटने वाले चेनल के कर्मचारी अब बेखौफ होकर काम कर पाएंगे।
अन्य ब्लॉग द्वारा लिखी गई टिप्पड़ियाँ
शिव सैनिकों का आईबीएन7 आफिस में तांडव
अभी-अभी खबर मिली है कि शिव सेना के दर्जनों उत्पातियों ने मुंबई में हिंदी न्यूज चैनल 'आईबीएन7' और मराठी न्यूज चैनल 'आईबीएन लोकमत' के आफिस पर हमला बोल दिया है। आईबीएन नेटवर्क के इन दोनों चैनलों के मीडियाकर्मियों को शिव सैनिकों मारा-पीटा और कपड़े तक फाड़ डाले। आईबीएन आफिस के सामान और संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया। इन शिव सैनिकों ने आईबीएन के मीडियाकर्मियों को शिव सेना को लेकर निगेटिव रिपोर्टिंग न करने की चेतावनी दे डाली। बताया जा रहा है कि शिव सेना के इस तांडव से 'आईबीएन7' और 'आईबीएन लोकमत' के मुंबई आफिस का कामकाज कई घंटे ठह रहा। मीडिया के घर में घुसकर शिव सेना के लोगों द्वारा किए गए इस तांडव से मुंबई समेत पूरा देश स्तब्ध है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण ने शिव सेना के इस हमले की निंदा की है।
अभी तक उत्तर भारतीयों को मुंबई में निशाना बनाने वाली शिव सेना ने एक प्रमुख मीडिया संस्थान पर हमला कर संकेत दे दिया है कि वह अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है। चौथे स्तंभ को निशाना बनाना और निगेटिव रिपोर्टिंग न करने की चेतावनी देना स्पष्ट करता है कि शिव सेना खोई हुई सत्ता को हासिल करने के लिए और चुनावों में पराजय से पैदा हुई निराशा को खत्म करने के लिए एक बार फिर अपने फासीवादी एजेंडे पर चल पड़ी है। शिव सेना के राज और उद्धव, दो ठाकरे परिवारों में बंट जाने से दोनों के बीच अब होड़ सी लग गई है खुद को हिंदी विरोधी और महाराष्ट्र प्रेमी दिखाने की। इसी एजेंडे के तहत राज ठाकरे के लोगों ने हिंदी में शपथ लेने पर अबू आजमी को विधानसभा में थप्पड़ रसीद किया था। इस कृत्य की जब देश भर में आलोचना हुई। इसके बाद शिव सेना वालों ने सचिन को निशाने पर लेकर मराठी कार्ड खेला। शिव सेना के इस रवैए की इलेक्ट्रानिक मीडिया ने जमकर आलोचना की। लगता है, उसी का हिसाब करने के उद्देश्य से आईबीएन7 के मुंबई आफिस पर हमला किया गया। यह हमला किसी एक न्यूज चैनल के आफिस पर नहीं बल्कि पूरी मीडिया, खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया पर है।

अभी-अभी खबर मिली है कि शिव सेना के दर्जनों उत्पातियों ने मुंबई में हिंदी न्यूज चैनल 'आईबीएन7' और मराठी न्यूज चैनल 'आईबीएन लोकमत' के आफिस पर हमला बोल दिया है। आईबीएन नेटवर्क के इन दोनों चैनलों के मीडियाकर्मियों को शिव सैनिकों मारा-पीटा और कपड़े तक फाड़ डाले। आईबीएन आफिस के सामान और संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया। इन शिव सैनिकों ने आईबीएन के मीडियाकर्मियों को शिव सेना को लेकर निगेटिव रिपोर्टिंग न करने की चेतावनी दे डाली। बताया जा रहा है कि शिव सेना के इस तांडव से 'आईबीएन7' और 'आईबीएन लोकमत' के मुंबई आफिस का कामकाज कई घंटे ठह रहा। मीडिया के घर में घुसकर शिव सेना के लोगों द्वारा किए गए इस तांडव से मुंबई समेत पूरा देश स्तब्ध है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण ने शिव सेना के इस हमले की निंदा की है।
अभी तक उत्तर भारतीयों को मुंबई में निशाना बनाने वाली शिव सेना ने एक प्रमुख मीडिया संस्थान पर हमला कर संकेत दे दिया है कि वह अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है। चौथे स्तंभ को निशाना बनाना और निगेटिव रिपोर्टिंग न करने की चेतावनी देना स्पष्ट करता है कि शिव सेना खोई हुई सत्ता को हासिल करने के लिए और चुनावों में पराजय से पैदा हुई निराशा को खत्म करने के लिए एक बार फिर अपने फासीवादी एजेंडे पर चल पड़ी है। शिव सेना के राज और उद्धव, दो ठाकरे परिवारों में बंट जाने से दोनों के बीच अब होड़ सी लग गई है खुद को हिंदी विरोधी और महाराष्ट्र प्रेमी दिखाने की। इसी एजेंडे के तहत राज ठाकरे के लोगों ने हिंदी में शपथ लेने पर अबू आजमी को विधानसभा में थप्पड़ रसीद किया था। इस कृत्य की जब देश भर में आलोचना हुई। इसके बाद शिव सेना वालों ने सचिन को निशाने पर लेकर मराठी कार्ड खेला। शिव सेना के इस रवैए की इलेक्ट्रानिक मीडिया ने जमकर आलोचना की। लगता है, उसी का हिसाब करने के उद्देश्य से आईबीएन7 के मुंबई आफिस पर हमला किया गया। यह हमला किसी एक न्यूज चैनल के आफिस पर नहीं बल्कि पूरी मीडिया, खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया पर है।

मराठी न्यूज चैनल आईबीएन लोकमत के मुंबई आफिस में कार्यरत और घटना के समय मौजूद पत्रकार संदीप चह्वाण ने हमले के बारे में बताया कि हमलावर 'आईबीएन लोकमत' के एडिटर इन चीफ निखिल वागले को तलाशते-पूछते आफिस में घूम रहे थे। वे निखिल वागले को सबक सिखाने की बात कह रहे थे। उल्लेखनीय है कि बाल ठाकरे ने सचिन को लेकर जो टिप्पणी की थी, उसका जबर्दस्त प्रतिवाद निखिल वागले ने किया था। संदीप चह्वाण के मुताबिक हमलावरों के हाथ में लोहे के राड, बेसबाल बैट और क्रिकेट के विकेट थे। इस बीच, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण ने हमले की निंदा की और कहा कि हमलावरों को हर हाल में दंडित किया जाएगा। अशोक चह्वाण के मुताबिक उन लोगों को बिलकुल अंदाजा नहीं था कि ऐसा कुछ होने जा रहा है। इस हमले के पीछे जो लोग भी हैं, उन्हें सबक सिखाया जाएगा।
किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह पत्रकारों पर हमला करे। दुनिया जल्द ही देखेगी कि हम लोग क्या कार्यवाही करते हैं। महाराष्ट्र के गृह मंत्री पाटिल ने भी कहा है कि इस बार हमलावर किसी भी तरह बच नहीं पाएंगे। उन्हें कठोर से कठोर सजा दिलाई जाएगी ताकि आगे वे किसी मीडिया हाउस पर हमला करने की सोच भी न सकें। लोकसत्ता के संपादक कुमार केतकर ने कहा कि इस घटना की पूरी मीडिया इंडस्ट्री द्वारा निंदा की जानी चाहिए। महाराष्ट्र सरकार को ऐसी घटनाओं को न होने देने के लिए प्रयास करना होगा। यह बेहद गंभीर मामला है। इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस बीच, देश भर के मीडिया हाउसों ने शिव सैनिकों के इस हमले की कड़ी निंदा करनी शुरू कर दी है। मुंबई में पत्रकारों ने एकजुटता व्यक्त करते हुए ऐसे हमलों से न डरने और आगे भी शिव सेना को लेकर आलोचनात्मक रिपोर्टिंग करने का ऐलान कर दिया है।

पुणे में भी आईबीएन आफिस पर हुआ हमला
तस्वीरों से साफ है, मकसद मीडिया को आतंकित करना था : सिर्फ मुंबई में ही नहीं बल्कि पुणे में भी आबीएन के आफिस पर शिव सैनिकों ने हमला किया। दोनों जगहों पर एक साथ हमले से पता चल रहा है कि शिव सैनिकों ने हमले के लिए पूरी तैयारी की थी। वीडियो और तस्वीरों को देखने से साफ पता चलता है कि शिव सैनिक मीडिया को आतंकित करने के मकसद से यह हमला किया है। पत्रकारों के कपड़े फाड़ना, उन्हें पीटना, कंप्यूटर व अन्य सामान तोड़ना यह बताता है कि वे मीडिया को यह संकेत देना चाहते थे कि मीडिया भी शिव सेना की पहुंच से दूर नहीं है और अगर निगेटिव रिपोर्टिंग की गई तो परिणाम भुगतना पड़ेगा। मीडिया पर शिव सैनिकों के इस सुनियोजित हमले के खिलाफ पूरे देश में आक्रोश की लहर है।
हर दल के नेता शिव सैनिकों के इस कुकृत्य के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। मीडिया का मुंह बंद करने के लिए हमला करने जैसी वीभत्स कार्रवाई को राजनीतिक पतन का चरम माना जा रहा है। खबर है कि फिलहाल 7 लोगों को मुंबई पुलिस ने हमले के आरोप में गिरफ्तार किया है। मीडिया के लोग सिर्फ गिरफ्तारी से संतुष्ट नहीं है।
सीएनएन आईबीएन के एडिटर इन चीफ और वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने मांग की है कि इस बार हमले के पीछे जो बड़े नेता हैं, उनको गिरफ्तार किया जाना चाहिए और दंडित करना चाहिए। सिर्फ गिरफ्तारी से काम नहीं चलेगा। पहले भी मीडिया पर हमले के मामले में लोग गिरफ्तार हुए और जमानत पर छूट कर बाहर आ गए।

सभी तीन टिप्पड़ी bhadas4media से साभार

Thursday, November 19, 2009

जमीन के लिए संघर्ष जारी

भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी में जमीन के लिए पत्रकारों में संघर्ष जारी है। दरअसल मामला अब जमीन का नही बल्कि अपनी हैसियत दिखने का बन गया है। जमीन के मामले में भोपाल से संचालित होने वाली वेबसाईट दखल लगातार खुलासे कर रही है। आई ४ मीडिया उन सभी आर्टिकल को अपने पेज पर प्रकाशित कर इस अभियान में सहयोग दे रही है।
सरकारी जमीन की बन्दरबाँट करने वाले पत्रकारों में घमासान
शैफाली गुप्ता राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी संस्था के चुनाव के बाद सेन्ट्रल प्रेस क्लब के पैनल में घमासान मचा हुआ हैं संस्था के अब तक अध्यक्ष रहे रामभुवन सिंह कुशवाह यह पद छोड़ना नहीं चाहते जबकि प्रेस क्लब के लोग कुशवाह को बहार का रास्ता दिखाना चाहते हैं यही वजह हैं कि अध्यक्ष को लेकर हुई पहली बैठक में कुल जमा १० लोग मिलकर आमराय से अध्यक्ष का नाम तय नहीं कर पाए भोपाल राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी संस्था के चुनाव के बाद माना जा रहा था कि सब कुछ ठीक-ठाक हो जायेगा , लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा , आपसी मनमुटाव के चलते संस्था के संचालकों कि पहली बैठक से परिवर्तन पैनल के एक मात्र सदस्य सुरेश शर्मा को इसमें नहीं बुलाया गया वही सेन्ट्रल प्रेस क्लब के १० सदस्य मिल कर संस्था का नया अध्यक्ष तय नहीं कर पाए खबर हैं कि संस्था के अब तक अध्यक्ष रामभुवन कुशवाह इस पद को छोड़ना नहीं चाहते हैं वही संस्था के पाँच संचालक कुशवाह के खिलाफ हैं वह उनको हटा के उनके कार्यकाल कि जाँच करवाना चाहते हैं संस्था और प्रेस क्लब के अधिकांश लोग कुशवाह से नाराज हैं और उन्हें उपाध्यक्ष तक बनाना नहीं चाहते हैं पहली बैठक में ही जब इस मामले पर आम राय नहीं बनी तो अध्यक्ष और उपाध्यक्ष कौन बनेगा , इसका जिम्मा यूएन आई के अरुण कुमार भंडारी और हिंदुस्तान टाइम्स के एन के सिंह को सौंपा गया हालाँकि यह दोनों भी खुद अध्यक्ष बनने के लिए खासे लालायित नज़र आ रहे हैं वर्ना भंडारी को दिल्ली तबादले के बाद यहाँ आकर छोटा सा चुनाव नहीं लड़ना पड़ता और एन के सिंह को भी अपनी गरिमा के विपरीत जाकर अपने पुत्रों की आयु के लोगो से दो-दो हाथ नहीं करना पड़ते वहीँ खबर हैं कि संस्था के तमाम श्रमजीवी पत्रकारों ने संचालक मंडल के वह शपथ पत्र मांगे हैं ,जो उन्होंने जमीन कब्जाने के लिए दिए हैं , पत्रकारों का मानना है कि अधिकांश लोगों ने झूटे शपथ पत्र दिए हैं इस बीच संस्था की एक सदस्य श्रुति अनुराग की संचालक मंडल को लिखी चिठ्ठी से हडकंप मच गया हैं , इस चिठ्ठी से संचालक मंडल के सदस्य बगले झाँकने को मजबूर हो गए हैं इस चिठ्ठी में इनके आलीशान मकानों की पोल खुल गई हैं और यह सवाल खड़ा हो गया हैं कि जब इनके पास पहले से मकान और कोठियां हैं तो इन्हें गरीब पत्रकारों को दी जाने वाली रियायत दर कि जमीन कि जरुरत क्या हैं
लेखक दखल का संचालन कर रही शेफाली हैं।

Monday, November 16, 2009

असली पत्रकार कौन वह जो जुगाड़ कर जमीन हासिल कर सके

भोपाल। राजधानी में भूमाफिया का मायना बदलता जा रहा है। अब तक केवल बिल्डर और उद्योग पति ही भूमाफिया बन्ने का हक़ रखते थे या फ़िर वही बनते थे। लेकिन अब ऐसा नही रहा। इस मामले पत्रकार काफी आगे निकलते जा रहे हैं। जब मामला जमीं का है तो फ़िर टकराव तय है। बस इसी मुद्दे को खंगाला है इंडिया टीवी के अनुराग उपाध्याय ने।
अनुराग उपाध्याय तुम आसमा की बुलंदियों से जल्द लौट आना,
हमें दो जमीन के मसाले पर बात करना हैं
यह शेर यूँ ही याद नहीं आया, भोपाल में गरीब पत्रकारों को मिलने वाली जमीन हड़पने की बात आई तो तमाम सारे वे नकचढ़े लोग जमीन पर आ गए हैं जो हमेश आसमान में रहा करते थे। एकदम ज़मीन के लिए वैसे ही टूट पड़े हैं जैसे गिद्ध या चील लाश पर टूट पड़ते हैं। जब-जब नियत में खोट हो तो ऐसी उलटबांसी देखने को मिल जाती हैं। भोपाल में राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी संस्था में इस समय घमासान मचा हुआ हैं। यहाँ कुछ प्रेस मालिक, सम्पादक सरकारी अधिकारी और कुछ बड़े पत्रकार एकदम जमीनखोर हो गए हैं। एक-एक प्लाट के लिए मारामारी मची हुई हैं। संस्था के अध्यक्ष रामभुवन सिंह कुशवाह ने प्लाट ले लिया। अपने पत्रकार बेटे अनिल सिंह कुशवाह को प्लॉट दिलवा दिया और अपने दूसरे बेटे विजय सिंह को प्लॉट दिलवाने के लिए उसके पिता की जगह शिवराज के डंपर कांड से प्रेरणा लेकर आर।बी।सिंह लिख दिया।आपको याद होगा डंपर कांड में शिवराज की जगह एस,आर,सिंह लिखा गया था यह हैं जमाने को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वालो की सच्चाई। अपने ही गरीब गुरबे साथियों के हक़ पर कुछ लोग कुंडलिया मार के बैठ गए हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सालो से सरकारी मकानों में कब्जा जमाये पत्रकारों और गरीब श्रमजीवी पत्रकारों के लिए सस्ते में ज़मीन देने की पहल की। पहले अभिव्यक्ति गृह निर्माण सहकारी समिति में लगभग सौ पत्रकारों को जमीन दी गई, उसके बाद राजधानी पत्रकार ने काम शुरू किया। इस संस्था का शुरू में काम तो ठीक चला लेकिन बाद में इसमें जमीन माफिया ने पत्रकार के रूप में प्रवेश कर लिया। एकदम परकाया प्रवेश की तरह। राम नाम की लूट मच गई। अध्यक्ष ने अपने बेटो को प्लॉट दे दिए, कई सरकारी अफसर और उनके नातेदार पत्रकारों के भेष में नजर आने लगे। हालात इतने बिगड़ गए कि संस्था के चुनाव में घमासान मच गया। शिकायत मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव राजस्व और लोकायुक्त तक पहुँच गई। उम्मीद की जाना चाहिए कि जांच में दूध का दूध होगा और गरीब पत्रकार और ज़मीन माफिया पत्रकार के बीच की जंग निर्णायक साबित हो जाएगी।शलभ भदौरिया, मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष हैं। वह कहते हैं पहले पत्रकार कालोनी में गड़बड़ हुई थी, तब देवेन्द्र खरे जैसे पत्रकार को जेल जाना पड़ा था। अब जो कुछ राजधानी पत्रकार सहकारी समिति में चल रहा हैं इसमें भी जो गड़बडिया हुई हैं उसके चलते यहाँ भी कई लोग जेल जायेंगे। शलभ भदौरिया कहते हैं 1996 में हमने सरकार से कहा था पत्रकारों को सरकारी माकन में रहने का शौक नहीं हैं, श्रमजीवी पत्रकारों को सस्ते में जमीन दी जाए। अब जमीन दी गई तो श्रमजीवी पत्रकारों की जगह अखबार मालिक, सम्पादक, कुछ जमीन चाहने वाले अधिकारी इसमें घुस गए। सारे रैकेटियर लोगो का जमावड़ा हो गया हैं। ज़मीन की बंदरबांट हो गई हैं।पूरे मसले में शलभ भदौरिया एक-एक आदमी के शपथ-पत्र की जांच करवाने की मांग कर रहे हैं ताकि गरीब श्रमजीवी पत्रकारों को उनका हक़ मिल सके।राजधानी पत्रकार गृह निर्माण समिति में मचे घमसान का सूत्रधार दैनिक छत्तीसगढ़ के ब्यूरो चीफ अतुल पुरोहित और स्वदेश के डॉ. नवीन जोशी को माना जा रहा हैं। अतुल पुरोहित कहते हैं-"यह लड़ाई बहुत आगे तक जायेगी। अध्यक्ष ने खुद प्लॉट लिया बेटो को दे दिया, भाई, भतीजे, बेटा, बेटी, पत्नी, अखबार मालिक, बिल्डर क्या इनके लिए सरकार ने जमीन दी हैं? पत्रकारों की जमीन मूल पत्रकार छोड़ सबको बाँट दी गई हैं।" स्वदेश के डॉ. नवीन जोशी कहते हैं-"क्या गड़बड़ी नहीं हुई, असल पत्रकारों के साथ नाइंसाफी हो रही हैं। ऐसे नाम हैं जिनका पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं हैं। दीपा ज्ञानचंदानी, राजकुमारी चौटरानी, दैनिक नई दुनिया के चारो मालिको को जमीन दी जा रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार एन.के.सिंह दूसरी पत्रकार कालोनी में जमीन ले चुके हैं। उनको, उनके बेटे राहुल सिंह को जमीन दी जा रही हैं। ऐसे लोगो के शपथ पत्रों की जांच हो और असल पत्रकारों को जमीन दी जाए। जमीन से जुड़े पत्रकार सीताराम ठाकुर कहते हैं-"वास्तविक पत्रकारों को उनका हक़ मिले और राजधानी पत्रकार में फर्जीवाडे के दोषी सामने आये। मैं कलेक्टर, मुख्य सचिव राजस्व से पूरे घोटाले की जांच की मांग कर रहा हूँ।"राजधानी पत्रकार गृहनिर्माण सहकारी संस्था खड़ी करने वाले सेन्ट्रल प्रेस क्लब के वरिष्ठ पत्रकार विजय दास कहते हैं-"कोई संस्था सौ प्रतिशत सही काम नहीं करती। जिन गड़बडियों की बात की जा रही हैं उसे ठीक किया जाएगा। अच्छा हैं इलेक्शन हो रहे हैं, कई सोसायटियों में तो 12 सालो से चुनाव तक नहीं हुए हैं। हम तो यही चाहते हैं मनमुटाव न हो, जो पात्र हैं उन्हें ही ज़मीन दिलाई जायेगी। हमारा सेन्ट्रल प्रेस क्लब का पैनल मैदान में हैं।"इस मामले में कलेक्टर से लेकर मुख्यमंत्री और लोकायुक्त तक शिकायते की गई हैं और कहा गया हैं कि सहकारिता कानूनों की धज्जिया कैसे उड़ती हैं। यह देखना हैं तो राजधानी पत्रकार गृह निर्माण समित के कारनामे देख ले। इस शिकायत में कहा गया हैं कि माध्यम दर्जे के असल पत्रकारों को दी जाने वाली जमीन हड़पने के लिए सौ से ज्यादा लोगो ने झूठे शपथ-पत्र दिए हैं। यहाँ गरीब पत्रकारों के प्लॉट नवभारत के मालिक सुमित महेश्वरी, संध्या प्रकाश के मालिक भरत पटेल, स्वदेश के मालिक राजेंद्र शर्मा, अक्षत शर्मा, देशबंधु के मालिक पलाश सुरजन दैनिक नई दुनिया के मालिक राजेंद्र तिवारी, सुरेन्द्र तिवारी, उनके बेटे अपूर्व तिवारी और विश्वास तिवारी हैं।ई एम एस के मालिक सतन जैन, उनके बेटे सौरभ जैन और प्रदेश टाइम्स के अजय हीरो ज्ञानचंदानी को दिए जा रहे हैं। इन लोगो को श्रमजीवी पत्रकार कैसे माना जा सकता हैं। इन लोगो के कारोबारों और संपत्तियों की जांच की मांग मुख्यमंत्री से की गई हैं।वही मुख्यमंत्री और लोकायुक्त को की गई एक अन्य शिकायत में कहा गया हैं कि मुख्यमंत्री निवास पर तैनात तीन अधिकारी भी पत्रकारों की जमीन हड़पना चाहते हैं। इन्हें दी गई सूची में कहा गया हैं कि आला दर्जे के सरकारी अफसरान कैसे राजधानी पत्रकार गृह निर्माण समिति में घुस गए इसकी जांच बेहद जरुरी हैं क्योंकि राजधानी पत्रकार गृह निर्माण के नाम पर कोई भू-माफिया सोची समझी साजिश के तहत पत्रकरों को उनके हक़ से महरूम कर रहा हैं। इन अधिकारियो की चल-अचल संपत्ति की जांच की मांग के साथ इनकी सूची और इनकी जमीन मकानों की जानकारी भी दी गई हैं। यह अधिकारी हैं- पुष्पेन्द्र शास्त्री,प्रकाश दीक्षित ,डॉ कमर अली शाह, आशिक मनवानी , उमा भार्गव , आर. एम. पी. सिंह, रोहित मेहता, शांता/प्रतिश पाठक, आस्था/लाजपत आहूजा, शोभा साकल्ले , रवि उपाध्याय, असीम/ताहिर अली, हर्षा/रामू मारोड़े, अर्चना/सुरेश गुप्ता, श्वेता/रविन्द्र पंड्या, अंजना, वनिता श्रीवास्तव IAS की पत्नी , अनिल खन्ना एस बी आई अधिकारी रिटायर्ड जमीन के लिए मची धामा चौकड़ी में सब अपने-अपने हित साधने में लगे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जब राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी समिति को जमीन देने को कहा था तो यह स्पष्ट कर दिया था कि इसमें लगभग 40 कैमरामैन को प्लॉट दिए जाए लेकिन हुआ इसका उल्टा। इनकी जगह भर लिया गया अखबार मालिको और सरकारी अफसरों को। इसी बात को लेकर पत्रकारिता से सम्बन्ध और असंबंध लोगो के बीच भिडंत हो गई और राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी संस्था एक अखाड़े में तब्दील हो गई। सहकारिता से जुड़े लोग कहते हैं कि अगर इस मामले ने तूल पकड़ा तो कई सरकारी अफसरों को लानत का शिकार बनना पड़ेगा और कई लोग सीखचों में भी नजर आ सकते हैं। जाहिर हैं जमीन हमेशा झगड़े की जड़ बनी हैं तो इस बार भी...! लेकिन मामला असली और नकली पत्रकारों का हैं तो बात बहुत दूर तक जाएगी।

क्या भूमाफिया पत्रकारों के खिलाफ भी कार्रवाई करेंगे शिवराज

भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल इन दिनों झीलों के साथ भूमि घोटालों के लिए भी जानी जा रही है। हाल ही ग्रह निर्माण समितियों को लेकर कई तरह की बातें सामने आई हैं। इनमे से बड़े पत्रकारों द्वारा छोटे प्र्त्रकारों के हक़ पर कब्ज़ा करनी की बात भावी पत्रकारों के लिए ठीक नही है। अलग-अलग वेबसाइट पर इसको लेकर काफी कुछ लिखा गया है। उन सभी को आई ४ मीडिया में साभार प्रकाशित किया जा रहा है।
भोपाल में भूखण्ड घोटाले को लेकर चर्चा में आयी राजधानी गृह निर्माण समिति के संचालक मंडल के चुनाव भोपाल स्थित होटल पलाश मे संपन्न हो गए। चुनाव में पुरानी पैनल की रणनीति खूब काम आयी और उसके 11 में से 10 संचालक विजयी घोषित हुए। परिवर्तन पैनल को एक संचालक से संतोष करना पड़ा। मतदान स्थल पर सवेरे से ही इस बात की चर्चा थी कि सेन्ट्रल प्रेस क्लब पैनल ही चुनाव में सफल होगा।
कारण साफ़ था, वो ये कि समिति में जो 226 सदस्य हैं उनमें सें अधिकतर समिति के पुराने पदाधिकारियों की कृपा से सदस्यता प्राप्त कर सके हैं और उन्हीं के कारण उन्हें कौड़ियों के मोल प्लॉट मिले हैं। यही कारण रहा कि समिति के सदस्यों ने पुराने पैनल पर भरोसा किया। समिति के नव निर्वाचित सदस्यों में रामभुवनसिंह कुशवाह, विजय दास, अरूण भण्डारी, अक्षत शर्मा, केडी शर्मा, एनके सिंह, वीरेंद्र सिन्हा सेन्ट्रल प्रेस क्लब पैनल से और सुरेश शर्मा परिवर्तन पैनल से निर्वाचित हुए। अन्य पिछड़ा वर्ग से इंद्रजीत मौर्य निर्वाचित घोषित हुए। महिला वर्ग के आरक्षित दो पदों पर सुचंदना गुप्ता और कौशल वर्मा पहले ही निर्विरोध निर्वाचित हो चुकी थीं।
भोपाल से अरशद अली खान की रिपोर्ट
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भोपाल की पत्रकार श्रुति अनुराग ने राजधानी पत्रकार गृह निर्माण समिति के संचालक मंडल को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने अपने नाम एलाट जमीन को प्रतीक्षा सूची में पड़े किसी सबसे गरीब पत्रकार को देने की बात कही है, साथ ही संचालक मंडल के सदस्यों पास पहले से मौजूद जमीन-मकानों का उल्लेख करते हुए फिर से प्लाट लिए जाने पर आपत्ति जताई है। श्रुति ने उनसे ये प्लाट गरीब पत्रकारों को देने की भी अपील की है। पूरा पत्र इस प्रकार है-
प्रति,
संचालक मंडल
राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी समिति
भोपाल
महोदय,
राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी समिति में भोपाल के निम्न आय और मध्यम आय के श्रमजीवी पत्रकारों की अनदेखी कर उसमें आप लोगों ने जिस तरह बेटे-बेटियों, पत्नियों, भतीजों, भूमाफियाओं, अपने सरकारी अधिकारी मित्रों को भूखंड देने की कोशिश की है, वह 'काबिल-ए-तारीफ' है। यही वजह है कि हमारी संस्था के असल श्रमजीवी पत्रकार आपके विरोध में खड़े हो गए। संस्था के चुनाव में भले ही टेक्नीकली आपके पैनल के लोग जीत गए हों, लेकिन लोगों ने आपको किस डर से वोट दिये, ये आप भी जानते हैं। आपके सहयोगी साथी आपके खिलाफ खड़े हुये, यह आपकी सबसे बड़ी हार है। मुझे उम्मीद है आप अपनी गलती से सबक लेकर इस पत्रकारों की संस्था से फर्जी और गैर पत्रकारों को बाहर करने का साहस दिखायेंगे। हालांकि इसकी उम्मीद कम ही है।
वैसे भी आपमें से कुछ मेरे पिता तुल्य हैं, इसलिये मैं आपका बहुत सम्मान करती हूं और पूरे सम्मान के साथ मैं आपसे दो निवेदन करना चाहती हूं। एक तो मैं अपने आर्थिक पक्ष और कुछ आप लोगों के दोहरे मापदंड के कारण संस्था में जमीन नहीं ले सकती, अतः मेरे हिस्से का भूंखंड उस सबसे गरीब साथी को आवंटित करें जिसे आपने प्रतीक्षा सूची में डाल कर बेवकूफ बना रखा हो।
मेरा दूसरा निवेदन है कि आप में से एक अरूण कुमार भंडारी जी जिनका पंचवटी कालोनी में इतना आलीशान मकान है जैसा श्रमजीवी पत्रकार स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकते। एन.के. सिंह जी जिनका भव्य बंगला रियायती दर की पत्रकार कालोनी में लिंक रोड नंबर-३ पर बना है, विजय दासजी का आलीशान करोड़ों का बंगला अरेरा कालोनी में है, वीरेन्द्र सिंहजी का चूना भट्टी में भव्य भवन है हमारी महिला साथी सुचांदना गुप्ता का भव्यतम मकान शहर की सबसे प्राइम लोकेशन रिवेरा में है जहाँ रहने की कल्पना भी भोपाल के पत्रकार नहीं कर सकते हैं। यह आप लोगों की वह संपदा है जो आपके पास नजर आती है, इसके अलावा पुश्तैनी और स्वयं के बूते कमाई संपत्ति भी होना लाजमी है, ऐसे में मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप लोगों को और जमीन की क्या आवश्यकता है अतः आप साथियों के बीच एक मिसाल पेश कर अपने अहम और जमीन की बंदरबांट की इस लड़ाई को बंद कर अपने-अपने प्लाट उन साथियों को देने का मार्ग प्रशस्त करें जो अरसे से यहाँ वहाँ किराये के मकानों में धक्के खा रहे हैं। आप लोग बड़े हैं, आप लोगों के पास इतनी जमीनें और मकान पहले से ही है फिर एक छोटे से भूखंड की क्या बिसात। यकीनन आप ऐसा करेंगे तो आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा। आपकी शान में हम जैसे लोग कसीदे करते जरूर नजर आऐंगे। आपके इस प्रयास से कई छोटे पत्रकार साथियों की जिन्दगी संवर जाएगी।
मुझे उम्मीद है जमीन और साथियों में से आप साथियों को चुनना पसंद करेंगे क्योंकि जब भी आप यहां से विदा होंगे तो जमीन तो आपका साथ नहीं देगी, मित्रों का प्यार हमेशा आपके साथ रहेगा।
आपकी
श्रुति अनुराग , भोपाल
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भोपाल के रामभुवन सिंह कुशवाह, एके भंडारी, सुरेश शर्मा, राजेंद्र तिवारी, राजेंद्र शर्मा जैसे पत्रकारों-मालिकों ने जेनुइन पत्रकारों का हक मारा : भोपाल स्थित 'राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी समिति' के पदाधिकरियों ने पत्रकारों के लिए सस्ते दर पर सरकार से मिली भूमि को आपस में बांटकर आवासहीन पत्रकारों के अधिकारों पर न केवल अतिक्रमण किया है बल्कि शासन की आंखों मे धूल झोंककर धोखाधड़ी भी की है। जरूरतमंद पत्रकार आज भी घर की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाते फिर रहे हैं। घर का सपना दिखाते हुए पत्रकारों की भीड़ जुटाकर राजनीति करने वालों ने एक साथ चार-चार भूखण्ड जुगाड़ लिये। इस घटना से ये भी साफ हो गया है कि मध्य प्रदेश की पत्रकारिता में धंधेबाजों का कितना दख़ल है और वे किस तरह पत्रकारिता की आड़ में धीरे-धीरे भू-माफि़या बनते जा रहे हैं। इन कथित पत्रकारों की करतूत के कारण ही समाज में पत्रकारों की इज्जत नहीं बची है। आइए, समिति के पदाधिकारियों के बारे में एक-एक कर बात करते हैं-
सबसे पहले बात करते हैं समिति के अध्यक्ष रामभुवन सिंह कुशवाह की। उन्होंने एक भूखण्ड अपने और तीन भूखण्ड अपने पुत्रों के नाम कर लिए। शातिरपन देखिए कि पत्रकारों के सामने नंगे होने से बचने के लिए अपने पुत्र विजय सिंह के पिता के नाम की जगह अपना पूरा नाम लिखने की बजाट शार्ट नाम आरबी सिंह लिख दिया ताकि कोई ये न समझे कि यह रामभुवन सिंह कुशवाह का पुत्र है।
इसी प्रकार समाचार एजेंसी के एक पत्रकार एके भंडारी ने एयरपोर्ट रोड पर स्थित पंचवटी में लाखों रुपये का आलीशान बंगला होते हुए भी भूखण्ड ले लिया। सहकारिता के नियमानुसार भूखण्ड प्राप्त करने से पूर्व समिति के सदस्य को एक शपथ पत्र देना होता है जिसमें इस बात की कसम खाई जाती है कि शपथकर्ता के पास कोई मकान नहीं है। जाहिर है कि भंडारी ने प्लाट के लालच में झूठा शपथ पत्र प्रस्तुत किया है।
इसी कड़ी में शामिल हैं सुरेश शर्मा। इनके अखबार के नाम पर सरकार ने करोड़ों रुपये की जमीन आवंटित की थी लेकिन धन के लालच में इन्होंने जमीन के साथ अख़बार भी बेच दिया। सुरेश शर्मा के पास पहले से निजी मकान है। उसके बाद भी सरकारी मकान के मज़े ले रहे हैं। प्लाट जुगाड़ा सो अलग। भगवान जाने इनकी इच्छापूर्ति कब होगी।
राजेंद्र तिवारी दैनिक अख़बार के मालिक हैं। इन्होंने एक भूखंड अपने, एक अपने भाई सुरेंद्र तिवारी और एक अपने भतीजे विश्वास तिवारी के नाम बुक करा लिया।
एक अन्य दैनिक के मालिक हैं राजेंद्र शर्मा। शर्मा जी ने भी एक अपने और अपने पुत्र अक्षत शर्मा के नाम भूखण्ड लिया। मनीष शर्मा दिल्ली के एक अखबार का काम देखते हैं। इनके पास भी सिर छुपाने के लिए अच्छी खासी छत है।
समाज को दिशा देने का दम भरने वाले इन पत्रकारों से क्या पत्रकारों के हित की उम्मीद की जा सकती है? अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों के विरोध से बचने और सरकार पर दबाव बनाने के लिए इन्होंने पूर्वनियोजित तरीके से समिति में अखबार मालिकों को रखा और जनसम्पर्क विभाग के अधिकारियों को इसलिए समिति में रखा ताकि समय-समय पर वे इनके काले-जाले में पर्दा डालने में मदद कर सकें।
अरशद अली खान, पत्रकार
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अगर आपको इस रिपोर्ट के बारे में कुछ कहना है तो अपनी बात eyeformedia@gmail.com
पर भेज सकते हैं.

गुजरात में 221 करोड़ की भास्कर प्रिंट प्लेनेट शुरू

भोपाल। भास्कर समूह ने अपने बड़ते ग्रुप में एक और उपलब्धि जोड़ ली है। समूह ने गुजरात में एक अत्याधुनिक प्लांट डाला है। ये ख़बर इसलिए यहाँ दे रहे हनी की एक अख़बार की तरक्की होती है तो मीडिया कर्मियों को भी इसका लाभ मिलता है।
भास्कर समूह के अत्याधुनिक ‘प्रिंट प्लेनेट-अहमदाबाद’ का गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने शनिवार को एक भव्य, गरिमापूर्ण समारोह में लोकार्पण किया।
चांगोदर में स्थित ‘प्रिंट प्लेनेट’ के लोकार्पण के साथ ही गुजराती पत्रकारिता के इतिहास में नए युग का श्रीगणोश हो गया है। अब भास्कर समूह का दिव्य भास्कर गुजराती भाषा का ऐसा पहला समाचार पत्र बन गया है जो विश्वस्तरीय अल्ट्रा-मॉडर्न एबीए मशीन से छप कर पाठकों के हाथ में पहुंच रहा है।
पूर्णतया ऑटोमेटिक एवं अत्याधुनिक प्रिटिंग-टेक्नोलॉजी से सुसज्जित करीब 221 करोड़ रुपए की लागत वाला ‘प्रिंट प्लेनेट’ एक घंटे में २.५५ लाख रंगीन प्रतियां प्रकाशित करने में सक्षम है। ‘प्रिंट प्लेनेट’ को स्थापित करने के लिए 13 माह से जर्मनी के 40 इंजीनियरों की टीमें दिन रात कार्य कर रहीं थीं।
‘प्रिंट प्लेनेट’ में काउंटिंग, स्टेकिंग, लेबलिंग एवं रेपिंग सहित प्रिंटिंग के अधिकांश काम स्वचालित तकनीक से संचालित होते हैं। इस मौके पर गुजरात विधानसभा अध्यक्ष अशोक भट्ट, ऊर्जा राज्यमंत्री भरत सिंह सोलंकी, सांसद, विधायक एवं आला पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी मौजूद थे। इससे पहले समूह के अध्यक्ष रमेशचंद्र अग्रवाल ने सभी आमंत्रित महानुभावों का स्वागत किया।

Saturday, November 07, 2009

अलविदा प्रभाषजी, अब दिलों में रहेंगे

पत्रकारिता के पितामह प्रभाष जोशी का शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया है। शनिवार को दोपहर 12 बजे नर्मदा नदी के किनारे उनकी इच्छा के अनुसार अंतिम संस्कार कर दिया गया. प्रभाष जोशी का गुरुवार/शुक्रवार की रात हृदयगति रुक जाने से निधन हो गया था.
शुक्रवार को उनका पार्थिव शरीर मध्य प्रदेश शासन द्वारा उपलब्ध कराये गये एक विशेष विमान से इंदौर ले जाया गया था जहां उनके अंतिम दर्शन के लिए लोगों की भीड़ लगी रही. अंतिम दर्शन करनेवालों में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह और प्रभाष जोशी के पुराने मित्र तथा पूर्व राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत भी शामिल थे.
शनिवार की सुबह 10 बजे उनका पार्थिव शरीर इंदौर से 60 किलोमीटर दूर बड़वाहा के लिए ले जाया गया. बड़वाहा में ही उनके पिता जी का अंतिम संस्कार हुआ था इसलिए प्रभाष जोशी की हार्दिक इच्छा थी कि उनका भी अंतिम संस्कार उसी स्थान पर हो जहां उनके पिता का अंतिम संस्कार किया गया था. बड़वाहा में नर्मदा के किनारे उनके ज्येष्ठ पुत्र संदीप जोशी ने उनको मुखाग्नि दी.
प्रभाष जी अंत्येष्टि के मौके पर पूर्व राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावात के अलावा दिल्ली से गये पत्रकार रामबहादुर राय, राहुल देव, हेमंत शर्मा तथा माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति अच्युतानंद मिश्र शामिल हुए।

Monday, September 21, 2009

मीडिया से नाराज हैं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने पोखरण-2 के परीक्षण पर उठे बवाल को मीडिया जगत की देन करार देते हुए रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) के पूर्व वैज्ञानिक के संथानम के दावों को चौंकाने वाला बताया है। नारायणन ने कहा, हमारे पास थर्मोन्युक्लियर क्षमताएं हैं। अगर आप उनमें से किसी एक से किसी शहर पर हमला करेंगे, तो उनसे करीब 50 हजार से एक लाख मौतें हो सकती हैं। विभिन्न लोगों की ओर से मीडिया में स्वार्थपूर्ण प्रचार चलाया जा रहा है, जो सरकार के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि भारत के पास थर्मोन्यूक्लियर क्षमता है और आला वैज्ञानिक इसकी पुष्टि कर चुके हैं। देश के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों से मिलकर बना परमाणु ऊर्जा आयोग (एईसी) पिछले हफ्ते 1998 के परमाणु परीक्षण की क्षमता पर प्रामाणिक बयान दे चुका है। अब इस मुद्दे पर सरकार की ओर से किसी अन्य स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है। एक निजी चैनल पर साक्षात्कार के दौरान नारायणन ने कहा कि एईसी 1998 में भी संतुष्ट था और 2009 में भी संतुष्ट है। ऐसे में इस मुद्दे पर चर्चा करना बेमानी है। हाइड्रोजन बम की प्रभाव क्षमता पर के संथानम के बयान से उपजे विवाद के कारण एईसी से 1998 के परमाणु परीक्षणों के आंकड़ों का पुन: अध्ययन करने को कहा गया था। नारायणन ने कहा, मुझे लगता है हम जो चाहते थे, हमने किया। सीएनआर राव, पी रामा राव व एमआर श्रीनिवासन राव जैसे एईसी के आला वैज्ञानिकों व परमाणु कार्यक्रम से जुड़े राजा रमन्ना ने 1998 के परमाणु परीक्षणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। नारायणन के मुताबिक थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस में 45 किलोटन ईंधन का इस्तेमाल हुआ था। यह जानकारी किसी को भी नहीं थी। पता नहीं होने के कारण संथानम कुछ भी कह सकते हैं। एईसी के पूर्व प्रमुख पीके आयंगर ने भी परीक्षणों में 45 किलोटन ईंधन के इस्तेमाल की बात स्वीकार की थी और परमाणु विखंडन व संलयन की क्रियाएं एक साथ होने की आशंका जताई थी। जिस परीक्षण में इतने नामी-गिरामी वैज्ञानिक जुड़े थे उसके बारे में संथानम अकेले कोई दावा कैसे कर सकते हैं। मुझे लगता है संवेदनशील मसलों पर सार्वजनिक चर्चा की कोई जरूरत नहीं है। परमाणु अप्रसार संधि एनपीटी पर तमाम देशों के हस्ताक्षर का आह्वान करने वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव पर जोर देने के अमेरिकी कदम के बारे में उन्होंने कहा कि अमेरिकी नेताओं के समक्ष इस मुद्दे को पहले ही उठाया जा चुका है और उन्होंने भारत को आश्वस्त किया है कि यह असैनिक परमाणु संधि को प्रभावित नहीं करेगी। गैर परमाणु देशों को संवर्धन और पुन: संवर्धन प्रौद्योगिकियों बेचने पर प्रतिबंध पर समूह आठ (जी8) देशों को सहमत करने की अमेरिका की कोशिशों के मद्देनजर भारत ने उन देशों से भी चर्चा की है जिनके साथ उसकी परमाणु संधियां हैं। परमाणु हथियारों के पहले उपयोग नहीं करने के सिद्धांत पर पुनर्विचार का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे लिए यह केवल एक परमाणु रोधी क्षमता है। हम इसके प्रति कृतसंकल्प हैं। मुशर्रफ का बयान पुराना नारायणन ने कहा है कि आतंकवाद से लड़ने के लिए अमेरिका से मिली मदद का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करने की पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकारोक्ति एक पुरानी कहानी है। पिछले तीन-चार साल के दौरान अमेरिका से आधुनिक हथियारों की पाकिस्तान की खरीदारी हारपून मिसाइल में किसी संशोधन से ज्यादा चिंता का विषय है। उन्होंने परमाणु हथियारों के जखीरे में पाकिस्तान के इजाफा करने की रिपोर्टों पर कहा यह तथ्य निश्चित रूप से चिंता का मुद्दा है कि एक देश अपने परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ा रहा है जो हमारे प्रति दोस्ती का रूख नहीं रखता।
साभार दैनिक जागरण दिल्ली

Thursday, September 17, 2009

साधना न्यूज़ मध्यप्रदेश में महिला पत्रकार की खिलाफ अश्लील पर्चबाजी


फाल्गुनी त्रिपाठी। भोपाल
मध्य प्रदेश में साधना न्यूज़ चैनल में हाल ही में ज्वाइन करने वाली वरिष्ठ पत्रकार मुक्ता पाठक को हटाने के लिए कुछ पत्रकारों ने उन्हें बदनाम करने के लिए बेनामी पर्चे निकालकर उनके चरित्रहनन की कोशिश की हैं खास बात ये है की जो पर्चे जारी हुए हैं वे सेन्ट्रल प्रेस क्लब के लेटर हेड पर हुए हैं। इस बात से न केवल मुक्ता पाठक आहत हैं बल्कि प्रेस क्लब के प्रेसिडेंट विजय दास भी नाराज हैं। उन्होंने पूरे मामले की जांच कराने की बात कही। माना जा रहा हैं मुक्ता पाठक के साधना न्यूज़ ज्वाइन करने से वहां काम कर रहे एक गुट को करार झटका लगा हैं क्योंकि उन लोगों को लगने लगा है की शायद मुक्त पाठक के आने से उनके काम प्रभावित होंगे साधना चैनल में भी उनका कद कम होगा। माना ये जा रहा है है की मुक्ता पाठक की कार्यशैली से लोग ज्यादा भयभीत हैं। क्योंकि मुक्ता पाठक जिस भी संस्थान में काम करती हैं उनका हर कदम संस्था के हित में होता हैं और इस कारण अमानत में खयानत करने वाले उनसे खासे नाराज़ रहते हैं साधना न्यूज़ के सूत्र बताते हैं कि मुक्ता पाठक के आने के बाद से न्यूज़ डिपार्टमेंट के एक पत्रकार ने इसका विरोध सिर्फ इसलिए किया क्योंकि मुक्ता कि साख उनसे ज्यादा अच्छी हैं और सरकार पर पकड़ भी पर्याप्त हैं ऐसे में मुक्ता पाठक का पहला शो "आप कि बात" हिट हो जाने से भी साधना न्यूज़ के दो पत्रकारों को खासी दिक्कतें शुरू हो गयी हैं साधना टीवी के सूत्रों का कहना हैं कि इन लोगों को इस बात से भी दिक्कत शुरू हो गई हैं कि मुक्ता पाठक को मैनेजमेंट ज्यादा तवज्जो क्यूँ दे रहा हैं इसके पहले भी ये बात सामने आई है की वल्लभ-भवन और जनसंपर्क कार्यालय में जाकर एक गुट मुक्ता पाठक को भला बुरा एक गुट ने कहा है। भोपाल में पत्रकारों का एक गिरोह हमेशा ही अपनी दुश्मनी निकलने के लिए पर्चेबाजी का सहारा लेता हैं ये वही लोग हैं जो इससे पहले सीनियर जर्नलिस्ट राहुल सिंह, एन के सिंह, राजेश बादल, अनुराग उपाध्याय, राजेन्द्र शर्मा, ह्रदेश दीक्षित, अभिलाष खांडेकर आदि के खिलाफ भी पर्चे निकाल चुके हैं इन पर्चों का शिकार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से लेकर बड़े बड़े अधिकारी तक बने हैं लेकिन इस बार जो पर्चा मुक्ता पाठक के खिलाफ आया हैं वह एक दम भद्दा और घोर आपत्तिजनक हैं इस पर्चे में वह बातें भी लिखी हैं जो सिर्फ साधना चैनल में काम करने वाले व्यक्ति ही जानते हैं इसलिए यह पक्का हो गया हैं कि पर्चेबाज साधना के भीतर का ही कोई व्यक्ति हैं इस मामले पर जब मुक्ता पाठक से बात कि गई तो उन्होंने फ़िलहाल कुछ भी कहने से इंकार कर दिया हैं वही इस पर्चे में सेन्ट्रल प्रेस क्लब और उसके अध्यक्ष का नाम आने के बाद भी प्रेस क्लब कि चुप्पी समझ से परे हैं सेन्ट्रल प्रेस क्लब के सीनियर जर्नलिस्ट विजय दास ने इस पर्चेबाजी को असहनीय बताया हैं और कहा हैं वह इस मामले में गंभीर हैं और शीघ्र ही इस मामले कि जाँच करवायेंगे
साभार http://www.dakhal.net/

Wednesday, September 16, 2009

राज एक्सप्रेस, भोपाल : कई लोग गए और आए

राज एक्सप्रेस, भोपाल में पिछले चार सालों से अपनी सेवाएं दे रहे और वर्तमान में स्टेट न्यूज कोऑडीनेटर धर्मेंद्र वर्मा ने राज एक्सप्रेस को छोड़ने का मन बना लिया है। इसके तहत उन्होंने प्रबंधन को 45 दिन का नोटिस दे दिया है। पता चला है कि धर्मेंद्र अपनी खुद की एक पत्रिका लांच करने जा रहे हैं। एक अन्य जानकारी के मुताबिक विश्वेश्वर शर्मा ने राज एक्सप्रेस में स्टेट न्यूज कोऑर्डिनेटर के पद पर ज्वाइन कर लिया। श्री शर्मा इससे पहले भोपाल से प्रकाशित सांध्य दैनिक फाइन टाइम्स में संपादक के तौर पर पदस्थ थे। राज एक्सप्रेस में इंदौर रीजनल डेस्क के संपादकीय सहयोगी अमित माथुर ने राज को अलविदा कह दिया है। उन्होंने अपनी नई पारी पत्रिका इंदौर से शुरू कर दी है।
इसी डेस्क पर कार्यरत शैलेष साहू ने भी राज एक्सप्रेस से नमस्ते बोल दिया है। उनका अगला पड़ाव मालूम नहीं हो पाया है। राज एक्सप्रेस में ग्वालियर रीजनल डेस्क पर कार्यरत गणेश मिश्रा, इंदौर रीजनल डेस्क पर कार्यरत संदीप राजावत और आर16 में कार्यरत धीरज राय ने राज एक्सप्रेस को बाय बोल दिया है। इन तीनों ने दैनिक भास्कर भोपाल में रिपोर्टर के तौर पर ज्वाइन कर लिया है। राज एक्सप्रेस में जबलपुर रीजनल में एडीशन इंचार्ज वासुदेव शर्मा का तबादला प्रबंधन ने नरसिंहपुर ब्यूरो चीफ के तौर पर कर दिया है।

Monday, September 14, 2009

एमपी पत्रिका का एक साल, कई आए-गए

पत्रिका, भोपाल और पत्रिका, इंदौर ने मध्य प्रदेश में अपने एक साल पूरे होने पर समारोह का आयोजन किया। भोपाल में आयोजित समारोह में प्रदेश के राज्यपाल समेत कई गणमान्य लोग शामिल हुए तो इंदौर के समारोह में मुख्यमंत्री ने हिस्सा लिया। हालांकि बाबी छाबड़ा प्रकरण के कारण इंदौर के समारोह में पत्रिका के लोग काफी डिमोरलाइज दिखे लेकिन अतिथियों की बड़े पैमाने पर उपस्थिति ने और समारोह के सफल हो जाने से इस जख्म पर मरहम का काम किया है। पत्रिका का मध्य प्रदेश में एक साल काफी उथल-पुथल भरा रहा। सरकुलेशन और ब्रांड प्रजेंस के मामले में पत्रिका ने सफलतापूर्वक अपना प्रमुख स्थान बनाया लेकिन आंतरिक उठापटक से यह अखबार काफी प्रभावित रहा। पत्रिका, भोपाल एक साल का हो गया लेकिन यहां इसी एक साल में कई स्थानीय संपादक आए-गए। अभी स्थानीय संपादक गिरिराज शर्मा हैं। वे पत्रिका, भोपाल के तीसरे स्थानीय संपादक हैं। शुरुआत में अजीत सिंह को स्थानीय संपादक के रूप में रखा गया था लेकिन अखबार के प्रकाशित होने से कुछ दिन पहले दिनेश रामावत को स्थानीय संपादक बनाकर अजीत सिंह को संपादकीय पेज देखने का काम दे दिया गया। प्रिंटलाइन में दिनेश रामावत का नाम जाने लगा लेकिन कुछ ही महीने बाद दिनेश रामावत को जयपुर बुला लिया गया और गिरिराज शर्मा को नया स्थानीय संपादक बना दिया गया।
इसी तरह पत्रिका, इंदौर में भी एक साल में दो स्थानीय संपादक आ-जा चुके हैं। पत्रिका की इंदौर में लांचिंग पंकज मुकाती ने कराई। बाद में उन्हें हटाकर अरुण चौहान का स्थानीय संपादक बना दिया गया। चर्चा है कि बाबी छाबड़ा प्रकरण के बाद पत्रिका प्रबंधन अरुण व कुछ अन्य को कार्रवाई के दायरे में ले सकता है। कुछ दिनों पहले स्थानीय संपादक रैंक के सिद्धार्थ भट्ट को भी पत्रिका, इंदौर भेजा गया है। इससे अब इंदौर में स्थानीय संपादक रैंक के दो-दो लोग हो चुके हैं। एक अन्य जानकारी के अनुसार पत्रिका, इंदौर के मार्केटिंग विभाग के वरिष्ठ अधिकारी जेपी शर्मा ने इस्तीफा दे दिया है।

मीडिया पर ब्लेकमेल का आरोप लगाया सीएम शिवराज ने

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ मीडिया कर्मी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से नाराज हैं। कारण है शिवराज सिंह चौहान का वह बयान जिसमे उन्होंने कहा है की मीडिया बार बार पैकेज मांगता है। उनका आशय था सोमवार को समाप्त हुए गोहद और तेंदुखेडा के चुनाव के दौरान मीडिया को दिए गए पैकेज से। लेकिन वे अपने बयान में सभी मीडिया कर्मियों को शामिल का बेठे, इस बात से मीडिया के बड़े पत्रकार नाराज हैं। मुख्यमंत्री के बयान को लेकर इंडिया टीवी के संवाददाता ने अपनी कलम चलाई।
कौन ब्लैकमेल कर रहा हैं शिवराज को
अनुराग उपाध्याय
कई बार डर जुबान से भी निकलता हैं , जुबान से निकला डर अगर मुख्यमंत्री का हो तो फिर कहना ही क्या ? मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के हर भाषण में इस समय टार्गेट मीडिया के लोग हैं वे मीडिया घरानों की रोज-रोज की डिमांड से इतने परेशान हो गए हैं कि उन्होंने देश भर में एक साथ चुनाव कराय जाने की मांग कर दी हैं कुंजीलाल दुबे विद्यापीठ के कार्यक्रम में शिवराज सिंह ने मीडिया के लोगों को आडे हाथों लिया और कहा की यह सिर्फ पैकेज मांगने आते हैं यह सुनकर तमाम मीडिया के लोग चौंक गए शिवराज ने अपने स्टाइल में मीडिया के लोगो को कोसा या यों कहें कि उन्होंने उनका सच बयान किया अब सवाल उठता हैं कि शिवराज सिंह जो कह रहे हैं क्या वह पूर्णसत्य हैं इसका जवाब हैं नहीं ! शिवराज जो कह रहे हैं वह अर्धसत्य हैं शिवराज सिंह मन से कभी पूर्णसत्य कहते ही नहीं हैं पूर्ण सत्य तो यह होता कि वह बताएं कौन से मीडिया हॉउस उनसे पैकेज के नाम पर पैसा मांगते हैं , कौन से पत्रकार हैं जो उन पर दवाब बनाकर उन्हें ब्लैकमेल कर रहे हैं मुख्यमंत्री को चाहिए कि वे ऐसे लोगो के नाम सार्वजानिक करें, क्योंकि शिवराज सिंह हर बात पर दूध का दूध और पानी का पानी किये जाने का दम भरते हैं , तो अब करें !सार्वजनिक कार्यक्रमों में मीडिया को पैकेजखोर कहने भर से काम नहीं चलने वाला हैं शिवराज जी जिस तरह आपके मंत्रिमंडल से लेकर अफसरशाही तक में तमाम भ्रष्ट बैठे हुए हैं उसी तरह मीडिया में भी कुछ लोग "पैकेजखोरी" में लगे होंगे, इससे इंकार नहीं किया जा सकता,लेकिन कुछ भ्रष्टों कारण जैसे आपको भ्रष्ट नहीं कहा जा सकता ठीक ऐसे ही कुछ पैकेजखोरों के कारण सारा मीडिया भी पैकेजखोर नहीं हो सकता वैसे शिवराज जी, जब आप सच बयान करने का दम भरते हैं तो आपको यह भी बताना चाहिए कि आपके राम राज्य में मीडिया को इस पैकेज खोरी की जरूरत क्यों पड़ी ? आपकी सरकार ने ऐसा क्या कर दिया के आपको पैकेज डीलिंग शुरू करना पड़ी क्या राजनैतिक धरातल पर भाजपा भोंथरी हो गई या फिर सरकारी कारिंदों की काली करतूतें छुपाने के लिए सिवाए मीडिया को पैकेज का दाना चुगाने के आलावा कोई रास्ता नहीं बचा था शिवराज सिंह आप एक बेहतरीन इंसान हैं , सत्य से आप दायें बाएं नहीं होते, यह आपकी खूबी में शुमार हैं, तो फिर सिर्फ अर्धसत्य क्यों ? मीडिया के इमानदार घराने मीडिया से जुड़े इमानदार पत्रकार सब आपसे जानना चाहते हैं कि कौन पैकेजखोर और क्यों पैकेजखोरी? आपका बाकि बचा अर्धसत्य जरुर कुछ लोगो की दुखती रग दबा देंगा , लेकिन तमाम ईमानदार लोग आपके कांधे से कांधा मिलाकर खड़े हो जायेंगे वैसे आपको भी यह समझ लेना चाहिए कि लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव चुनाव में अपनी बात को दम से कहने के लिए पैकेज के ऑफ़र राजनैतिक दल ही देते हैं तब मीडिया के बिकाऊ लोगो को पालतू कुत्ता बनाने का काम आप जैसे नेता ही करते हैं "वॉच डॉग" पैकेज के चक्कर में कब "पेट डॉग" बन जाता हैं ये न उसे मालूम पड़ता हैं न आप जैसे सियासत करने वालों को जब आपके यही पालतू भस्मसुर बनने लगते हैं,तो आप मंचों से त्राहिमाम त्राहिमाम चिल्लाने लगते हैं मीडिया के कुछ लोगों कि पैकेज खोरी से शिवराज सिंह हताहत हैं , उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से छोटे बड़े चुनावों का सिलसिला चल रहा हैं तो पैकेजखोरी कि दुकाने भी चल रही हैं ऐसे में शिवराज सिंह की यह मांग इस मामले पर उनका दर्द और डर बयान करने के लिए पर्याप्त हैं कि देश में सभी चुनाव एक साथ हों ताकि समय और पैसे कि बर्बादी को रोका जा सके बहरहाल जो भी हैं शिवराज सिंह ने जब पैकेज पुराण शुरू किया हैं तो अब उनसे यह उम्मीद भी हैं कि वे इसके अगले अध्याय को पूरा करके ही समाप्त करेंगे नहीं तो अर्धसत्य बोलने का पुण्य उन्हें मिलेगा और अर्धसत्य छुपाने के पाप के भागी भी वे ही बनेंगे
(www.anuragupadhyay.com से साभार)

Saturday, September 05, 2009

राज एक्सप्रेस में बड़े बदलाव

रवींद्र जैन भोपाल पहुंचे
राज एक्सप्रेस, इंदौर का स्थानीय संपादक गीत दीक्षित को बनाए जाने के बाद अब तक आरई के रूप में काम देख रहे रवींद्र जैन का तबादला राज एक्सप्रेस, भोपाल के स्टेट ब्यूरो के हेड के रूप में किए जाने की सूचना मिली है। एक अन्य सूचना के मुताबिक राज एक्सप्रेस, ग्वालियर के स्थानीय संपादक चंदा वार्गल ने इस्तीफा दे दिया है। उनकी जगह नए आरई बने हैं विजय शुक्ला जो अभी तक राज एक्सप्रेस के भोपाल ब्यूरो में रिपोर्टिंग करते थे।
गीत दीक्षित को नई जिम्मेदारी दी गई।
उन्हें राज एक्सप्रेस के इंदौर संस्करण का स्थानीय संपादक बना दिया गया है। गीत इससे पहले राज एक्स्प्रेस के लिए भोपाल में रहते हुए पोलिटिकल और एडमिनिस्ट्रेशन बीट के स्टेट हेड के रूप में कार्य कर रहे थे। गीत राज एक्सप्रेस, जबलपुर के स्थानीय संपादक भी रह चुके हैं। नवभारत के ग्रुप एडिटर के रूप में काम कर चुके गीत दैनिक स्वदेश, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य मत भारत, दैनिक जागरण आदि अखबारों में काम कर चुके हैं। वे उमा भारती के मीडिया प्रभारी और सलाहकार भी रह चुके हैं।
दैनिक भास्कर, ग्वालियर के साथ कई पत्रकार जुड़ रहे हैं। राज एक्सप्रेस और देशबंधु, भोपाल में काम कर आशेंद्र सिंह ने भास्कर में काम शुरू कर दिया है। आशेन्द्र जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर के पत्रकारिता विभाग में गेस्ट टीचर के रूप में छात्रों को पढ़ाते भी रहे हैं। आशेंद्र के अलावा संजय पाण्डेय और गरिमा श्रीवास्तव ने भी दैनिक भास्कर, ग्वालियर से अपनी नई पारी शरू की है। नवभारत, ग्वालियर से इस्तीफा देकर संजय बोहरे ग्वालियर में दैनिक भास्कर के साथ जुड़ गए हैं।
इंदौर में पीपुल्स समाचार जल्द
राजस्थान के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित समाचार पत्र समूह राजस्थान पत्रिका ने मध्य प्रदेश में उज्जैन संस्करण का प्रकाशन शुरू कर दिया है। उज्जैन संस्करण इंदौर के अधीन है। इंदौर से उज्जैन एडिशन प्रकाशित किया जा रहा है। यहां स्थानीय संपादक के रूप में सिद्धार्थ भट्टा को भेजा गया जो पहले राजस्थान पत्रिका, कोटा के प्रभारी थे। बाद में उनका तबादला जयपुर के लिए कर दिया गया था।
इंदौर में पीपुल्स समाचार जल्द ही लांच होने जा रहा है। इन दिनों इस अखबार की डमी छपने लगी है। पत्रिका, कोटा के चीफ सब एडिटर इशान अवस्थी के पीपुल्स समाचार, इंदौर में ज्वाइन करने की खबर है। पत्रिका, भोपाल के तेज बहादुर और पराग नाथू ने भी पीपुल्स का दामन थामा है।

Friday, September 04, 2009

अब पत्रकारिता के ब्राम्हणों का विरोध

मध्यप्रदेश में पत्रकारों के बीच में वैमनस्य पैदा करने के लिए पहले ब्राम्हण पत्रकारों के नाम पर लाबिंग की गई तो अब इसके जवाब में गैर ब्राम्हण पत्रकार एक जुट हो रहे हैं मामले ने अब तूल पकड़ लिया है और मध्य प्रदेश में पत्कारिता के इतिहास में पहली बार पत्रकार जाती को लेकर आमने-सामने हैं। ब्राम्हण पत्रकारों को एक जुट करने में मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार शलभ भदौरिया सक्रिए हो गए हैं शलभ भदौरिया का कहना हैं पत्रकार किसी जात-पात में बँटा व्यक्ति नहीं होता और कुछ लोग अपने निजी स्वार्थो के लिए पत्रकारों को जाती और वर्ग में बांटे इसे भी ठीक नहीं कहा जा सकता मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में ब्राम्हण पत्रकार समागम मध्यप्रदेश के एक मंत्री की सोची समझी चाल का नतीजा था ऐसा करके पद, पैसा और स्त्री लोलुप पत्रकारों के जरिये इस बात का प्रचार करना था कि प्रदेश के तीन प्रमुख ब्राम्हण मंत्री अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले हैं लेकिन ब्राम्हण पत्रकारों में ही इस समागम के बाद मतभेद शुरू हो गए ईमानदार और सद्चरित्र ब्राम्हण पत्रकारों ने ऐसे किसी भी आयोजन से अपने को दूर बताया और साफ़ कहा "हम तो सिर्फ खाना खाने गए थे " वैसे भी उस आयोजन में तमाम सारे ब्राम्हण पत्रकारों ने दूरी बना ली थी मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष शलभ भदौरिया के नेत्रत्व में गैर ब्राम्हण पत्रकार एकजुट हो रहे हैं गैर ब्राम्हण पत्रकारों का समागम भी अब जल्द भोपाल में होने वाला हैं इस आयोजन के बारे में 'दखल' को खबर मिली हैं कि इसमें मूलत: सिर्फ पत्रकारिता करने वाले लोग शामिल होंगे और आयोजन से उन पत्रकारों को दूर रखा जायेगा जो पत्रकारों के बीच में जाति और मजहब की दीवारे खड़ी कर रहे हैं पत्रकारों के शीर्ष नेता शलभ भदौरिया ने बताया कि १३ सितंबर को उज्जैन में श्रमजीवी पत्रकार संघ कि वर्किंग कमेटी कि मीटिंग में यह मसला उठेगा , वहां ऐसे पत्रकारों कि घोर निंदा कि जायेगी जो पत्रकारों के बीच में विभेद पैदा कर के लाभ लेना चाहते हैं युवा पत्रकार प्रदीप जायसवाल का साफ़ कहना हैं कि पत्रकार समाज से जातपात मिटने का काम करे यह तो समझ में आता हैं, कथित बड़े पत्रकार अपनी सुख सुविधाओं और खुद कि दुकाने चलती रहे इसलिए ऐसा करे यह समझ से परे हैं यह कथित सुविधा भोगी ,शराबी अय्याश पत्रकार अब समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं टेलीविजन पत्रकार टाइम्स नाउ के राहुल सिंह कहते हैं "यह ठीक नहीं हैं" जाती के आधार पर पत्रकारों का विभाजन ठीक नहीं हैं, अपने लाभ के लिए पत्रकारों को जाति में बांटा जाना घोर निंदनीय हैं समाज पत्रकारों को उनके पेशे के लिए सम्मान देता हैं जाती के आधार पर नहीं राहुल कहते हैं "पत्रकारों को जातपात' राजनैतिक दलों में आस्था जैसे मसलों से बचना चाहिए वहीँ सी एन ई बी के पत्रकार अनुराग अमिताभ मिश्रा का साफ़ कहना हैं जो ब्राम्हण पत्रकारों के नाम पर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं वे आइना देखे और अपने आप से पूंछे कि लोग उन्हें ब्राम्हण होने के नाते जानते हैं या पत्रकार के रूप में वैसे भी इस तरह का घिनौना काम करने वाले लोग पत्रकार छोड़ बाकि सब होंगे अनुराग अमिताभ कहते हैं कि अब पत्रकारों के भेस में तमाम सारे दलाल, अय्याश और धंधेबाज इकठ्ठा हो गए हैं समाज को चाहिए कि वे ऐसे लोगो को सबक सिखाये मध्यप्रदेश में कुछ पत्रकारिता से असबंध लोगो ने ब्राम्हण पत्रकारों के नाम पर जब जमावडा शुरू किया तो इसका पत्रकारों ने ही खासकर ब्राम्हण पत्रकारों ने विरोध शुरू कर दिया हैं इसके बाद से पत्रकारिता के कथित ब्राम्हणवादियों की मुसीबते शुरू हो गयी हैं
साभार। ww.dakhal.net

Friday, August 21, 2009

पत्रकार मगर थे खौफज़दा!

भोपाल। गुरुवार यानि 20/08/2009 को भोपाल स्थित सहारा इंडिया कुञ्ज के सामने 100 लोगों की भीड़।
सभी के चेहरे उतरे हुए थे। 18 से लेकर 55 साल तक के लोग इस भीड़ में शामिल थे। लेकिन किसी के भी चेहरे पर मुस्कान नही ।
ऐसा लग रहा था की मानो ये लोग किसी के अन्तिम संस्कार के बाद होने वाले उठावने में शामिल होने आए हों। जबकि वहां कोई न तो कोई अर्थी थी और न ऐसी स्थिति (भगवान न करे) ।
इसके बाद भी पुरा माहोल गम से भरा था। ये कहानी किसी आम आदमी की नही बल्कि है सहारा समय न्यूज़ चेनल के विभिन्न जिलों से आए स्ट्रिंगरों की। जो भोपाल आए थे इस डर के साथ की पता नही की किस स्ट्रिंगर को उसके जिले से अलग कर दिया जाएगा। खेर ऐसा नही हुआ, लेकिन गम तो फ़िर भी था, क्योंकि कई लोग अपने ब्यूरो चीफ से दूर हो चुके थे। दरअसल सहारा समय ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगड़ के भोपाल और रायपुर के ब्यूरो को छोड़कर इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर के ब्यूरो समाप्त कर दिए हैं। हालाँकि इस बारे में स्ट्रिंगरों को शाम तक नही बताया गया। मीटिंग के दौरान देखने में आया की सभी स्ट्रिंगर अपने-अपने जिलों में धक्दर हैं लेकिन गुरुवार को इनके चेहरे खौफज़दा थे। मीडिया हाउस गुरुवार को हुई इस बैठक को सिलसिलेवार आपके सामने ला रहा है
11 बजे सुबह- सभी जिलों के पत्रकार सहारा इंडिया कुञ्ज पहुँच गए और मीटिंग का इंतजार करने लगे। हर चेहरे पर एक ही सवाल था की क्या होने वाला है।
12 बजे दोपहर- एक घंटे के इंतजार के बाद सभी स्ट्रिंगर से बोला गया की वे खाना खा लें। इसके बाद अपने ब्यूरो को सर आंखों पर बिठाने वाले स्ट्रिंगरों को एक व्यक्ति भोपाल की मिलन रेस्टोरेंट में ले गया।
फिक्स है मीनू- जिस होटल में स्ट्रिंगरों को खाना खिलाया वहां मीनू में पहले से दो रोटी फिक्स थी। इस कारण कई लोगों का होटल वालों से विवाद भी हुआ।
१.३० बजे दोपहर-मीटिंग शुरू हुई, जिसको इनपुट हेड राजेश झा, भोपाल ब्यूरो प्रकाश तिवारी और रायपुर ब्यूरो रुचिर गर्ग ने संबोधित किया।
अफवाहों पर विश्वास न करें-तीनों ही दिग्गजों ने स्ट्रिंगरों को भरोसा दिलाया की सहारा से किसी भी स्ट्रिंगर को नही निकला जा रहा है और ये केवल अफवाह मात्र है। साथ ही सभी स्ट्रिंगरों को उनका मार्च तक पेमेंट भी कर दिया गया। इसके पीछे भी एक खास वजह थी की बहुत जल्द मध्य प्रदेश में जन सन्देश और जी का क्षेत्रीय चेनल शुरू हो रहे हैं और सहारा मुश्किल वक़्त में अपने होनहार स्ट्रिंगरों को खोना नही चाहता।
ब्यूरो क्यों ख़त्म किए, इस बात का नही था कोई जवाब-हमेशा मीटिंग में नज़र आने वाले इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर ब्यूरो नज़र नही आए तो स्ट्रिंगर्स ने सवाल किया लेकिन इनपुट हेड के साथ सभी ने इस सवाल का जवाब टाल दिया। बाद में मालूम करने पर पता चला की भोपाल ब्यूरो को छोड़ शेष सभी ब्यूरो और पत्रकारों को स्ट्रिंगर बना दिया। इस बात से सभी स्ट्रिंगर बेहद दुखी दिखाई दिए।

हर तारीख पर नज़र

हमेशा रहो समय के साथ

तारीखों में रहता है इतिहास