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Wednesday, March 10, 2010

क्या हैं अवधेश बजाज होने के मायने?


ब्लॉग की बात
कभी भई कोई बड़ा नहीं होता और न ही कोई एसा होता है की जिसके बिना काम रुक जाए। दरअसल हर शख्स का एक समूह होता है, जो उसके लिये सोचता है और कुछ करता भी है। कई बार ऐसा होता है की कोई व्यक्ति व्यवस्था पर भरी पड़ जाता है। ऐसे शख्स को अलग- अलग नामों से भी जाना जाता है। कभी-कभी ऐसे शख्स को लेकर बहस छिड़ जाती है और उसमें शामिल होते हैं ब्लॉगर। भोपाल से संचालित दखल ने हल ही में पीपुल्स अख़बार के मीडिया सलाहकार बने अवधेश बजाज को लेकर एक आर्टिकल लिखा है। जिसे शहर भर में चटकारे लेकर पड़ा जा रहा है। इस आर्टिकल को लिखा है मोतीलाल ने। जो की दखल के नियमित लेखक हैं। पेश है हुबहू दखल का वह आर्टिकल। इसको पड़ने के बाद तय जनता खुद तय करे की क्या जो हुआ वह सही था?
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क्या किसी पत्रकार का ऐसा खौफ हो सकता हैं कि अगर किसी संस्था से जुड़े तो वहां का संपादक और पत्रकारिता की आड़ में तेल बेचने वाले और बस चलने वाले लोग मैदान छोड़ कर भाग जाएँ जी हाँ ऐसा ही हुआ हैं भोपाल के पीपुल्स समाचार में जब वहां वरिष्ठ पत्रकार अवधेश बजाज सलाहकार बन के पहुंचे तो संपादक राघवेन्द्र सिंह अपनी टीम सहित मैदान छोड़ कर भाग गए जो लोग अवधेश बजाज के साथ काम कर चुके हैं या उन्हें जानते हैं उन्हें पता हैं यह शख्स वर्कएडिक्ट हैं इसे काम का नशा इतना हैं कि १२ से १८ घंटे तक कुर्सी पर बैठकर काम करना इसे आता हैं यह अख़बार के पन्ने के तेवर और कलेवर दोनों को बदलना जनता हैं, यही वजह हैं कि अवधेश बजाज के विरोध में तमाम वे लोग खड़े मिल जायेंगे जो पत्रकारिता कि आड़ में छोड़ पत्रिकारिता सब कुछ करते देखे जा सकते हैं बजाज ने बीस सालों में कई संस्थानों को जमीन से उठा के खड़ा किया और जब बजाज वहां से निकले तो वे संसथान वापस जमीन पर लेटे नजर आए आप को यकीन न हो तो भोपाल नवभारत और जागरण का हश्र देखा जा सकता हैं बजाज ने इन दोनों अख़बारों को जिस बुलंदियों पर पहुचायां था वो काम उनके बाद न तो मलय श्रीवास्तव के बूते का था ना पंकज पाठक के और ना ही मृगेंद्र सिंह के बजाज की चर्चा हम यहाँ पीपुल्स समाचार को लेकर कर रहे हैं बजाज की आमद के बाद इस अख़बार में जो परिवर्तन आयें हैं वे उसे अचानक दैनिक भास्कर के समकक्ष ले आयें हैं बजाज पीपुल्स संभालेंगे इस खबर ने ही कई लोगो का हाजमा बिगड़ दिया, भोपाल में बंडी और चश्मा पहन कर कई धंधे बाज बुद्धिजीवी पत्रकार बन गए हैं ऐसे ही एक बुद्धिजीवी भोपाल के चारइमली इलाके में बजाज को कोसने में लगे हैं इन साहब ने अपने कुछ दलाल साथियों के जरिये पीपुल्स के मालिकान तक खबर भेजी कि जिसे रख रहे हो वो शेर नहीं दीमक हैं अब सवाल उठता हैं अवधेश बजाज शेर हो या दीमक भाई तेरे पेट में क्यूँ दर्द हो रहा हैं यह बंडीबाज पत्रकार अकेले नहीं थे जिनके पेट में बजाज ने जुलाब का काम किया हैं ऐसे न जाने कितने बहरूपिये पत्रकार हैं जो बजाज के पासंग भी नहीं हैं लेकिन उनके बारे में बकवास जरुर करते हैं एक और चरित्रहीन पत्रकार भोपाल में हैं जिन्हें दो सालों में दो बार महिलाओं के जूते खाने पड़े हैं इनका मुख्य काम दलाली हैं इन्हें भी अवधेश बजाज से खासी परेशानिया हैं इन्होने पीपुल्स खबर भिजवाई कि गलत आदमी को रख रहे हो लेकिन कहते हैं हाथी की मदमस्त चल पर कुत्तों के भोंकने का असर नहीं होता ...... और यही हुआ , बजाज पूरी मस्ती से अपने काम में लगे हैं यहाँ बता देना जरुरी हैं बजाज को कोसने वाले दूसरे साहब दो साल पहले एक स्टिंग ओपरेशन में फंस गए और पत्रकार के रूप में छुपा औरतखोर सबके सामने आ गया तब यह चरित्रहीन सबसे पहले अवधेश बजाज के ही चरण चुम्बन करने पंहुचा था बजाज ने जब ऐसे घटिया आदमी का साथ देने से मना किया तो यह उनके विरोधी हो गए हालाँकि बजाज सामने हो तो यह चाँद लम्हों में अपना पेंट गीला कर लेता हैं बजाज के किस्से का हाल भी उस कहावत जैसा हो गया हैं कि "सूप बजे तो बजे यहाँ तो सौ छेद वाली चलनिया भी बज रही हैं " अवधेश बजाज का खबरों के प्रति समर्पण और काम करने का विशिष्ठ अंदाज उन्हें तमाम लोगो से अलग कर देता हैं यही वजह हैं कि वे अपने समकालीन पत्रकारों में एक अलग स्थान रखते हैं
बजाज कि नजर कुछ पंक्तियाँ ........
हमारी वफायें तुम्हारी जफ़ाओं के सामने
जैसे छोटा सा दिया तेज हवाओं के सामने
नेज़े पर भी हमेशा बुलंद रहा सर मेरा
झुका नहीं कभी झूठे खुदाओं के सामने

Friday, November 20, 2009

एक ही तो बोलता है, इसी की बोलती बंद कर दो.

भोपाल। मुंबई में ibn7 के ऑफिस पर हमला बोलकर शिवसैनिकों ने जाता दिया की वे अपने खिलाफ किसी को नही बोलने देंगे। फ़िर चाहे वह मीडिया ही क्यों न हो। ऐसा हो भी क्यों नही। जब सरकार और कानून खामोश रहेगा तो सिव्सैनिकों के होसलें तो बढेंगे ही। शिवसैनिक और राज ठाकरे के खिलाफ अब केवल न्यूज़ चेनल ही बोल रहे थे। इस हमले के बाद भी क्या होना है। सरकार आलोचना करेगी और चुप बेथ जायेगी लेकिन क्या आपको लगता है की शिवसैनिकों के हाथों से पिटने वाले चेनल के कर्मचारी अब बेखौफ होकर काम कर पाएंगे।
अन्य ब्लॉग द्वारा लिखी गई टिप्पड़ियाँ
शिव सैनिकों का आईबीएन7 आफिस में तांडव
अभी-अभी खबर मिली है कि शिव सेना के दर्जनों उत्पातियों ने मुंबई में हिंदी न्यूज चैनल 'आईबीएन7' और मराठी न्यूज चैनल 'आईबीएन लोकमत' के आफिस पर हमला बोल दिया है। आईबीएन नेटवर्क के इन दोनों चैनलों के मीडियाकर्मियों को शिव सैनिकों मारा-पीटा और कपड़े तक फाड़ डाले। आईबीएन आफिस के सामान और संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया। इन शिव सैनिकों ने आईबीएन के मीडियाकर्मियों को शिव सेना को लेकर निगेटिव रिपोर्टिंग न करने की चेतावनी दे डाली। बताया जा रहा है कि शिव सेना के इस तांडव से 'आईबीएन7' और 'आईबीएन लोकमत' के मुंबई आफिस का कामकाज कई घंटे ठह रहा। मीडिया के घर में घुसकर शिव सेना के लोगों द्वारा किए गए इस तांडव से मुंबई समेत पूरा देश स्तब्ध है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण ने शिव सेना के इस हमले की निंदा की है।
अभी तक उत्तर भारतीयों को मुंबई में निशाना बनाने वाली शिव सेना ने एक प्रमुख मीडिया संस्थान पर हमला कर संकेत दे दिया है कि वह अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है। चौथे स्तंभ को निशाना बनाना और निगेटिव रिपोर्टिंग न करने की चेतावनी देना स्पष्ट करता है कि शिव सेना खोई हुई सत्ता को हासिल करने के लिए और चुनावों में पराजय से पैदा हुई निराशा को खत्म करने के लिए एक बार फिर अपने फासीवादी एजेंडे पर चल पड़ी है। शिव सेना के राज और उद्धव, दो ठाकरे परिवारों में बंट जाने से दोनों के बीच अब होड़ सी लग गई है खुद को हिंदी विरोधी और महाराष्ट्र प्रेमी दिखाने की। इसी एजेंडे के तहत राज ठाकरे के लोगों ने हिंदी में शपथ लेने पर अबू आजमी को विधानसभा में थप्पड़ रसीद किया था। इस कृत्य की जब देश भर में आलोचना हुई। इसके बाद शिव सेना वालों ने सचिन को निशाने पर लेकर मराठी कार्ड खेला। शिव सेना के इस रवैए की इलेक्ट्रानिक मीडिया ने जमकर आलोचना की। लगता है, उसी का हिसाब करने के उद्देश्य से आईबीएन7 के मुंबई आफिस पर हमला किया गया। यह हमला किसी एक न्यूज चैनल के आफिस पर नहीं बल्कि पूरी मीडिया, खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया पर है।

अभी-अभी खबर मिली है कि शिव सेना के दर्जनों उत्पातियों ने मुंबई में हिंदी न्यूज चैनल 'आईबीएन7' और मराठी न्यूज चैनल 'आईबीएन लोकमत' के आफिस पर हमला बोल दिया है। आईबीएन नेटवर्क के इन दोनों चैनलों के मीडियाकर्मियों को शिव सैनिकों मारा-पीटा और कपड़े तक फाड़ डाले। आईबीएन आफिस के सामान और संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया। इन शिव सैनिकों ने आईबीएन के मीडियाकर्मियों को शिव सेना को लेकर निगेटिव रिपोर्टिंग न करने की चेतावनी दे डाली। बताया जा रहा है कि शिव सेना के इस तांडव से 'आईबीएन7' और 'आईबीएन लोकमत' के मुंबई आफिस का कामकाज कई घंटे ठह रहा। मीडिया के घर में घुसकर शिव सेना के लोगों द्वारा किए गए इस तांडव से मुंबई समेत पूरा देश स्तब्ध है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण ने शिव सेना के इस हमले की निंदा की है।
अभी तक उत्तर भारतीयों को मुंबई में निशाना बनाने वाली शिव सेना ने एक प्रमुख मीडिया संस्थान पर हमला कर संकेत दे दिया है कि वह अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है। चौथे स्तंभ को निशाना बनाना और निगेटिव रिपोर्टिंग न करने की चेतावनी देना स्पष्ट करता है कि शिव सेना खोई हुई सत्ता को हासिल करने के लिए और चुनावों में पराजय से पैदा हुई निराशा को खत्म करने के लिए एक बार फिर अपने फासीवादी एजेंडे पर चल पड़ी है। शिव सेना के राज और उद्धव, दो ठाकरे परिवारों में बंट जाने से दोनों के बीच अब होड़ सी लग गई है खुद को हिंदी विरोधी और महाराष्ट्र प्रेमी दिखाने की। इसी एजेंडे के तहत राज ठाकरे के लोगों ने हिंदी में शपथ लेने पर अबू आजमी को विधानसभा में थप्पड़ रसीद किया था। इस कृत्य की जब देश भर में आलोचना हुई। इसके बाद शिव सेना वालों ने सचिन को निशाने पर लेकर मराठी कार्ड खेला। शिव सेना के इस रवैए की इलेक्ट्रानिक मीडिया ने जमकर आलोचना की। लगता है, उसी का हिसाब करने के उद्देश्य से आईबीएन7 के मुंबई आफिस पर हमला किया गया। यह हमला किसी एक न्यूज चैनल के आफिस पर नहीं बल्कि पूरी मीडिया, खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया पर है।

मराठी न्यूज चैनल आईबीएन लोकमत के मुंबई आफिस में कार्यरत और घटना के समय मौजूद पत्रकार संदीप चह्वाण ने हमले के बारे में बताया कि हमलावर 'आईबीएन लोकमत' के एडिटर इन चीफ निखिल वागले को तलाशते-पूछते आफिस में घूम रहे थे। वे निखिल वागले को सबक सिखाने की बात कह रहे थे। उल्लेखनीय है कि बाल ठाकरे ने सचिन को लेकर जो टिप्पणी की थी, उसका जबर्दस्त प्रतिवाद निखिल वागले ने किया था। संदीप चह्वाण के मुताबिक हमलावरों के हाथ में लोहे के राड, बेसबाल बैट और क्रिकेट के विकेट थे। इस बीच, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण ने हमले की निंदा की और कहा कि हमलावरों को हर हाल में दंडित किया जाएगा। अशोक चह्वाण के मुताबिक उन लोगों को बिलकुल अंदाजा नहीं था कि ऐसा कुछ होने जा रहा है। इस हमले के पीछे जो लोग भी हैं, उन्हें सबक सिखाया जाएगा।
किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह पत्रकारों पर हमला करे। दुनिया जल्द ही देखेगी कि हम लोग क्या कार्यवाही करते हैं। महाराष्ट्र के गृह मंत्री पाटिल ने भी कहा है कि इस बार हमलावर किसी भी तरह बच नहीं पाएंगे। उन्हें कठोर से कठोर सजा दिलाई जाएगी ताकि आगे वे किसी मीडिया हाउस पर हमला करने की सोच भी न सकें। लोकसत्ता के संपादक कुमार केतकर ने कहा कि इस घटना की पूरी मीडिया इंडस्ट्री द्वारा निंदा की जानी चाहिए। महाराष्ट्र सरकार को ऐसी घटनाओं को न होने देने के लिए प्रयास करना होगा। यह बेहद गंभीर मामला है। इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस बीच, देश भर के मीडिया हाउसों ने शिव सैनिकों के इस हमले की कड़ी निंदा करनी शुरू कर दी है। मुंबई में पत्रकारों ने एकजुटता व्यक्त करते हुए ऐसे हमलों से न डरने और आगे भी शिव सेना को लेकर आलोचनात्मक रिपोर्टिंग करने का ऐलान कर दिया है।

पुणे में भी आईबीएन आफिस पर हुआ हमला
तस्वीरों से साफ है, मकसद मीडिया को आतंकित करना था : सिर्फ मुंबई में ही नहीं बल्कि पुणे में भी आबीएन के आफिस पर शिव सैनिकों ने हमला किया। दोनों जगहों पर एक साथ हमले से पता चल रहा है कि शिव सैनिकों ने हमले के लिए पूरी तैयारी की थी। वीडियो और तस्वीरों को देखने से साफ पता चलता है कि शिव सैनिक मीडिया को आतंकित करने के मकसद से यह हमला किया है। पत्रकारों के कपड़े फाड़ना, उन्हें पीटना, कंप्यूटर व अन्य सामान तोड़ना यह बताता है कि वे मीडिया को यह संकेत देना चाहते थे कि मीडिया भी शिव सेना की पहुंच से दूर नहीं है और अगर निगेटिव रिपोर्टिंग की गई तो परिणाम भुगतना पड़ेगा। मीडिया पर शिव सैनिकों के इस सुनियोजित हमले के खिलाफ पूरे देश में आक्रोश की लहर है।
हर दल के नेता शिव सैनिकों के इस कुकृत्य के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। मीडिया का मुंह बंद करने के लिए हमला करने जैसी वीभत्स कार्रवाई को राजनीतिक पतन का चरम माना जा रहा है। खबर है कि फिलहाल 7 लोगों को मुंबई पुलिस ने हमले के आरोप में गिरफ्तार किया है। मीडिया के लोग सिर्फ गिरफ्तारी से संतुष्ट नहीं है।
सीएनएन आईबीएन के एडिटर इन चीफ और वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने मांग की है कि इस बार हमले के पीछे जो बड़े नेता हैं, उनको गिरफ्तार किया जाना चाहिए और दंडित करना चाहिए। सिर्फ गिरफ्तारी से काम नहीं चलेगा। पहले भी मीडिया पर हमले के मामले में लोग गिरफ्तार हुए और जमानत पर छूट कर बाहर आ गए।

सभी तीन टिप्पड़ी bhadas4media से साभार

Saturday, September 12, 2009

एक जहाज डूबा अब किसकी बारी

अनुराग उपाध्याय
कहते हैं जब जहाज डूबने वाला होता हैं तो सबसे पहले चूहे उछल कूद करते हैं और गाहे बगाहे जहाज से कूद जाते हैं मध्यप्रदेश में बड़े-बड़े दावे कर अवतरित हुए वॉइस ऑफ़ इंडिया चैनल के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ जब पिछले बरस २००८ में यह चैनल लाँच हुआ तो इसके कर्ताधर्ताओं ने बड़ी-बड़ी बाते की हालाँकि यह बड़ बोले इस चैनल में शराबखोरी , औरतखोरी और अडीबाजी से ज्यादा कुछ नहीं कर सके ऐसे में नतीजा यह हुआ कि पहले छह महीने में छोड़ पत्रकारिता सब कुछ करने वाले यह लोग वॉइस ऑफ़ इंडिया रूपी जहाज को हिचकोला खाते देख इधर-उधर कूदना शुरू हो गए जो लोग लंगर कि तरह इसे थामे हुए थे वे असल पत्रकार थे और डूबते जहाज के अंतिम वक़्त तक साक्षी बने रहे मध्यप्रदेश में वॉइस ऑफ़ इंडिया न्यूज़ चैनल के डूबने से कुछ मीडियाकर्मियों को समस्याए आना लाजिमी हैं लेकिन धैर्य से वह विषम परिस्थितियों से उबर पाएंगे ऐसी कामना भी हमें करना चाहिए टेलीविज़न चैनल्स पर जिस समय ९/९/९ के संयोग कि खबर चल रही थी उसी वक़्त भोपाल के एम्.पी.नगर में वॉइस ऑफ़ इंडिया चैनल के दफ्तर पर ताला लटकाया जा रहा था इस चैनल के इसी दफ्तर में लड़कियों के साथ यहाँ के प्रमुख ने जिस तरह का बर्ताव किया था उससे तब ही जाहिर हो गया था कि चैनल पर शनि की वक्री द्रष्टि पड़ चुकी हैं और देर सवेर यह चैनल बंद जरुर होगा वी.ओ.आई के बंद होने से ठीक दो हफ्ते पहले मध्यप्रदेश के लोकप्रिय रीजनल चैनल सहारा समय ने अपने यहाँ से जिस तरह रिपोर्टस और कैमरामैन को चलता किया उसके बाद यह तय हो गया हैं कि मध्यप्रदेश का बाजार दो से ज्यादा रीजनल चैनल्स को झेलने कि क्षमता नहीं रखता हैं वॉइस ऑफ़ इंडिया दूसरा रीजनल चैनल हैं इससे पहले वॉच न्यूज़ चैनल भी इसी तरह बंद हुआ इन दोनों चैनल कि टीम बहुत अच्छी थी लेकिन इनके टीम लीडर ऐसे नहीं थे जो चैनल चला सके ऐसे में सवाल उठता हैं कि वॉच न्यूज़ और वॉइस ऑफ़ इंडिया के बाद अब कौन? मध्यप्रदेश में इस वक़्त सहारा समय चैनल दर्शकों कि पहली पसंद हैं और दूसरे नंबर पर ईटीवी हैं एक अन्य साधना न्यूज़ चैनल भी अपने अस्तित्व कि तलाश में संघर्ष कर रहा हैं, लेकिन इसके शीर्ष पर अब वे ही लोग सवार हैं जो "वॉइस ऑफ़ इंडिया" के डूबने का कारन बने हैं इसलिए इस चैनल को लेकर भी संभावनाए कम और आशंकाए ज्यादा नजर आती हैं मध्यप्रदेश में २१ फीसदी दर्शकों के साथ सहारा समय लोगों की पहली पसंद बना हैं तो ईटीवी के पास फिक्स १७ फीसदी दर्शक हैं तीसरे नंबर पर साधना न्यूज़ उसी हाल में हैं जिस हाल में कभी वॉइस ऑफ़ इंडिया हुआ करता था मध्यप्रदेश में रीजनल चैनल देखने वाले अधिकांश लोग सहारा समय पर ही भरोसा करते हैं और वह उनकी पहली पसंद हैं इस बीच ईटीवी ने अपनी ख़बरों के फारमेट में कई तब्दिलिया की और वह नंबर दो का हक़दार बन गया इन दो चैनल्स के बाद सब कुछ भगवन भरोसे हैं ऐसे में जी न्यूज़ मध्यप्रदेश में अपना रीजनल न्यूज़ चैनल लाने जा रहा हैं उसका जी छत्तीसगढ़ प्रयोग सफल रहा हैं और वह दमख़म के साथ मध्यप्रदेश पर कब्जा करना चाहता हैं, जाहिर हैं जी का शटर अप हुआ तो किसी एक चैनल का शटर डाउन हो जायगा वैसा भी दौड़ का नियम यही हैं कि पहले सबसे पीछे दौड़ रहे धावक को पीछे छोडो और आगे बढो मध्यप्रदेश में भी मसला अब "पीछे छोडो और आगे बढों" का हैं सहारा और वीओआई से बेरोजगार हुए इन बेहतरीन रिपोर्टस की शानदार टीम भी इस जुमले पर अमल करेगी और कुछ नया करने में जुट जायेगी क्योंकि मध्यप्रदेश में "कार्यशील और चरित्रवान" पत्रकारों की पूछ परख हमेशा रही हैं वैसे भी जिन लोगों को डूबते जहाज पर सवारी करने का तजुर्बा हो जाए वह अगली बार ऐसा नहीं होने देते, रही बात चूहों कि तो वे फिर उछल कूद में लग गए हैं एक बार फिर डूबते जहाज से बाहर आने के लिए
-लेखक अनुराग उपाध्याय इंडिया टीवी में कार्यरत हैं,
यह लेख http://anuragupadhyay.com/ से साभार लिया है

Friday, August 21, 2009

ब्राम्हण पत्रकारों के भोज का सच

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को बदले जाने के लिए ब्राम्हण पत्रकारों ने लाबिंग शुरू कर दी हैं इंदौर के पैसे से भोपाल में पत्रकारों के लिए एक भोज रखा गया था भोज तो दरसल एक बहाना था इंदौर के एक बीजेपी नेता ने इस सब को प्रयोजित किया और ब्राम्हण पत्रकारों को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए ब्राम्हण मुख्यमंत्री को वक़्त की जरूरत बताया हलाकि इस आयोजन के जरिये एक तीर से दों निशाने साधने की कोशिश की गयी हैं एक तो ब्राम्हण मंत्रियों को इसके जरिये सीएम शिवराज सिंह से लड़वाने की कोशिश हैं और दूसरा अगर यह लडाई शुरू होती हैं तो इसका सीधा लाभ इंदौर को दिलवाया जाये और मालवा के दमदार नेता कैलाश विजयवर्गीय को मुख्यमंत्री बनवाया जाये इस सब जोर गणित के पीछे ब्राम्हण पत्रकारों को मोहरा बनाया जा रहा हैं और गरीब गुरबे पत्रकार अपने ही बीच के कुछ दल्ले नुमा पत्रकारों की चाल को भोज करने के बाद ही समझ पाए भोज में शामिल अधिकांश पत्रकार भोज कर वापस हो लिए क्यूंकि इस आयोजन में जो चहरे सामने आये उनमे कुछ घोषित दलाल , कुछ घोषित शराबी और कुछ घोषित स्त्रीलोलुप पत्रकार थे इनमे वे लोग भी शामिल हैं , जिनके दामन पर अमानत में खयानत और लड़कीबाजी तक के दाग लगे हैं इस भोज में गए पत्रकार सुरेश शर्मा ने बताया की मुझे तो इनका एजेंडा तक नहीं पता था , मुझे तो अचानक भाषण देने को खडा कर दिया गया इसका औचित्य क्या था मुझे तो यह तक नहीं पता था ब्राम्हण भोज के लिए लाखों रूपये एक इन्दौरी दलाल ने दिए थे उनका मकसद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ ब्राम्हण पत्रकारों को एकजुट करना और इस बात को फैलाना था कि शिवराज के सामने ब्राम्हण मंत्री अनूप मिश्रा , गोपाल भार्गव और लक्ष्मीकांत शर्मा अब एक चुनौती हैं लेकिन इस आयोजन में बिचौलिये और कुछ चरित्रहीन ब्राम्हण पत्रकारों के सामने आने से यह शो फ्लॉप हो गया , अच्छी संख्या के बावजूद सभी ब्राम्हण पत्रकारों को एक राए नहीं किया जा सका इसमें शामिल दो पत्रकारों को लाल बत्ती चाहिए थी तो आठ को सरकारी फिल्म के टेंडर तो बाकि को सप्लाई ऑडर चाहिए थे सब के अपने अपने एजेंडे थे इनमे से २७ लोग ऐसे थे जो पत्रकार बिरादरी में सिर्फ काले काम को छुपाने के लिए हैं एक एसा था जिसके चेहरे पर उसके काले कारनामो कि कालिख साफ़ नज़र आती हैं इनमे कुछ अपने कारनामों से इतने बदनाम हो चुके हैं कि वे ऐसे आयोजन के जरिये अपने अस्तित्व को तलाश रहे हैं इनमे से कुछ कि चिंता यह थी कि उनकी सरकारी नौकरी वाली बीवियों के तबादले न हो और अगर हो गया हैं तो उसे कैसे रुकवाया जाये ब्राम्हण पत्रकारों कि एकता के नाम हुए इस आयोजन से तमाम सारे उन पत्रकारों ने दूरी भी बनाये राखी जो सिर्फ पत्रकारिता में यकीन रखते हैं इंदौरी अंदाज में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलने के इस अभियान कि वैसे तो अपने आप ही हवा निकल गयी क्यूंकि २७ लोग मिलकर क्या खिचडी पका रहे हैं , यह बाकि पत्रकारों कि समझ में आ गया कार्यक्रम में शामिल मनोज मिश्रा ने कहा कि "दलालों और चरित्रहीन के रहते ऐसा कोई आयोजन सफल नहीं हो सकता क्यूंकि पत्रकारिता किसी जाती विशेष से जुडा मसला नहीं हैं हम सारे समाज के हैं सिर्फ ब्राम्हणों के नहीं जो लोग भी इस आयोजन के पीछे हैं वे भी समझ ले पहले पत्रकार को पत्रकार बन जाने दो फिर उसे ब्राम्हण और राजपूत या दीगर जात में बाँटना वैसे भी उस आयोजन में जो लोग सामने थे उनके लक्षण ब्राम्हणों वाले थे नहीं कुछ कि काम वास्नाये उनके चेहरे पर थी तो कुछ सुबह से ही दारु पी कर चले आये थे" इस आयोजन से उम्मीद थी कि सारे ब्राम्हण कलमघिस्सू एक हो कर राजनीती में बदलाव की नई इबारत लिखेंगे लेकिन हुआ ठीक उसका उल्टा इनमे जिन चेहेरों को सामने लाया गया उनके कारनामों से ब्राम्हण जाति और पत्रकारिता दोनों शर्मसार हुई सो अधिकांश ब्राम्हण पत्रकारों ने भोज किया और अपने-अपने घर खिसक लिए आयोजन स्थल पर जो लोग बचे थे वे सोंचे ,वे क्या वाकई पत्रकार हैं और क्या सिर्फ पत्रकारिता कर रहे हैं या इसकी आड़ में उनकी मंशा कुछ और हैं

(साभार दखल नेट)

Tuesday, May 19, 2009

विश्व प्रेस स्वतन्त्रा दिवस पर मध्यप्रदेश में कई आयोजन

भोपाल। ३ मई का विश्व प्रेस स्वतन्त्रा दिवस था, इस अवसर पर मप्र में कई आयोजन हुए। इनमे सबसे ज्यादा आयोजन चंबल अंचल में हुए। सभी आयोजन में बड़ी संख्या में स्थानीय पाटकर शामिल हुए। खासतौर से ग्वालियर में आयोजित कार्यक्रम काफी अच्छा रहा। इस दौरान प्रदेश संयुक्त सचिव विनय अग्रवाल मोजूद थे। इस अवसर पर पर्यावरण के लिए भी एक रैली निकलने का संकल्प लिया। कार्यक्रम में अध्यक्षता की संभागीय अध्यक्ष सुरेश शर्मा ने।

पत्रकार जगत में कौन कहाँ

भोपाल। पत्रकारिता जगत में हमेशा की तरह कई बड़े फेरबदल हुए। इनमे सबसे ज्यादा चर्चा में रहा देशबंधु में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार रवि अवस्थी का चेंज। उन्होंने कुछ दिन पहले पीपुल्स ज्वाइन कर लिया है। वे लंबे समय तक देशबंधु में रहें। वहीं फाइन टाईम्स के जेमन दीक्षित अब राज एक्सप्रेस में चले गए हैं। उनके साथ फोटोग्राफर नवीन शर्मा ने भी फाइन टाईम्स छोड़ दिया है। इधर एक बार फ़िर पूर्वा सिंघई ने संध्या प्रकश छोड़ दिया है। फाइन टाईम्स को एक झटका लगा अभिशेख अज्ञानी के रूप में, उन्होंने अग्निबाण ज्वाइन कर लिया है।
स्रोत-श्रमजीवी पत्रकार बुलेटिन

Saturday, May 16, 2009

बड़े पत्रकार लड़की के साथ ?

मध्य प्रदेश के एक प्रसिद्द चेनल के प्रमुख जो दिल्ली में बैठते हैं १३ मई को प्रदेश के सिहोर जिले के एक होटल में लड़की के साथ पुलिस के हत्थे चढ़ गये। इनके साथ जो लड़की थी वह भी दिल्ली से आई थी। इनको पुलिस से बचाने में एक स्थानीय पत्रकार ने अहम् भूमिका निभाई। आपको याद दिला दें की ये वाही पत्रकार हैं जो पहले एक तलाकशुदा लड़की को पत्रकार बनाने के नाम पर उसका शारीरिक शोषण कर चुके हैं और काफी चर्चा में भी रहे थे। खेर अपन आते हैं मुद्दे की बात पर की दिल्ली के बड़े पत्रकार सिहोर के बड़े होटल में क्या कर रहे थे? बताया जाता है की ये एक मीटिंग के नाम पर भोपाल आए थे लेकिन भोपाल के बजाय ये सिहोर में रुक गए और अपने साथ लाये एक सुंदर सी लड़की के साथ सुखद पल बिताये। दिक्कत तब हो गई जब किसी ने इनके सुखद पलों से जलभुनकर पुलिस को सुचना कर दी। पुलिस ने भी बिना देर किए पत्रकार महोदय को होटल में धर दबोचा, लेकिन इसी दरम्यान भोपाल में बेठे नामी पत्रकार को इसकी जानकारी मिल गई तो अपने आका को बचाने के लिए तत्काल वहां पहुंचे और मामले को रफा दफा काज दिया। सवाल ये है की दिल्ली वाले पत्रकार के नाम की नए- नवेले पत्रकार दुहाई देते हैं लेकिन इस प्रकार की हरकत होंगी तो कुछ ऐसीही परिपाटी बन जायेगी। गोरतलब है की १३ मई को न्यूज़ चेनल से एग्जिट पोल दिखाने से रोक हटी थी और तमाम बड़े चेनल और पत्रकार देश की तस्वीर पेश कर रहे थे और वे मौज कर रहे थे।

Thursday, February 05, 2009

उन्‍होंने नाकाबिल को काबिल बना दिया।

नया दिन होगा, नई रात होगी,
नए सिलसिले की शुरुआत होगी,
मुसाफिर हो तुम भी,
मुसाफिर हैं हम भी,
किसी मोड़ पर मुलाकात होगी।
ये लाइनें हैं मध्‍यप्रदेश में इलेक्‍टानिक पत्रकारिता को एक मुकाम देने वाले राजेश बादल की। उन्होंने हाल ही में भारी मन से वॉइस ऑफ इंडिया से इस्‍तीफा तो दे दिया, लेकिन हमेशा की तरह मन में साथियों के लिए जो भाव रहे उसको अभिव्‍यक्‍त नहीं कर पाए। नतीजतन दफ़तर छोडने से पहले उन्‍होंने सभी साथियों को ईमेल भेजकर दिल के गुबार को उसमें व्‍यक्‍त किए। उनके बारे में कुछ कहूं ऐसा मुझमें सामर्थ्‍य तो नहीं, लेकिन गुरु-शिष्‍य परंपरा को कैसे भूल जाउं। उनके इस ईमेल और उसमें लिखी हुई कविता को पढकर याद आता है वो दौर जब मैं और वे साथ थे। अगर ये कहूं कि वे मुझे कलम पकडना सिखा रहे थे तो कुछ गलत नहीं होगा। प्रस्‍तुत उस सुनहरे अध्‍याय की कुछ यादें---
नाकाबिल को काबिल बना दिया
मुझे पत्रका‍रिता का ककहरा सिखाने वाले राजेशजी थे और उन्‍होंने जो सिखाया उसका अनुसरण कर आज दैनिक भास्‍कर जैसे बैनर में काम कर रहा हूं। लेकिन दुख इस बात का है कि हमारे जैसे नौजवानों को राह दिखाने वाले चलते-फिरते संस्‍थान को एक ऐसा संस्‍थान नहीं मिल पा रहा है, जहां उनके सिद्वांतों को मानने वाला कोई हो । खैर स्थिति क्‍या रही होगी ये बता पाना मुश्‍िकल है लेकिन मैंने जो दो साल बादलजी के साथ बिताएं वे निश्चित ही मेरी पत्रकारिता के शैशवकाल के थे। वर्ष 2001 में जब आज तक चैनल लांच होने वाला था, उसी दरम्‍यान मेरा उनके साथ जुड़ना हुआ। 25 दिसम्‍बर 2000 को उनसे मेरा पहली बार सामना हुआ। मित्र घनश्याम के माध्‍यम से मैं उनसे मिला। जब पहली बार उन्‍हें देखा तो अपने मित्र से कहा कि यार यह तो वहीं बादलजी हैं जो टीवी पर दिखते हैं। तो मित्र ने मेरा कौतुहल शांत करते हुए कहा कि बिल्‍कुल ये वही बादलजी हैं जो टीवी पर आते हैं। बस इसके बाद सफर शुरु हो गया पत्रकार बनने का। पहला मौका मिला कैमरा असिसटेंट का, लेकिन मन में पत्रकार बनने की इच्‍छा बलवती जा रही थी। मेरे ख्‍याली पुलावों से बादलजी भी अनभिज्ञ नहीं थे इसलिए वे मुझे अच्‍छे से पढाई करने(उस समय में कालेज में था) का कहा करते थे। वे बार-बार कैमरे और एंगलों पर ध्‍यान देने का बोलते थे लेकिन मैं हूं कि अखबार पढने में और संपादक के नाम पत्र लिखने में खोया रहता था। उन्‍होंने शायद मुझमें कुछ देखा था इसलिए बिना कुछ कहे मुझे पत्रकार बनाने के गुर सिखाने लगे थे। हालांकि उस समय उनकी हर डांट मुझे बुरी लगती थी। लेकिन खुशी तब होती थी जब माखनलाल पत्रकारिता संस्‍थान के छात्र बादलजी से मिलने के लिए मुझसे प्राथर्ना करते थेतो मैं अपनी किस्‍मत पर रस्‍क करने लगता।। खैर समय बीतता गया और मैं धीरे-धीरे एक ठीकठाक कैमरामेन बनने की तरफ बढने लगा। इसी दरम्‍यान कुछ ऐसा‍ घटा कि मुझे उनका साथ छोडना पडा, लेकिन उनका हाथ मेरे उपर हमेशा रहा। उनकी हर डांट में प्‍यार था लेकिन उससे भी ज्‍यादा थी सीख और आज इस ब्‍लॉग के माध्‍यम से यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि बादलजी एक अच्‍छे पत्रकार तो हैं ही लेकिन उससे भी ज्‍यादा अच्‍छे हैं इंसान। निश्‍िचत रूप से वीओआई को उनकी कमी खलेगी और उससे भी ज्‍यादा कमी खलेगी वीओआई के स्‍टाफ को, क्‍योंकि उनका साथ छूटने के बाद मुझे भी उनकी कमी खली थी। उन्‍होंने नाकाबिल को काबिल बना दिया।
-भीमसिंह मीणा
भडास की खबर का मजमून
वीओआई के ग्रुप एडीटर बादलजी ने इस्तीफा दे दिया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अऩुसार बादलजी पर वीओआई से स्टाफ कम करने को लेकर दबाव था जिसे उन्होंने एक हद तक तो स्वीकार किया लेकिन दबाव ज्यादा बढ़ने पर इस्तीफा देना उचित समझा। वीओआई के ग्रुप एडीटर पद पर साल भर के भीतर तीन लोग बैठ चुके हैं। शुरुआत में रामकृपाल सिंह थे। उनके बाद रविशंकर बनाए गए। बाद में रविशंकर को हटाकर राजेश बादल को ग्रुप एडीटर बनाया गया। सीईओ राहुल कुलश्रेष्ठ के इस्तीफे के बाद रविशंकर को सीईओ की जिम्मेदारी दी गई। अब बादलजी के ग्रुप एडीटर पद से इस्तीफा देने से वीओआई को काफी बड़ा झटका लगा है।
बादलजी के इस्तीफे को अप्रत्याशित माना जा रहा है। बादलजी प्रबंधन के साथ मिल-जुल कर काम करने और कराने में यकीन रखते थे। वीओआई के मालिकों के साथ बादलजी की नजदीकी को देखते हुए यह कयास लगाया जा रहा था कि वे लंबी पारी खेलेंगे। कई राज्यों में वीओआई के लिए कंटेंट के साथ-साथ बिजनेस मैनेज कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बादलजी के प्रैक्टिकल एप्रोच से स्टाफ और मैनेजमेंट दोनों प्रसन्न रहा करते थे।
बादलजी के जाने के बाद से माना जा रहा है कि वीओआई को संभाल पाना अब किसी के बूते की बात नहीं रही। वीओआई में लोग वैसे ही कई महीनों से बिना सेलरी के काम कर रहे हैं। मुंबई समेत कई ब्यूरो आफिसों से स्टाफ को या तो निकाला जा रहा है या फिर लोग खुद छोड़कर जा रहे हैं। संसाधनों के अभाव में चल रहे इस चैनल के लिए बादलजी का इस्तीफा काफी बड़ा झटका माना जा रहा है।
भड़ास4मीडिया की रिपोर्ट से इस बादलजी के इस्तीफे की पुष्टि हुई है.
बादलजी ने जुलाई 2008 में वीओआई ज्वाइन किया था। बादलजी ने इस्तीफा देने के बाद सभी वीओआईकर्मियों को मेल कर कुछ इस अंदाज में थैंक्यू कहा-
साथियों
जा रहा हूं। सबसे एक एक कर शायद न मिल पाऊं। माफ करिएगा। पर आपके साथ जो भी वक्त बीता, अच्छा रहा। बहुत कुछ सीखने को मिला। कई बार काम को लेकर गुस्से में कुछ कहा हो तो भूल जाएं। मेरे दिल में आप सभी को लेकर बेहद सम्मान है। जानबूझ कर मैंने आपको ठेस पहुंचाने का कोई काम नहीं किया। आप सबके सहयोग से इतने कम समय में पांच-छह चैनलों को शुरू कर पाए। अच्छी पत्रकारिता करने की कोशिश की। ये हमेशा याद रहेगा।
नया दिन होगा, नई रात होगी,
नए सिलसिले की शुरुआत होगी,
मुसाफिर हो तुम भी,
मुसाफिर हैं हम भी,
किसी मोड़ पर मुलाकात होगी.

हर तारीख पर नज़र

हमेशा रहो समय के साथ

तारीखों में रहता है इतिहास