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Wednesday, March 10, 2010

क्या हैं अवधेश बजाज होने के मायने?


ब्लॉग की बात
कभी भई कोई बड़ा नहीं होता और न ही कोई एसा होता है की जिसके बिना काम रुक जाए। दरअसल हर शख्स का एक समूह होता है, जो उसके लिये सोचता है और कुछ करता भी है। कई बार ऐसा होता है की कोई व्यक्ति व्यवस्था पर भरी पड़ जाता है। ऐसे शख्स को अलग- अलग नामों से भी जाना जाता है। कभी-कभी ऐसे शख्स को लेकर बहस छिड़ जाती है और उसमें शामिल होते हैं ब्लॉगर। भोपाल से संचालित दखल ने हल ही में पीपुल्स अख़बार के मीडिया सलाहकार बने अवधेश बजाज को लेकर एक आर्टिकल लिखा है। जिसे शहर भर में चटकारे लेकर पड़ा जा रहा है। इस आर्टिकल को लिखा है मोतीलाल ने। जो की दखल के नियमित लेखक हैं। पेश है हुबहू दखल का वह आर्टिकल। इसको पड़ने के बाद तय जनता खुद तय करे की क्या जो हुआ वह सही था?
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क्या किसी पत्रकार का ऐसा खौफ हो सकता हैं कि अगर किसी संस्था से जुड़े तो वहां का संपादक और पत्रकारिता की आड़ में तेल बेचने वाले और बस चलने वाले लोग मैदान छोड़ कर भाग जाएँ जी हाँ ऐसा ही हुआ हैं भोपाल के पीपुल्स समाचार में जब वहां वरिष्ठ पत्रकार अवधेश बजाज सलाहकार बन के पहुंचे तो संपादक राघवेन्द्र सिंह अपनी टीम सहित मैदान छोड़ कर भाग गए जो लोग अवधेश बजाज के साथ काम कर चुके हैं या उन्हें जानते हैं उन्हें पता हैं यह शख्स वर्कएडिक्ट हैं इसे काम का नशा इतना हैं कि १२ से १८ घंटे तक कुर्सी पर बैठकर काम करना इसे आता हैं यह अख़बार के पन्ने के तेवर और कलेवर दोनों को बदलना जनता हैं, यही वजह हैं कि अवधेश बजाज के विरोध में तमाम वे लोग खड़े मिल जायेंगे जो पत्रकारिता कि आड़ में छोड़ पत्रिकारिता सब कुछ करते देखे जा सकते हैं बजाज ने बीस सालों में कई संस्थानों को जमीन से उठा के खड़ा किया और जब बजाज वहां से निकले तो वे संसथान वापस जमीन पर लेटे नजर आए आप को यकीन न हो तो भोपाल नवभारत और जागरण का हश्र देखा जा सकता हैं बजाज ने इन दोनों अख़बारों को जिस बुलंदियों पर पहुचायां था वो काम उनके बाद न तो मलय श्रीवास्तव के बूते का था ना पंकज पाठक के और ना ही मृगेंद्र सिंह के बजाज की चर्चा हम यहाँ पीपुल्स समाचार को लेकर कर रहे हैं बजाज की आमद के बाद इस अख़बार में जो परिवर्तन आयें हैं वे उसे अचानक दैनिक भास्कर के समकक्ष ले आयें हैं बजाज पीपुल्स संभालेंगे इस खबर ने ही कई लोगो का हाजमा बिगड़ दिया, भोपाल में बंडी और चश्मा पहन कर कई धंधे बाज बुद्धिजीवी पत्रकार बन गए हैं ऐसे ही एक बुद्धिजीवी भोपाल के चारइमली इलाके में बजाज को कोसने में लगे हैं इन साहब ने अपने कुछ दलाल साथियों के जरिये पीपुल्स के मालिकान तक खबर भेजी कि जिसे रख रहे हो वो शेर नहीं दीमक हैं अब सवाल उठता हैं अवधेश बजाज शेर हो या दीमक भाई तेरे पेट में क्यूँ दर्द हो रहा हैं यह बंडीबाज पत्रकार अकेले नहीं थे जिनके पेट में बजाज ने जुलाब का काम किया हैं ऐसे न जाने कितने बहरूपिये पत्रकार हैं जो बजाज के पासंग भी नहीं हैं लेकिन उनके बारे में बकवास जरुर करते हैं एक और चरित्रहीन पत्रकार भोपाल में हैं जिन्हें दो सालों में दो बार महिलाओं के जूते खाने पड़े हैं इनका मुख्य काम दलाली हैं इन्हें भी अवधेश बजाज से खासी परेशानिया हैं इन्होने पीपुल्स खबर भिजवाई कि गलत आदमी को रख रहे हो लेकिन कहते हैं हाथी की मदमस्त चल पर कुत्तों के भोंकने का असर नहीं होता ...... और यही हुआ , बजाज पूरी मस्ती से अपने काम में लगे हैं यहाँ बता देना जरुरी हैं बजाज को कोसने वाले दूसरे साहब दो साल पहले एक स्टिंग ओपरेशन में फंस गए और पत्रकार के रूप में छुपा औरतखोर सबके सामने आ गया तब यह चरित्रहीन सबसे पहले अवधेश बजाज के ही चरण चुम्बन करने पंहुचा था बजाज ने जब ऐसे घटिया आदमी का साथ देने से मना किया तो यह उनके विरोधी हो गए हालाँकि बजाज सामने हो तो यह चाँद लम्हों में अपना पेंट गीला कर लेता हैं बजाज के किस्से का हाल भी उस कहावत जैसा हो गया हैं कि "सूप बजे तो बजे यहाँ तो सौ छेद वाली चलनिया भी बज रही हैं " अवधेश बजाज का खबरों के प्रति समर्पण और काम करने का विशिष्ठ अंदाज उन्हें तमाम लोगो से अलग कर देता हैं यही वजह हैं कि वे अपने समकालीन पत्रकारों में एक अलग स्थान रखते हैं
बजाज कि नजर कुछ पंक्तियाँ ........
हमारी वफायें तुम्हारी जफ़ाओं के सामने
जैसे छोटा सा दिया तेज हवाओं के सामने
नेज़े पर भी हमेशा बुलंद रहा सर मेरा
झुका नहीं कभी झूठे खुदाओं के सामने

मप्र विधानसभा में बढेगी पत्रकारों की सुविधा

kya ho suvidhaye iske liye banai 6 sadsyeey samiti।
भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा में अब पत्रकारों की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जाएगा। ये तय hua mangalwar ko विधानसभा में hui patrkar deergha samiti की baithak main। ये baithak mangalvar ko विधानसभा upadhyksh dr harvansh singh की adhykshta में sampann hui। harvansh singh ne kaha की विधानसभा ke covrage ke douran पत्रकारों की सुविधाओं का paryapt ध्यान रखा jaana chahiye। unhe kisi tarh की pareshani nahi hona chahiye। unhone kaha की niymit roop se nikalne vaale samachar patron ke pratinidhiyon ko hi patrkar deergha ke pravesh patr prdan kiye jaaye। is avsar par पत्रकारों ke sthai photo yukt prvesh patr jaari karne ke maapdand neeti sambandhi prkriya ke niytan v naveen aavedan patron par vichar kar nirnay lene ke liye 6 sadsyeey up samiti का gathan kiya gaya।
is baithak में bani us samiti में patrika ke state beuro cheif dhanjay prtap singh, star news ke brijesh rajput, sharad dwedi, dinesh nigam, ranjan shrivastav ke saath saaini ks shamil hain। paden sachiv suchna adhikari deepak duby honge। samiti dus din में apna prtivedan patrkar deergha salahkar samiti ko soupegi।

पत्रकारिता के पर्चे में पकड़े गए नकलची

भोपाल. बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में चल रहीं पत्राचार पाठच्यक्रमों की परीक्षाओं में गड़बड़ियां देखने में आ रही हैं। मंगलवार को पत्रकारिता पाठच्यक्रमों के पर्चे में उड़नदस्ते ने परीक्षार्थियों के पास से नकल सामग्री बरामद की। परीक्षा केंद्र और डच्यूटी कर रहे कर्मचारियों की योग्यता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। विवि के शारीरिक शिक्षा संस्थान में पत्राचार के एमजेएमसी और बीजेएमसी पाठच्यक्रमों की परीक्षाएं कराई जा रही हैं। मंगलवार को इस परीक्षा में नकल की सूचना मिलने पर उड़नदस्ते ने यहां निरीक्षण किया। उनके आते ही परीक्षा केंद्र में हड़कंप मच गया। दस्ते ने हर छात्र की तलाशी ली, जिसमें दो छात्रों के पास से नकल के बड़े पर्चे बरामद किए गए। उड़नदस्ते ने वीक्षकों की लापरवाही पर भी आपत्ति ली और सभी छात्रों को पूरी तलाशी लेने के बाद प्रवेश कराने के निर्देश दिए।
अपात्र करा रहे परीक्षा
विश्वविद्यालय ने परीक्षा कक्ष में वीक्षक की डच्यूटी के लिए जिन कर्मचारियों को नियुक्त कर रखा है, वे इसकी पात्रता ही नहीं रखते हैं। परीक्षा कक्ष में पत्राचार संस्थान में टच्यूटर किरण त्रिपाठी, शारीरिक शिक्षा संस्थान में कोच के पद पर पदस्थ नितिन गरुड़, खेल अधिकारी खलील खान वीक्षक की डच्यूटी कर रहे हैं।
कोई जवाब नहीं
कुलसचिव डॉ. संजय तिवारी ने कहा कि संबंधित विषय के शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं इसलिए उन्हें समन्वयक बनाया गया है। हालांकि अन्य सवालों पर वे चुप्पी साधे रहे।

Monday, December 14, 2009

इंदौर प्रेस क्लब पत्रकारिता कम राजनीती का अड्डा ज्यादा


भोपालइंदौर प्रेस क्लब की पानी गरिमा कभी हुआ करती थी, लेकिन बीती कुछ वर्षों में ये अर्श से फर्श पर आ गई है। यहाँ पत्रकारिता सीखने अब कोई नही आता। हाँ पहले जरुर वे पत्रकार जो करियर की शुरुआत करते थे, यहाँ आया करते थे की शायद कोई वरिष्ठ पत्रकार मिल जाए जो एकाध स्टोरी बता देन या फ़िर कोई स्टोरी आईडिया बता दे। लेकिन अब ऐसानही होता क्योंकि प्रेस क्लब के सदस्य इन दिनों चुनाव में व्यस्त हैं। पुरी पोलखोल रहे हैं इंदौर के अग्नि ब्लास्ट के सम्पादक मुकेश ठाकुर।
पड़ें-प्रेस क्लब में भटकती पत्रकारिता की आत्मा

Thursday, December 10, 2009

अब सबसे पहले आम आदमी मीडिया के दरवाजे खटखटाता है

पिछले कुछ वर्षो से मीडिया की जिस तरह से आलोचना हो रही है, उसे उसके सरोकार और दायित्वबोध की याद दिलाई जा रही है, वह बात हैरत में डालने वाली है। यह किसी भी क्षेत्र की बढ़ती ताकत का ही सबूत है यह इसे साबित करता है कि मीडिया से लोगों की अपेक्षाएं बहुत बढ़ गई हैं कि बाकी स्तंभों से ज्यादा याद उसकी होती है । लोकतंत्र के तीन संवैधानिक स्तंभों से उपजी निराशा भी शायद इसका कारण है कि लोग हर बीमारी को मीडिया ताकत से ठीक करना चाहते हैं । पहले चलन यह था कि सभी दरवाजों से निराश आदमी अखबार के दफ्तर में आता था । आज वह सबसे पहले अखबार या निजी चैनल के दफ्तर पहुँचकर न्याय मांगता है । स्टिंग आपरेशन और भ्रष्टाचार कथाओं तक पत्रकारों की पहुँच खोज से कम, जनता के सहयोग से ज्यादा सफल हो रही है ।लोकतंत्र के प्रति हमारी व्यापक प्रतिबद्धता के बावजूद उसके तीनों स्तंभों-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के प्रति आम जनता का नैराश्य बढ़ा है । सामाजिक बदलाव के दौर से गुजरता देश जहाँ तेजी से आर्थिक प्रगति कर रहा है, वहीं समाज में असमानता भी बढ़ी है । ऐसी विविध स्तरों वाली सामाजिक रचना हमारे लिए चिंतन और चुनौती दोनों का विषय है । शायद यही कारण है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में निरूपित किए जा रहे मीडिया के प्रति लोगों की उम्मीदें और शिकायतें बहुत बढ़ गई हैं । पिछले १० वर्षो का समय सूचना और मीडिया के व्यापक प्रसार का है तो उससे बढ़ती जा रही अपेक्षाओं का भी है । राजनीतिक तंत्र के प्रति अनास्था का विस्तार तो लंबे समय से जारी है, किन्तु धीरे-धीरे प्रशासन और न्यायपालिका के प्रति भी ऐसे ही भाव रेखांकित किए जाने लगे । संवैधानिक तंत्र के प्रति उपजे नैराश्य ने मीडिया को बहुत ही अपेक्षाओं का केन्द्र बना दिया। जरा कड़ी भाषा में कहें तो मीडिया एक ऐसा कंधा है जिसकी तलाश में हर आदमी है । मीडिया ही आपकी लड़ाई लड़े यह भाव प्रखर हो रहा है । दृश्य माध्यमों के हल्लाबोल ने इसे एक ऐसे शक्ति केन्द्र में तब्दील कर दिया है - जो आपकी हर समस्या का समाधान कर सकता है । उम्मीदों की यह बढ़ती हुई सीमारेखा, प्रभुवर्गो तक सीधी पहुँच, सवाल पूछने या खड़ा करने की ताकत ने मीडिया की महिमा बढ़ा दी है । आज मीडिया चौतरफा आलोचना का केन्द्र बन रहा है तो उसका सीधा कारण है कि वह जन अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रहा है । सूचना, शिक्षा, मनोरंजन से आगे उससे यह भी अपेक्षाएँ की जा रही हैं कि वह नैतिक पुलिस का काम करे । हर अन्याय से जूझे । आम आदमी प्रश्नों को उठाए। जबकि उसका अर्थतंत्र और बाजार की बढ़+ती शक्ति उसे पूर्णतः जनधर्मी रवैया अपनाने से रोकती है । बावजूद इसके मीडिया गहरे सामाजिक सरोकारों से जुड़कर काम कर रहा है । तमाम मुद्दों को सामने ला रहा है । भ्रष्टाचार, जनसुविधा के अभाव, संवेदनहीनता की कहानियाँ, स्टिंग ऑपरेशन, अपराध के पीछे चेहरों को मीडिया ही उजागर कर रहा है । कई मामलों में प्रशासन, पुलिस और सरकारी तंत्र से पहले पहुँचकर मीडिया अपने इस दायित्वबोधकी पुष्टि भी करता है । इस संदर्भ में खबरों को संज्ञान में लेकर दायर जनहित याचिकाएँ भी बिनी जा सकती हैं । मीडिया से बढ़ती जा रही उम्मीदें पूरा कर पाना संभव नहीं है । जाहिर है लोगों में मीडिया के प्रति असंतोष गहराता जाता है । नेता, पुलिस, बाबूराज से तंग लोग बड़ी उम्मीदों से चौथे स्तंभ की तरफ देखते हैं । वे यह आशा रखते हैं कि मीडिया उन्हें न्याय जरूर दिलाएगा । मीडिया ऐसे प्रसंगों पर संवेदनशीलता का रूख अपनाकर अपनी जनपक्षधरता का अपेक्षित प्रदर्शन भी करता है । जिससे मीडिया सत्ताधीशों, प्रशासन और प्रभुवर्गो के निशाने पर आ जाता है । यदि वह इनमें से किसी के दबाव में आ जाता है तो उसे आम आदमी या पीड़ित पक्ष की आलोचना का केन्द्र बनना पड़ता है । ऐसे में मीडिया के लिए तटस्थ रहकर अपना ईमानदार कार्य संपादन बेहद कठिन हो जाता है । हालात ऐसे हैं कि उसे हर हाल में आलोचना ही भुगतनी है । भ्रष्टाचार में आकंठ लिप्त राजनेता, अधिकारी भी मीडिया को नैतिक प्रवचन देने से बाज नहीं आते । मीडिया के दायित्वबोध पर जब ऐसे लोग वक्तव्य देते हैं तो बहुत दया आती है । प्रशासनिक-राजनैतिक तंत्र में पसरी संवेदनहीनता, संवादहीनता, भ्रष्टाचार, घूसखोरी कुछ ऐसे कारण हैं जिसके चलते मीडिया का उपयोग करने की प्रवृत्तियाँ बढ़ी हैं । इस उपयोगितावाद में मीडिया के लिए भी अच्छे-बुरे विचार मुश्किल हो जाता है । खबर जल्दी देने की त्वरा में कई बार तथ्यों की पूरी तरह पड़ताल नहीं हो पाती है । इस भ्रष्ट तंत्र में शामिल लोग भी एक-दूसरे के खिलाफ खबरें छपवाने के लिए मीडिया के इस्तेमाल की कोशिशें करते हैं । खबर पाने का लोभ शायद ही कोई मीडियाकर्ती छोड़ पाता हो । यह आपाधानी नये तरह के दृश्य रच रही है । सामाजिक अपेक्षाओं की पूर्ति हर स्तर पर करने के बावजूद कहीं न कहीं कमी रह ही जाती है । लोकतंत्र के तीन स्तंभ यदि अपनी भूमिका को पुनर्परिभाषित नहीं करते और अपने दायित्वबोध के प्रति सजग नहीं होते तो मीडिया की ताकत अभी और बढ़ेगी । यदि हमारा तंत्र संवेदनशीलता के साथ काम करे, अंतिम व्यक्ति को न्याय देने का सामर्थ्य विकसित करे तो हालात बेहतर होते नज+र आएंगे । अराजक स्थितियाँ खबरों के लिए स्पेस बनाती हैं । यह गंभीरता से सोचें तो हमारी राजनीतिक-प्रशासनिक और व्यवस्था की कुछ कमियों ने मीडिया की प्रभुता का आकाश बहुत बड़ा कर दिया । अब प्रभुवर्गो की सारी शक्ति इसी मीडिया को मैनेज करने लगी है । क्योंकि कोई भी खुद को आइने के सामने खड़ा करने को तैयार नहीं है । ऐसे में हमें अपने सामाजिक सरोकारों, दायित्वों को समझकर देश के प्रशासनिक-राजनीतिक तंत्र में भी वही संवेदना जगानी होगी, जिस संवेदना से मीडिया अपने दायित्वबोध को अंजाम देता आया है। शायद आलोचनाओं की जद में आज मीडिया इसलिए भी है क्योंकि लोगों की उम्मीदें सिर्फ उसी पर टिकी है । लोगों को भरोसा है कि मीडिया ही समाज में घट रहे अशोभन को घटने से रोक सकता है । मीडिया की आलोचना का तेज होता स्वर दरअसल उसकी बढ़ती स्वीकार्यता, शक्ति का ही प्रगटीकरण है।
संजय द्विवेदी
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष हैं)

Saturday, December 05, 2009

युद्ध पत्रकारिता पर एक बेहतरीन पुस्तक

रक्षा विषयों और खासतौर पर रक्षा पत्रकारिता पर हिन्दी में, पुस्तकों का व्यापक अभाव है। आज हिन्दी के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का ही व्यापक विस्तार नहीं हुआ है। बल्कि प्रसार और पाठकों की दृष्टि से हिन्दी को व्यापक स्वीकार्यता व समर्थन मिला है। इस सबके बावजूद त्रासदी यह है कि विज्ञान और तकनीकी की पुस्तकों की तरह रक्षा विषयों पर हिन्दी में पुस्तकों के साथ ही दूसरी पठन-पाठन सामग्री अत्याधिक अल्प मात्रा में उपलब्ध है। ऐसे में छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी रायपुर द्वारा, प्रकाशित शिव अनुराग पटैरया की पुस्तक प्रतिरक्षा पत्रकारिता एक अच्छी पहल है। प्रतिरक्षा पत्रकारिता के क्षेत्र में अब तक शायद ही कोई पुस्तक हिन्दी में उपलब्ध हो। श्री पटैरया की पुस्तक इस कमी को पूरा ही नहीं करती है बल्कि प्रतिरक्षा पत्रकारिता के विद्यार्थियों के साथ ही दूसरे आम लोगों में रक्षा विषयों की समझ व सरोकार पैदा कर सकती है। प्रतिरक्षा पत्रकारिता की भूमिका में प्रसिद्ध पत्रकार और छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी के संचालक श्री रमेश नैयर ने लिखा है- प्रतिरक्षा रिपोर्टिंग हिन्दी पत्रकारिता की एक नई शाखा है, जो इधर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाती है। हिन्दी प्रतिरक्षा रिपोर्टिंग का इतिहास भले ही महाभारत काल से तलाश लिया जाए और महाभारत के महासमर का ऑखो देखा हाल बयान करने वाले संजय को प्रथम समर-संवाददाता बता दिया जाए, परंतु आधुनिक हिंदी पत्रकारिता में प्रतिरक्षा रिपोर्टिंग का क्षेत्र खाली-खाली सा दिखाई देता रहा है। सन् १९४७ के अंत में पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर किए गए आक्रमण की रिपोर्टिंग कुछ अंग्रेजी अखबारों और ऑल इंडिया रेडियो द्वारा सरकारी एजेंसियों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर की गई। पाकिस्तान द्वारा १९६५ में किए गए आक्रमण और दोनों देशों के बीच हुए युद्ध की रिपोर्टिग अंग्रेजी के साथ ही हिन्दी एवं अन्य भाषाई समाचार-पत्रों और समाचार एजेंसियों द्वारा कुछ विस्तार से की गई। फिर १९७१ में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और उसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान द्वारा पूरब और पश्चिम में एक साथ भारत के विरूद्ध मोर्चे खोल दिए जाने पर पहली बार भारतीय मीडिया ने समरक्षेत्र के बहुत निकट पहुंचकर घटनाक्रम की रिपोर्टिंग की। उस दौरान पत्रकारों ने कुछ जोखिम उठाकर युद्ध-क्षेत्र के जीवंत वृतांत प्रस्तुत किए। "धर्मयुग" के संपादक श्री धर्मवीर और साहित्य, पत्रकारिता एवं राजनीति में समान रूप से सक्रिय श्री विष्णुकांत शास्त्री ने बंगलादेश मुक्ति संग्राम का आंखो देखा जो विस्तृत विवरण सिलसलेवार प्रकाशित किया, वह हिंदी में परिपक्व "प्रतिरक्षा रिपोर्टिंग का उत्कृष्ठ उदाहरण था! परंतु तब भी भारतीय पत्रकारिता में प्रतिरक्षा रिपोटिंग की स्वतंत्र शाखा विकसित नहीं हो पाई थी। स्थितियां अब तेजी से बदल रही है। कारगिल युद्ध के बाद से भारतीय मीडिया में "प्रतिरक्षा रिपोर्टिंग" का महत्व समझा जाने लगा है। पत्रकार एवं संस्कृतिकर्मी श्रीमती शालीना चतुर्वेदी द्वारा संकलित जानकारी के अनुसार कारगिल युद्ध में मेजर पुरूषोत्तम चौबें ने दोहरी भूमिका निभाई थी। हथियारों से लैस वह युद्ध क्षेत्र में डटे ही थे, परंतु उसके साथ ही समर-रिपोर्टिंग का दायित्व भी वह समय-समय पर संभालते रहे। पत्रकार मित्रों की जान बचाते हुए ही मेजर चौबे ने शहादत दी थी। इसी प्रकार कर्नल जौली ने भी पत्रकारिता का विधिवत् प्रशिक्षण लिया मेरा ऐसे कुछ सेनाधिकारियों से परिचय रहा है, जो सेना से सेवानिवृत्ति लेकर पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हुए और प्रतिरक्षा विशेषज्ञ के रूप में नाम भी कमाया।२९ अध्यायों में बटी श्री पटैरया की पुस्तक में भारतीय महाद्वीप के संदर्भ में भारत की सुरक्षा चिंताओं को रेखांकित करते हुए, देश की सामरिक शक्ति तीनों सेनाओं थल, जल और नभ की न केवल सार्मथ्य की व्यवस्था की गई है, बल्कि अतीत में हुए रूद्धों का सिलसिलेवार विवरण भी दिया गया है। निश्चिततौर पर यह पुस्तक केवल प्रतिरक्षा पत्रकारिता के छात्रों के लिए उपयोगी होगी, बल्कि उन लोगों को भी पसंद आएगी, जो भारतीय उपमहाद्वीप के रक्षा संदर्भो को, अपनी भाषा में पढ़ना चाहते है।
sabhar-dakhal.net

Friday, December 04, 2009

गैस ट्रेजिडी पर भास्कर की अदभुत श्रधान्जली

भोपाल। दुनिया में कई काम अदभुत होते हैं कुछ नेक नियत के साथ तो कुछ ग़लत नियत के साथ। लेकिन दैनिक भास्कर ने गैस ट्रेजिडी पर जिस तरह से श्रधांजलि दी वह अदभुत है, न केवल मानवीयता के लिहाज से बल्कि पत्रकारिता में भी एक मिसाल है। शायद इसी लिए भास्कर सबसे अलग है। इसके पहले केवल नई दुनिया ने आपातकाल के समय पेज खाली देकर लोगों को सही मायने में आपातकाल का अहसास दिलाया था। इस भास्कर ने २ दिसंबर की कलि रात को हुए हादसे के लिए ३ दिसंबर के अख़बार के सभी पेज ब्लेक एंड व्हाइट रखे। ३ दिसंबर की सुबह जब लोगों ने अख़बार पड़ा तो उनको २५ साल पहले हुई घटना का अहसास हुआ। आम और खास ने उस रात को महसूस किया। इसके लिए भास्कर की टीम बधाई और साधुवाद की पात्र है। भास्कर ने ३ दिसंबर को जो कंटेंट लिया वहभी लाजवाब है। एक बानगी उस हादसे की भास्कर के द्वारा।

गैस ट्रेजिडी पर भास्कर बना नेट की दुनिया में चर्चा का विषय

गैस कांड में छा गए दैनिक भास्कर और इंडिया टीवी
भोपाल गैस त्रासदी को २५ बरस बीत गए हैं ! इन २५ सालों में मध्यप्रदेश में बहुत कुछ बदला हैं , नहीं बदला हैं तो सिर्फ गैस पीड़ितों का दुःख-दर्द इस दर्द और दुःख को इस बार खबरिया चैलनों और अख़बारों ने भरपूर जगह दी टेलीविजन चैनल्स पर इंडिया टीवी और स्टार न्यूज़ ने इसमें बाजी मरी तो अख़बारों में दैनिक भास्कर इसके कवरेज में टॉप पर बना रहा भोपाल के गैस पीड़ितों से जुड़े दुःख-दर्द को बड़े अख़बार और टेलीविजन भुला चुके थे लेकिन गैस त्रासदी के २५ साल पूरा होने पर टेलीविजन और अख़बार एक बार फिर सकारात्मक सक्रिय भूमिका में नज़र आए २५ सालों को याद कर दैनिक भास्कर, भोपाल में ब्लैक एंड व्हाइट छपा वहीँ वरिष्ट पत्रकार राजकुमार केशवानी के संपादन में गैस कांड पर एक दस्तावेज प्रकाशित किया गया हैं जिस कारण भास्कर एक बार फिर सिरमोर साबित हुआ हैं भास्कर के ऐसे प्रयोग उसे दूसरे अख़बारों से अलग बना देते हैं भोपाल गैस कांड की २५ वीं बरसी पर इस बार न्यूज़ चैनल भी पूरी तैयारी के साथ नज़र आए स्टार न्यूज़ और इंडिया टीवी ने इसमें बाजी मारी वहीँ सबसे आगे और सर्वक्षेष्ठ का दम भरने वाला आज तक इस मामलें में फिसड्डी साबित हुआ गैस पीड़ितों की आवाज बुलंद करने के लिए बने कार्यक्रम में इंडिया टीवी का "नरसंहार" इस तरह के कार्यक्रमों में सर्वक्षेष्ठ रहा दूसरे नंबर पर स्टार न्यूज़ का "टैंक नं। ६१०" रहा तीसरे नंबर पर एन डी टीवी के बेहतरीन कवरेज को माना जा सकता हैं स्टार न्यूज़ ने हांलाकि इस कार्यक्रम को बनाने के लिए अपने एक दर्जन लोगो को लगाया और भरपूर पैसा खर्च किया लेकिन इस सब के बावजूद वह उतना कैचिंग नहीं बना जितना इंडिया टीवी का "नरसंहार" भोपाल गैस त्रासदी पर बने कार्यक्रमों से एक बात फिर साफ़ हो गई कि विज्युअल , स्क्रिप्ट और कुल मिलाकर पैकेजिंग अच्छी हो तो दर्शक हर खबर देखता हैं स्टार न्यूज़ के ब्रजेश राजपूत और उनके एक दर्जन साथी "टैंक नं. ६१० को" लाव लश्कर के साथ तैयार कर रहे थे तो बाकी चैनल के रिपोर्टर अकेले अपनी कैमरा टीम के साथ लगे थे इंडिया टीवी के अनुराग उपाध्याय के "नरसंहार" और एन डी टीवी की रुबीना खान शापू के कवरेज को इस मामले पर एक मिसाल माना जा सकता हैं यह पहला मौका हैं जब चैनल और अख़बार एक साथ किसी एक जन त्रासदी से जुड़े मामले पर एक राय नज़र ही नहीं आए उन्होंने आम लोगो कि आवाज भी जमकर बुलंद की

साभार-दखल नेट

Monday, November 16, 2009

असली पत्रकार कौन वह जो जुगाड़ कर जमीन हासिल कर सके

भोपाल। राजधानी में भूमाफिया का मायना बदलता जा रहा है। अब तक केवल बिल्डर और उद्योग पति ही भूमाफिया बन्ने का हक़ रखते थे या फ़िर वही बनते थे। लेकिन अब ऐसा नही रहा। इस मामले पत्रकार काफी आगे निकलते जा रहे हैं। जब मामला जमीं का है तो फ़िर टकराव तय है। बस इसी मुद्दे को खंगाला है इंडिया टीवी के अनुराग उपाध्याय ने।
अनुराग उपाध्याय तुम आसमा की बुलंदियों से जल्द लौट आना,
हमें दो जमीन के मसाले पर बात करना हैं
यह शेर यूँ ही याद नहीं आया, भोपाल में गरीब पत्रकारों को मिलने वाली जमीन हड़पने की बात आई तो तमाम सारे वे नकचढ़े लोग जमीन पर आ गए हैं जो हमेश आसमान में रहा करते थे। एकदम ज़मीन के लिए वैसे ही टूट पड़े हैं जैसे गिद्ध या चील लाश पर टूट पड़ते हैं। जब-जब नियत में खोट हो तो ऐसी उलटबांसी देखने को मिल जाती हैं। भोपाल में राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी संस्था में इस समय घमासान मचा हुआ हैं। यहाँ कुछ प्रेस मालिक, सम्पादक सरकारी अधिकारी और कुछ बड़े पत्रकार एकदम जमीनखोर हो गए हैं। एक-एक प्लाट के लिए मारामारी मची हुई हैं। संस्था के अध्यक्ष रामभुवन सिंह कुशवाह ने प्लाट ले लिया। अपने पत्रकार बेटे अनिल सिंह कुशवाह को प्लॉट दिलवा दिया और अपने दूसरे बेटे विजय सिंह को प्लॉट दिलवाने के लिए उसके पिता की जगह शिवराज के डंपर कांड से प्रेरणा लेकर आर।बी।सिंह लिख दिया।आपको याद होगा डंपर कांड में शिवराज की जगह एस,आर,सिंह लिखा गया था यह हैं जमाने को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वालो की सच्चाई। अपने ही गरीब गुरबे साथियों के हक़ पर कुछ लोग कुंडलिया मार के बैठ गए हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सालो से सरकारी मकानों में कब्जा जमाये पत्रकारों और गरीब श्रमजीवी पत्रकारों के लिए सस्ते में ज़मीन देने की पहल की। पहले अभिव्यक्ति गृह निर्माण सहकारी समिति में लगभग सौ पत्रकारों को जमीन दी गई, उसके बाद राजधानी पत्रकार ने काम शुरू किया। इस संस्था का शुरू में काम तो ठीक चला लेकिन बाद में इसमें जमीन माफिया ने पत्रकार के रूप में प्रवेश कर लिया। एकदम परकाया प्रवेश की तरह। राम नाम की लूट मच गई। अध्यक्ष ने अपने बेटो को प्लॉट दे दिए, कई सरकारी अफसर और उनके नातेदार पत्रकारों के भेष में नजर आने लगे। हालात इतने बिगड़ गए कि संस्था के चुनाव में घमासान मच गया। शिकायत मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव राजस्व और लोकायुक्त तक पहुँच गई। उम्मीद की जाना चाहिए कि जांच में दूध का दूध होगा और गरीब पत्रकार और ज़मीन माफिया पत्रकार के बीच की जंग निर्णायक साबित हो जाएगी।शलभ भदौरिया, मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष हैं। वह कहते हैं पहले पत्रकार कालोनी में गड़बड़ हुई थी, तब देवेन्द्र खरे जैसे पत्रकार को जेल जाना पड़ा था। अब जो कुछ राजधानी पत्रकार सहकारी समिति में चल रहा हैं इसमें भी जो गड़बडिया हुई हैं उसके चलते यहाँ भी कई लोग जेल जायेंगे। शलभ भदौरिया कहते हैं 1996 में हमने सरकार से कहा था पत्रकारों को सरकारी माकन में रहने का शौक नहीं हैं, श्रमजीवी पत्रकारों को सस्ते में जमीन दी जाए। अब जमीन दी गई तो श्रमजीवी पत्रकारों की जगह अखबार मालिक, सम्पादक, कुछ जमीन चाहने वाले अधिकारी इसमें घुस गए। सारे रैकेटियर लोगो का जमावड़ा हो गया हैं। ज़मीन की बंदरबांट हो गई हैं।पूरे मसले में शलभ भदौरिया एक-एक आदमी के शपथ-पत्र की जांच करवाने की मांग कर रहे हैं ताकि गरीब श्रमजीवी पत्रकारों को उनका हक़ मिल सके।राजधानी पत्रकार गृह निर्माण समिति में मचे घमसान का सूत्रधार दैनिक छत्तीसगढ़ के ब्यूरो चीफ अतुल पुरोहित और स्वदेश के डॉ. नवीन जोशी को माना जा रहा हैं। अतुल पुरोहित कहते हैं-"यह लड़ाई बहुत आगे तक जायेगी। अध्यक्ष ने खुद प्लॉट लिया बेटो को दे दिया, भाई, भतीजे, बेटा, बेटी, पत्नी, अखबार मालिक, बिल्डर क्या इनके लिए सरकार ने जमीन दी हैं? पत्रकारों की जमीन मूल पत्रकार छोड़ सबको बाँट दी गई हैं।" स्वदेश के डॉ. नवीन जोशी कहते हैं-"क्या गड़बड़ी नहीं हुई, असल पत्रकारों के साथ नाइंसाफी हो रही हैं। ऐसे नाम हैं जिनका पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं हैं। दीपा ज्ञानचंदानी, राजकुमारी चौटरानी, दैनिक नई दुनिया के चारो मालिको को जमीन दी जा रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार एन.के.सिंह दूसरी पत्रकार कालोनी में जमीन ले चुके हैं। उनको, उनके बेटे राहुल सिंह को जमीन दी जा रही हैं। ऐसे लोगो के शपथ पत्रों की जांच हो और असल पत्रकारों को जमीन दी जाए। जमीन से जुड़े पत्रकार सीताराम ठाकुर कहते हैं-"वास्तविक पत्रकारों को उनका हक़ मिले और राजधानी पत्रकार में फर्जीवाडे के दोषी सामने आये। मैं कलेक्टर, मुख्य सचिव राजस्व से पूरे घोटाले की जांच की मांग कर रहा हूँ।"राजधानी पत्रकार गृहनिर्माण सहकारी संस्था खड़ी करने वाले सेन्ट्रल प्रेस क्लब के वरिष्ठ पत्रकार विजय दास कहते हैं-"कोई संस्था सौ प्रतिशत सही काम नहीं करती। जिन गड़बडियों की बात की जा रही हैं उसे ठीक किया जाएगा। अच्छा हैं इलेक्शन हो रहे हैं, कई सोसायटियों में तो 12 सालो से चुनाव तक नहीं हुए हैं। हम तो यही चाहते हैं मनमुटाव न हो, जो पात्र हैं उन्हें ही ज़मीन दिलाई जायेगी। हमारा सेन्ट्रल प्रेस क्लब का पैनल मैदान में हैं।"इस मामले में कलेक्टर से लेकर मुख्यमंत्री और लोकायुक्त तक शिकायते की गई हैं और कहा गया हैं कि सहकारिता कानूनों की धज्जिया कैसे उड़ती हैं। यह देखना हैं तो राजधानी पत्रकार गृह निर्माण समित के कारनामे देख ले। इस शिकायत में कहा गया हैं कि माध्यम दर्जे के असल पत्रकारों को दी जाने वाली जमीन हड़पने के लिए सौ से ज्यादा लोगो ने झूठे शपथ-पत्र दिए हैं। यहाँ गरीब पत्रकारों के प्लॉट नवभारत के मालिक सुमित महेश्वरी, संध्या प्रकाश के मालिक भरत पटेल, स्वदेश के मालिक राजेंद्र शर्मा, अक्षत शर्मा, देशबंधु के मालिक पलाश सुरजन दैनिक नई दुनिया के मालिक राजेंद्र तिवारी, सुरेन्द्र तिवारी, उनके बेटे अपूर्व तिवारी और विश्वास तिवारी हैं।ई एम एस के मालिक सतन जैन, उनके बेटे सौरभ जैन और प्रदेश टाइम्स के अजय हीरो ज्ञानचंदानी को दिए जा रहे हैं। इन लोगो को श्रमजीवी पत्रकार कैसे माना जा सकता हैं। इन लोगो के कारोबारों और संपत्तियों की जांच की मांग मुख्यमंत्री से की गई हैं।वही मुख्यमंत्री और लोकायुक्त को की गई एक अन्य शिकायत में कहा गया हैं कि मुख्यमंत्री निवास पर तैनात तीन अधिकारी भी पत्रकारों की जमीन हड़पना चाहते हैं। इन्हें दी गई सूची में कहा गया हैं कि आला दर्जे के सरकारी अफसरान कैसे राजधानी पत्रकार गृह निर्माण समिति में घुस गए इसकी जांच बेहद जरुरी हैं क्योंकि राजधानी पत्रकार गृह निर्माण के नाम पर कोई भू-माफिया सोची समझी साजिश के तहत पत्रकरों को उनके हक़ से महरूम कर रहा हैं। इन अधिकारियो की चल-अचल संपत्ति की जांच की मांग के साथ इनकी सूची और इनकी जमीन मकानों की जानकारी भी दी गई हैं। यह अधिकारी हैं- पुष्पेन्द्र शास्त्री,प्रकाश दीक्षित ,डॉ कमर अली शाह, आशिक मनवानी , उमा भार्गव , आर. एम. पी. सिंह, रोहित मेहता, शांता/प्रतिश पाठक, आस्था/लाजपत आहूजा, शोभा साकल्ले , रवि उपाध्याय, असीम/ताहिर अली, हर्षा/रामू मारोड़े, अर्चना/सुरेश गुप्ता, श्वेता/रविन्द्र पंड्या, अंजना, वनिता श्रीवास्तव IAS की पत्नी , अनिल खन्ना एस बी आई अधिकारी रिटायर्ड जमीन के लिए मची धामा चौकड़ी में सब अपने-अपने हित साधने में लगे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जब राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी समिति को जमीन देने को कहा था तो यह स्पष्ट कर दिया था कि इसमें लगभग 40 कैमरामैन को प्लॉट दिए जाए लेकिन हुआ इसका उल्टा। इनकी जगह भर लिया गया अखबार मालिको और सरकारी अफसरों को। इसी बात को लेकर पत्रकारिता से सम्बन्ध और असंबंध लोगो के बीच भिडंत हो गई और राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी संस्था एक अखाड़े में तब्दील हो गई। सहकारिता से जुड़े लोग कहते हैं कि अगर इस मामले ने तूल पकड़ा तो कई सरकारी अफसरों को लानत का शिकार बनना पड़ेगा और कई लोग सीखचों में भी नजर आ सकते हैं। जाहिर हैं जमीन हमेशा झगड़े की जड़ बनी हैं तो इस बार भी...! लेकिन मामला असली और नकली पत्रकारों का हैं तो बात बहुत दूर तक जाएगी।

क्या भूमाफिया पत्रकारों के खिलाफ भी कार्रवाई करेंगे शिवराज

भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल इन दिनों झीलों के साथ भूमि घोटालों के लिए भी जानी जा रही है। हाल ही ग्रह निर्माण समितियों को लेकर कई तरह की बातें सामने आई हैं। इनमे से बड़े पत्रकारों द्वारा छोटे प्र्त्रकारों के हक़ पर कब्ज़ा करनी की बात भावी पत्रकारों के लिए ठीक नही है। अलग-अलग वेबसाइट पर इसको लेकर काफी कुछ लिखा गया है। उन सभी को आई ४ मीडिया में साभार प्रकाशित किया जा रहा है।
भोपाल में भूखण्ड घोटाले को लेकर चर्चा में आयी राजधानी गृह निर्माण समिति के संचालक मंडल के चुनाव भोपाल स्थित होटल पलाश मे संपन्न हो गए। चुनाव में पुरानी पैनल की रणनीति खूब काम आयी और उसके 11 में से 10 संचालक विजयी घोषित हुए। परिवर्तन पैनल को एक संचालक से संतोष करना पड़ा। मतदान स्थल पर सवेरे से ही इस बात की चर्चा थी कि सेन्ट्रल प्रेस क्लब पैनल ही चुनाव में सफल होगा।
कारण साफ़ था, वो ये कि समिति में जो 226 सदस्य हैं उनमें सें अधिकतर समिति के पुराने पदाधिकारियों की कृपा से सदस्यता प्राप्त कर सके हैं और उन्हीं के कारण उन्हें कौड़ियों के मोल प्लॉट मिले हैं। यही कारण रहा कि समिति के सदस्यों ने पुराने पैनल पर भरोसा किया। समिति के नव निर्वाचित सदस्यों में रामभुवनसिंह कुशवाह, विजय दास, अरूण भण्डारी, अक्षत शर्मा, केडी शर्मा, एनके सिंह, वीरेंद्र सिन्हा सेन्ट्रल प्रेस क्लब पैनल से और सुरेश शर्मा परिवर्तन पैनल से निर्वाचित हुए। अन्य पिछड़ा वर्ग से इंद्रजीत मौर्य निर्वाचित घोषित हुए। महिला वर्ग के आरक्षित दो पदों पर सुचंदना गुप्ता और कौशल वर्मा पहले ही निर्विरोध निर्वाचित हो चुकी थीं।
भोपाल से अरशद अली खान की रिपोर्ट
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भोपाल की पत्रकार श्रुति अनुराग ने राजधानी पत्रकार गृह निर्माण समिति के संचालक मंडल को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने अपने नाम एलाट जमीन को प्रतीक्षा सूची में पड़े किसी सबसे गरीब पत्रकार को देने की बात कही है, साथ ही संचालक मंडल के सदस्यों पास पहले से मौजूद जमीन-मकानों का उल्लेख करते हुए फिर से प्लाट लिए जाने पर आपत्ति जताई है। श्रुति ने उनसे ये प्लाट गरीब पत्रकारों को देने की भी अपील की है। पूरा पत्र इस प्रकार है-
प्रति,
संचालक मंडल
राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी समिति
भोपाल
महोदय,
राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी समिति में भोपाल के निम्न आय और मध्यम आय के श्रमजीवी पत्रकारों की अनदेखी कर उसमें आप लोगों ने जिस तरह बेटे-बेटियों, पत्नियों, भतीजों, भूमाफियाओं, अपने सरकारी अधिकारी मित्रों को भूखंड देने की कोशिश की है, वह 'काबिल-ए-तारीफ' है। यही वजह है कि हमारी संस्था के असल श्रमजीवी पत्रकार आपके विरोध में खड़े हो गए। संस्था के चुनाव में भले ही टेक्नीकली आपके पैनल के लोग जीत गए हों, लेकिन लोगों ने आपको किस डर से वोट दिये, ये आप भी जानते हैं। आपके सहयोगी साथी आपके खिलाफ खड़े हुये, यह आपकी सबसे बड़ी हार है। मुझे उम्मीद है आप अपनी गलती से सबक लेकर इस पत्रकारों की संस्था से फर्जी और गैर पत्रकारों को बाहर करने का साहस दिखायेंगे। हालांकि इसकी उम्मीद कम ही है।
वैसे भी आपमें से कुछ मेरे पिता तुल्य हैं, इसलिये मैं आपका बहुत सम्मान करती हूं और पूरे सम्मान के साथ मैं आपसे दो निवेदन करना चाहती हूं। एक तो मैं अपने आर्थिक पक्ष और कुछ आप लोगों के दोहरे मापदंड के कारण संस्था में जमीन नहीं ले सकती, अतः मेरे हिस्से का भूंखंड उस सबसे गरीब साथी को आवंटित करें जिसे आपने प्रतीक्षा सूची में डाल कर बेवकूफ बना रखा हो।
मेरा दूसरा निवेदन है कि आप में से एक अरूण कुमार भंडारी जी जिनका पंचवटी कालोनी में इतना आलीशान मकान है जैसा श्रमजीवी पत्रकार स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकते। एन.के. सिंह जी जिनका भव्य बंगला रियायती दर की पत्रकार कालोनी में लिंक रोड नंबर-३ पर बना है, विजय दासजी का आलीशान करोड़ों का बंगला अरेरा कालोनी में है, वीरेन्द्र सिंहजी का चूना भट्टी में भव्य भवन है हमारी महिला साथी सुचांदना गुप्ता का भव्यतम मकान शहर की सबसे प्राइम लोकेशन रिवेरा में है जहाँ रहने की कल्पना भी भोपाल के पत्रकार नहीं कर सकते हैं। यह आप लोगों की वह संपदा है जो आपके पास नजर आती है, इसके अलावा पुश्तैनी और स्वयं के बूते कमाई संपत्ति भी होना लाजमी है, ऐसे में मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप लोगों को और जमीन की क्या आवश्यकता है अतः आप साथियों के बीच एक मिसाल पेश कर अपने अहम और जमीन की बंदरबांट की इस लड़ाई को बंद कर अपने-अपने प्लाट उन साथियों को देने का मार्ग प्रशस्त करें जो अरसे से यहाँ वहाँ किराये के मकानों में धक्के खा रहे हैं। आप लोग बड़े हैं, आप लोगों के पास इतनी जमीनें और मकान पहले से ही है फिर एक छोटे से भूखंड की क्या बिसात। यकीनन आप ऐसा करेंगे तो आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा। आपकी शान में हम जैसे लोग कसीदे करते जरूर नजर आऐंगे। आपके इस प्रयास से कई छोटे पत्रकार साथियों की जिन्दगी संवर जाएगी।
मुझे उम्मीद है जमीन और साथियों में से आप साथियों को चुनना पसंद करेंगे क्योंकि जब भी आप यहां से विदा होंगे तो जमीन तो आपका साथ नहीं देगी, मित्रों का प्यार हमेशा आपके साथ रहेगा।
आपकी
श्रुति अनुराग , भोपाल
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भोपाल के रामभुवन सिंह कुशवाह, एके भंडारी, सुरेश शर्मा, राजेंद्र तिवारी, राजेंद्र शर्मा जैसे पत्रकारों-मालिकों ने जेनुइन पत्रकारों का हक मारा : भोपाल स्थित 'राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी समिति' के पदाधिकरियों ने पत्रकारों के लिए सस्ते दर पर सरकार से मिली भूमि को आपस में बांटकर आवासहीन पत्रकारों के अधिकारों पर न केवल अतिक्रमण किया है बल्कि शासन की आंखों मे धूल झोंककर धोखाधड़ी भी की है। जरूरतमंद पत्रकार आज भी घर की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाते फिर रहे हैं। घर का सपना दिखाते हुए पत्रकारों की भीड़ जुटाकर राजनीति करने वालों ने एक साथ चार-चार भूखण्ड जुगाड़ लिये। इस घटना से ये भी साफ हो गया है कि मध्य प्रदेश की पत्रकारिता में धंधेबाजों का कितना दख़ल है और वे किस तरह पत्रकारिता की आड़ में धीरे-धीरे भू-माफि़या बनते जा रहे हैं। इन कथित पत्रकारों की करतूत के कारण ही समाज में पत्रकारों की इज्जत नहीं बची है। आइए, समिति के पदाधिकारियों के बारे में एक-एक कर बात करते हैं-
सबसे पहले बात करते हैं समिति के अध्यक्ष रामभुवन सिंह कुशवाह की। उन्होंने एक भूखण्ड अपने और तीन भूखण्ड अपने पुत्रों के नाम कर लिए। शातिरपन देखिए कि पत्रकारों के सामने नंगे होने से बचने के लिए अपने पुत्र विजय सिंह के पिता के नाम की जगह अपना पूरा नाम लिखने की बजाट शार्ट नाम आरबी सिंह लिख दिया ताकि कोई ये न समझे कि यह रामभुवन सिंह कुशवाह का पुत्र है।
इसी प्रकार समाचार एजेंसी के एक पत्रकार एके भंडारी ने एयरपोर्ट रोड पर स्थित पंचवटी में लाखों रुपये का आलीशान बंगला होते हुए भी भूखण्ड ले लिया। सहकारिता के नियमानुसार भूखण्ड प्राप्त करने से पूर्व समिति के सदस्य को एक शपथ पत्र देना होता है जिसमें इस बात की कसम खाई जाती है कि शपथकर्ता के पास कोई मकान नहीं है। जाहिर है कि भंडारी ने प्लाट के लालच में झूठा शपथ पत्र प्रस्तुत किया है।
इसी कड़ी में शामिल हैं सुरेश शर्मा। इनके अखबार के नाम पर सरकार ने करोड़ों रुपये की जमीन आवंटित की थी लेकिन धन के लालच में इन्होंने जमीन के साथ अख़बार भी बेच दिया। सुरेश शर्मा के पास पहले से निजी मकान है। उसके बाद भी सरकारी मकान के मज़े ले रहे हैं। प्लाट जुगाड़ा सो अलग। भगवान जाने इनकी इच्छापूर्ति कब होगी।
राजेंद्र तिवारी दैनिक अख़बार के मालिक हैं। इन्होंने एक भूखंड अपने, एक अपने भाई सुरेंद्र तिवारी और एक अपने भतीजे विश्वास तिवारी के नाम बुक करा लिया।
एक अन्य दैनिक के मालिक हैं राजेंद्र शर्मा। शर्मा जी ने भी एक अपने और अपने पुत्र अक्षत शर्मा के नाम भूखण्ड लिया। मनीष शर्मा दिल्ली के एक अखबार का काम देखते हैं। इनके पास भी सिर छुपाने के लिए अच्छी खासी छत है।
समाज को दिशा देने का दम भरने वाले इन पत्रकारों से क्या पत्रकारों के हित की उम्मीद की जा सकती है? अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों के विरोध से बचने और सरकार पर दबाव बनाने के लिए इन्होंने पूर्वनियोजित तरीके से समिति में अखबार मालिकों को रखा और जनसम्पर्क विभाग के अधिकारियों को इसलिए समिति में रखा ताकि समय-समय पर वे इनके काले-जाले में पर्दा डालने में मदद कर सकें।
अरशद अली खान, पत्रकार
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अगर आपको इस रिपोर्ट के बारे में कुछ कहना है तो अपनी बात eyeformedia@gmail.com
पर भेज सकते हैं.

गुजरात में 221 करोड़ की भास्कर प्रिंट प्लेनेट शुरू

भोपाल। भास्कर समूह ने अपने बड़ते ग्रुप में एक और उपलब्धि जोड़ ली है। समूह ने गुजरात में एक अत्याधुनिक प्लांट डाला है। ये ख़बर इसलिए यहाँ दे रहे हनी की एक अख़बार की तरक्की होती है तो मीडिया कर्मियों को भी इसका लाभ मिलता है।
भास्कर समूह के अत्याधुनिक ‘प्रिंट प्लेनेट-अहमदाबाद’ का गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने शनिवार को एक भव्य, गरिमापूर्ण समारोह में लोकार्पण किया।
चांगोदर में स्थित ‘प्रिंट प्लेनेट’ के लोकार्पण के साथ ही गुजराती पत्रकारिता के इतिहास में नए युग का श्रीगणोश हो गया है। अब भास्कर समूह का दिव्य भास्कर गुजराती भाषा का ऐसा पहला समाचार पत्र बन गया है जो विश्वस्तरीय अल्ट्रा-मॉडर्न एबीए मशीन से छप कर पाठकों के हाथ में पहुंच रहा है।
पूर्णतया ऑटोमेटिक एवं अत्याधुनिक प्रिटिंग-टेक्नोलॉजी से सुसज्जित करीब 221 करोड़ रुपए की लागत वाला ‘प्रिंट प्लेनेट’ एक घंटे में २.५५ लाख रंगीन प्रतियां प्रकाशित करने में सक्षम है। ‘प्रिंट प्लेनेट’ को स्थापित करने के लिए 13 माह से जर्मनी के 40 इंजीनियरों की टीमें दिन रात कार्य कर रहीं थीं।
‘प्रिंट प्लेनेट’ में काउंटिंग, स्टेकिंग, लेबलिंग एवं रेपिंग सहित प्रिंटिंग के अधिकांश काम स्वचालित तकनीक से संचालित होते हैं। इस मौके पर गुजरात विधानसभा अध्यक्ष अशोक भट्ट, ऊर्जा राज्यमंत्री भरत सिंह सोलंकी, सांसद, विधायक एवं आला पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी मौजूद थे। इससे पहले समूह के अध्यक्ष रमेशचंद्र अग्रवाल ने सभी आमंत्रित महानुभावों का स्वागत किया।

Saturday, November 07, 2009

कितना भी लिखो कम पड़ ही जाएगा

भोपाल। वे क्या थे इस बारे में कुछ भी लिखना सूरज को रौशनी दिखने के बराबर ही है। में पत्रकारिता के क्षेत्र में नया हूँ और मात्र १० वर्ष में प्रभाष जे बारे में उनके नाम को जानने तक सीमित हूँ। अब वे नहीं हैं लेकिन हमारी कलम में रहेंगे। अनगिनत पत्रकार जो उनकी लाइन पर चलेंगे। प्रभाषजी को लोग कितना चाहते थे इसका प्रमाण ब्लॉग की दुनिया में लिखे गए अनगिनत लेख हैं। मीडिया मार्ग से लिए गए इस फोटो और तमाम ब्लॉग पर लिखे गए गए लेखों में से चुनिन्दा लेख अपने ब्लॉग पर साभार दे रहा हूँ, क्योंकि में खुद प्रभाषजी के बारे में कुछ लिख सकूँ ऐसी मेरी हसियत नहीं।
विनम्र श्रद्धांजलि।-भीम सिंह मीणा
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मीडिया मार्ग लिखता है
प्रभाष जोशी को श्रद्धांजलि देने के लिए उमड़े पत्रकार , उनका पार्थिव शरीर आज शाम पहुंचेगा इंदौर , कल अंतिम संस्कार
हिन्दी पत्रकारिता से शिखर पुरूष प्रभाष जोशी के निधन से स्तब्ध पत्रकारों का हुजूम आज सुबह उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़ा । गाजियावाद के वसुंधरा स्थित उनके निवास स्थान पर जाकर सैकड़ों पत्रकारों ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प चढ़ाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी । प्रभाष जोशी को कल रात क्रिकेट मैच देखने के तुरंत बाद दिल का दौरा पड़ा था । कुछ ही देर में उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका । सुबह होते - होते उनके निधन की खबर पूरे देश में फैल चुकी थी । उनके घर के बाहर दिल्ली के सैकड़ों पत्रकार जमा हुए । हर पत्रकार की जुबान पर एक ही बात थी , प्रभाष जोशी के निधन से हिन्दी पत्रकारिता में एक ऐसा खालीपन आया है , जिसे कभी भरा नहीं जा सकता ।प्रभाष जोशी दो दिन पहले ही लखनऊ से आए थे । आज सुबह उन्हें मेघालय की यात्रा पर जाना था । लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था । प्रभाष जोशी का पार्थिव शरीर दोपहर एक बजे गांधी शांति प्रतिष्ठान ले जाया गया , वहां कुछ देर तक उनके शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा , फिर राजकीय विमान से इंदौर ले जाया जाएगा । प्रभाष जोशी चाहते थे उनकी मौत के बाद नर्मदा के किनारे की अंतिम संस्कार किया जाए ।प्रभाष जोशी के अंतिम दर्शन के लिए पत्रकारों के हुजूम में जितने लोग प्रिंट के थे , उतने ही टीवी के ।
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दिल-ए-नादाँ लिखता है
सुबह मैंने बी।बी.सी. पर जब यह खबर पढ़ी तो तुम्हें फ़ोन लगाया.तुम सो रहे होगे तो रीवा डॉ.साहब(चंद्रिका प्रसाद चंद्र)का नं.मिलाया.वो इन दिनों बीमार हैं सो उनसे भी बात न हो सकी.मेंरे भीतर खालीपन और आँसू जमा हो रहे थे.किसी से बात करके मैं हल्का होना चाहता था.एक ही बात घुल रही थी मन में कि अब जनसत्ता का संपादकीय पेज क्या सोचकर देखूँगा.चुनौती देनेवाले,अन्याय के खिलाफ़ खड़े होनेवाले हस्तक्षेप कहाँ खोजूँगा.बहुत ईमानदार,सुलझी हुई और सहारा देनेवाली आवाज़ शांत हो गई है.इस आवाज़ का इस तरह अचानक शांत हो जाना उस निडर लौ का बुझना है जो बेहद अँधेरे और उलझे वक्त में साथ देने के लिए जलती है.इस आवाज़ के पूरी तरह नियति के द्वारा चुप कर देने को सह सकना इसकी जगह को भर पाना बहुत मुश्किल है.कल रात में राजकिशोर जी को उनके ब्लाग में पढ़ रहा था तो सोच रहा था प्रभाष जोषी और राजकिशोर जनसत्ता की ये दो आवाज़ें हमारे वक्त की उपलब्धि हैं.मैं प्रभाष जी से कभी मिला नहीं पर पढने से कभी चूका नहीं.जब भी उनका कोई इंटरव्यू टी.वी.,रेडियो या बी.बी.सी.पर सुना भूल नहीं पाया.जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री का पद लेने से इंकार किया था तो बी.बी.सी.के संवाददाता रेहान फजल ने पूछा था इसमें कितनी राजनीति है तो उनका जवाब था राममनोहर लोहिया ने कहा था धर्म दीर्घकालीन राजनीति है और राजनीति अल्पकालिक धर्म. सोनिया गांधी के इस निर्णय में भी राजनीति है पर राजनीति का रास्ता अगर त्याग से होकर जाता है तो वही सच्चा रास्ता है और दूर तक जाता है.यह अपने समय की राजनीति के मूल्यांकन की उनकी दृष्टि है.मैं इस समय में ऐसा अभागा हूँ जिसने आज तक एक भी क्रिकेट मैच पूरा नहीं देखा.पर प्रभाष जोषी का क्रिकेट पर लिखा शायद ही छोड़ा हो.वे क्रिकेट के कवि थे.मैं ख़ुद को हल्का करने के लिए आज कक्षाओं में जबरन प्रभाष जोषी पर ही बोलता रहा.एक बात जो मेंरे मुह पर बार बार आ रही थी वो ये कि प्रभाष जी को अभी दुनिया से जाना नहीं था.वो अलविदा कह गए इसमें यही तसल्ली की बात है कि क्रिकेट के इस प्रेमी को मैच देखते ही मरना था.कुछ और करते हुए वो संसार से विदा होते तो शायद उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती.लंच में घर आकर जब तुम्हारा लेख देखा तो इस बात से भर आया कि ऐसी ही बात तुम उसी वक्त में लिख रहे थे.मैं एक बात अक्सर सोचता हूँ कि आज जब बड़े से बड़ा पत्रकार ज़्यादा तनख्वाह की पेशकश पर कोई भी अखबार छोड़ सकता है तब प्रभाष जी ने अपना सर्वोत्तम जनसत्ता के लिए दिया.पेशे में सरोकार इसी रास्ते आते हैं.बड़े जनसमूह से कोई इन्हीं शर्तों पर जुड़ता है.करियरिस्ट अवदान सफल होता है पर सार्थक उदात्त श्रम ही होता है.अपने इसी स्वाभाव के कारण प्रभाष जी अवसरवाद के प्रबल आलोचक बने होंगे.उनकी भाषा सबको समझ में आती थी तो यह व्याकरण की नहीं इमानदारी की वजह से था.मैं तो उन पर लगभग निर्भर करने लगा था कि इस विषय पर प्रभाष जी को पढकर अंतिम राय बनाउँगा.अब ऐसी कोई आश्वस्ति मेरे सामने नही होगी.पिछले दिनों जगदीश्वर चतुर्वेदी आदि उनका जिस तरह चरित्र हनन कर रहे थे उससे मैं बहुत आहत था.सुबह इन्हीं महोदय की मोहल्ला लाइव पर श्रद्धांजली देखी तो चर्चित लेखक कांतिकुमार जैन का आचरण याद आ गया.कांतिकुमार जैन ने शिवमंगल सिंह सुमन का ऐसा ही चरित्र हनन चंद्रबरदाई का मंगल आचरण नामक संस्मरण लिख कर किया था.इसके कुछ ही दिनों बाद जब उनकी मृत्यु हुई तो हंस में ही बड़ी विह्वल श्रद्धांजली लिखी.ऐसे समर्थ लोग अपनी ही बात की लाज नहीं रख पाते.यह ज्यादा चिंताजनक है.प्रभाष जी का मूल्यांकन करने को काफ़ी लोग हैं.हम कहाँ लगते हैं.मैं उनके अवदान को किसी पैमाने में कस सकूँ इस लायक भी नहीं.सिर्फ़ तुमसे कुछ बाँटना चाहता हूँ.क्योंकि यह दिली मजबूरी लग रही है.यहाँ तमिलनाडु में बारिश का मौसम शुरू ही हुआ है.पिछले तीन दिन से बारिश हो रही है.सुबह खबर पढ़ने के बाद जब मैं खाना खाने बैठा तो लगा शमशान से लौटा हूँ और प्रभाष जी के अंतिम संस्कार के बाद पत्तल फाड़ने की हृदय विदारक रस्म में बैठा हूँ.मैं दिन भर समझना चाहता रहा कि जिससे एक बार भी नही मिला उसके बारे में ऐसा क्यों लग रहा है जैसे अपने ही घर का कोई बुजुर्ग हमेशा के लिए छोड़कर चला गया.इसे नियति भी मान लूँ तो इससे उदासी बढ़ती है कि अब चरमपंथियों,अवसरवादियों,भ्रष्टों,सरोकारों से विमुख लोंगों को कौन ललकार कर लिखेगा?किसकी विनम्र हिदायतें श्रेष्ठ का सम्मान करना सिखाएँगी?- शशिभूषण
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नवभारत टाईम्स ब्लोग्स लिखता है
प्रभाष जी नहीं रहे!! नहीं- नहीं, प्रभाष जोशी नाम का कोई और पत्रकार होगा... सुबह ऑफिस पहुंचते ही टीवी पर देखा तो यकीन नहीं हुआ। मौत कोई अनोखी बात नहीं। फिर भी अक्सर हैरान करती है। मैं उनसे कभी मिली नहीं लेकिन उनकी शैली और कमाल की भाषा को अपने लेखन में उतारने की हमेशा कोशिश की। याद आ रहा है वह वाकया जो एक पत्रकार मित्र रोहित ने बताया था। कई साल पहले वह ग्रेजुएशन के प्रोजेक्ट के सिलसिले में कुछ संपादकों के इंटरव्यू करने गए थे। आपसे उन्हीं की ज़ुबानी शेयर कर रही हूं प्रभाष जी के व्यक्तित्व का एक पहलू। आप भी देखें, सादा जीवन उच्च विचार का हाल तक जीवंत यह उदाहरण कैसा था...
"मुलाक़ात वाले दिन तय समय पर हम उनके निर्माण विहार वाले घर पर जा ही रहे थे कि रास्ते में एक आदमी बरमूडा शॉर्ट्स और टीशर्ट पहने हुए प्रभाष जी जैसा दिखा। अभी तक हमने प्रभाष जी को सिर्फ धोती और कुर्ते में ही देखा था इसलिए हैरानी तो हुई मगर नज़दीक जाकर उन्हें पहचान लिया। हमने बताया कि आपने मिलने का वक़्त दिया था तो उन्होंने कहा कि मैं अभी सैर करके आता हूं। तुम लोगों को घर तो पता ही है, घर जाकर बैठो। हम प्रभाष जी के घर तो पहुंच गए मगर इतनी बड़ी हस्ती के घर के अन्दर घुसने की हिम्मत नहीं हुई। गर्मी होने के बावजूद उनके घर के बाहर उनके इंतज़ार में खड़े रहे। प्रभाष जी आए और उन्होंने नाराज़ चेहरे से हम तीनों को घूरकर देखा। हमसे पूछा, जब तुम्हें अन्दर जाकर बैठने के लिए कहा था तो गर्मी में बाहर क्यों खड़े थे? मैंने इस बात को टालने की कोशिश की मगर मेरे मित्र ने कहा कि किसी ने हमें अन्दर आने के लिया कहा ही नहीं। प्रभाष जी हमें आदर के साथ अन्दर लेकर गए और अंदर घुसते ही सबसे पहले अपनी पत्नी से शिकायत की कि इन बच्चों को आपने अन्दर आने के लिए क्यों नहीं कहा। हालांकि गलती उनकी पत्नी की भी नहीं थी क्योंकि उन्हें पता ही नहीं था कि हम उनके घर किसी से मिलने आए हैं। यह बात बेशक बहुत छोटी-सी थी, लेकिन प्रभाष जी की महानता देखिए, वह बोले कि उन्हें हमारा यानी अपने मेहमानों का यूं बाहर खड़े रह जाना अच्छा नहीं लगा। खैर इसके बाद हमने प्रभाष जी का बारी-बारी से इंटरव्यू किया जिसमें उन्होंने उम्मीद से कई कदम आगे बढ़कर शानदार जवाब दिए थे। इंटरव्यू के बाद जब प्रभाष जी ने हमारे घर-परिवार के बारे में पूछा तो हमें बहुत हैरानी हुई कि इतना बड़ा संपादक हम जैसे स्टूडेंट्स के साथ भी कितनी जल्दी कितना घुल-मिल गया है। प्रभाष जी ने हमें अपनी छोटी-सी पोती से मिलवाया और उस दिन उन्होंने हमारे साथ खूब हंसी-मज़ाक भी किया। हम तीनों मित्र उस समय एक ही बात सोच रहे थे कि इतना गंभीर दिखने वाला आदमी भीतर से कितना सरल और सहज है।
मुलाक़ात में प्रभाष जी ने यह भी बताया कि उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत कैसे की थी। प्रभाष जी ने बताया था कि 1960 के आसपास (साल मुझे ठीक से याद नहीं है) एक टेस्ट मैच चल रहा था। उन दिनों किसी के घर में रेडियो होना भी बहुत बड़ी बात थी। प्रभाष जी के घर में रेडियो नहीं था सो उन्होंने अपने इलाके के फायर स्टेशन के अधिकारियों के दफ्तर के बाहर पांचों दिन सुबह से शाम तक मैच की कॉमेंट्री सुनकर उस पर एक फीचर लिखा और उसे इंदौर के अखबार 'नई दुनिया' में छापने के लिया भेज दिया। उस समय किसे पता होगा कि यह आदमी आगे चलकर न सिर्फ इतना बड़ा पत्रकार बनेगा, बल्कि इतना महान इंसान भी बन जाएगा कि हम जैसे युवा पत्रकारों के लिए उनकी लेखनी और उनका जीवन दोनों ही प्रेरणा बन जाएंगे।
उस मुलाक़ात को पांच साल से ज्यादा हो चुके हैं। उसके बाद मैं पत्रकारिता में बहुत सारे लोगों से मिला। कई बहुत अच्छे लोग भी मिले, लेकिन प्रभाष जी जैसा कोई नहीं मिला जो असाधारण संपादक तो थे ही और असाधारण इंसान भी थे।"- पूजा प्रसाद
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विस्फोट डॉट कॉम लिखता है
एक विकट क्रिकेटप्रेमी को क्रिकेट जगत की श्रद्धांजलि
सचिन की आतिशी पारी के बावजूद भारत की हार के साथ हिंदी पत्रकारिता के शिखर पुरुष और क्रिकेट के जबर्दस्‍त रसिक प्रभाष जोशी इतने मायूस हुए कि दुनिया को ही अलविदा कह दिया। प्रभाष जी- जो क्रिकेट और टेनिस के दीवाने थे- अपने शब्दों के जरिए पाठकों और क्रिकेटप्रेमियों की चेतना को झकझोरते रहे, सचिन के 17 हजार रनों पर लिखने की तमन्‍ना को दिल में लिए ही जहां से कूच कर गए। अफसोस, उनका सफर वहां खत्म हुआ, जहां असंभव को संभव बनाने देने वाले सचिन तेंदुलकर अपने आसाधारण खेल से दुनिया की नंबर एक क्रिकेट टीम ऑस्ट्रेलिया के मुंह से जीत को छीन कर भारत के हक में लाते-लाते रह गए। जहां सचिन सबसे ज्यादा रन बनाकर भी टीम को जीत नहीं दिला पाए, उसी तरह प्रभाष जोशी भी सचिन तेंदुलकर के रिकॉर्ड पर लिखने से पहले चले गए ...दरअसल, प्रभाष जी पेशेवर पत्रकार की तरह क्रिकेट पर कलम नहीं चलाते थे, बल्कि एक विकट क्रिकेटप्रेमी की तरह इस खेल और इसके खिलाडि़यों पर अपनी भावनाएं व्‍यक्‍त करते थे। क्रिकेट के प्रति उनके प्रेम को लेकर खेल पत्रकार अमित रायकवार ने देश के कुछ बड़े क्रिकेटरों और खेल संपादको से खास बातचीत की। प्रस्‍तुत है संपादित अंश:सुरेश कौशिक, खेल संपादक, जनसत्‍ताप्रभाष जी जैसा संपादक नहीं मिल सकता, जो खेल को बढ़ावा दे। शुरूआत से ही उन्होनें खेल को जनसत्‍ता का मजबूत पहलू बनाया। उनका एकमात्र लक्ष्य था कि हम खेलों के मामले में इंग्लिश अख़बारों से मुकाबला करें, किसी भी मायने में उनसे पीछे नहीं रहें। यही वजह थी जनसत्‍ता शुरूआती वर्षों में हमने रात 3:30 बजे 1986 में मेक्सिको में हुआ फुटबॉल वर्ल्ड कप टेलीविजन पर देखकर कवर किया। पहले पेज पर उस विश्‍वकप के हीरो और फुटबॉल के महानतम खिलाडि़यों में से एक माराडोना की तस्‍वीर थे। सुबह जब लोगों के हाथ में अखबार आया, तो सब हैरान थे कि सुबह साढे तीन बजे खत्म होने वाले मैच कैसे सबके सामने आ गया। वो चाहते थे कि खेलों में हम सबको पछाड़ें, इसलिए देर रात तक काम करके हमने ताजा से ताज़ा खबरे दीं। उनका क्रिकेट प्रेम जगजाहिर है। क्रिकेट के तो वे किताबी कीड़े थे। सन् पचास से लेकर सचिन तक, अब तक जितने खिलाड़ी हुए, वे कैसा खेलते थे, वो उनको मुंहजबानी रटा हुआ था। खास तौर पर वो सुनिल गावस्कर और सचिन तेंदुलकर के बड़े प्रशंसक थे। सचिन की तो वे आलोचना भी नहीं सुन सकते थे। उनके राज में चाहे शतरंज हो या स्नूकर या फिर हो कुश्ती, फुटबॉल, सभी को अच्छी तरह कवर किया गया। और, खेल पर वे एक बड़ा पन्ना निकालते थे... वो पन्ने आज भी लोगो ने बड़े संभालकर रखे हुए हैं यादगार के तौर पर।प्रदीप मैग्जीन, खेल सलाहाकार, हिंदुस्‍तान टाइम्‍सप्रभाष जी क्रिकेट के असली दीवाने थे। मुझे याद है जब 1977-79 में वे चंढीगढ़ में इंडियन एक्प्रेस के संपादक थे, तब इंडियन एक्‍सप्रेस के एक टेक्नीशियन के पास एक टेलीविजन हुआ करता था और वे कुछ जुगाड़ करके भारत-पाकिस्तान का मैच देखते थे। मैं भी उनके साथ मैच देखता था। वो पूरे नौ से पांच बजे तक एक छोटे से रूम में क्रिकेट देखते रहते थे। उसी दौरान उनसे मुलाकात हुई और क्रिकेट पर काफी डिस्‍कशन होने लगे। फिर उन्होनें मुझे इंडियन एक्प्रेस अख़बार में नौकरी का ऑफर दिया। अंग्रेजी और हिंन्दी दोनों भाषाओं पर उनकी जबर्दस्त पकड़ थी।प्रभाष जी क्रिकेट के मौजूदा हालात को देखते हुए काफी दुखी रहते थे। आईपीएल और इतना पैसा खेल को बरबाद कर रहा है। वो बडे़ प्‍योरिस्ट और ट्रेडिशनल थे। उन्हें इस बात का हमेशा दुख रहता था कि आज का क्रिकेट वो पुराना वाला क्रिकेट नहीं रहा। वो आज भी क्रिकेट पर इतना ही अच्छा बोलते थे, जितना पच्चीस साल पहले। क्रिकेट के नॉलिज में उनका कोई मुकाबला नहीं था और वो क्रिकेट की टेक्निकल चीज़ों के बारे बहुंत जानते थे। युवावस्‍था में वे खुद भी क्रिकेट के बहुत अच्‍छे खिलाड़ी रहे थे और लेफ्ट आर्म स्पिन गेंदबाजी करते थे। उन्हें अपने छोटे बेटे से काफी उम्मीदे थी कि वो आगे चलकर हिंदुस्तान के लिए खेलेगा। उनके छोटे बेटे हरियाणा से रणजी ट्रॉफी खेले थे।प्रभाष जी में सबसे बड़ी खूबी ये थी कि वो बहुत ईमानदार थे। जिन खेल पत्रकारों को क्रिकेट की नॉलिज होती थी, उन्हें वे बड़ा प्रोत्‍साहित करते थे। मुझे भी उन्होने काफी प्रोत्‍साहित किया। उनकी वजह से मेरे कॅरियर को सही दिशा मिली। अक्सर वे बड़े मैच मुझे कवर करने के लिए दिया करते थे, जिसकी वजह से मेरा कॅरियर अच्छा बन पाया। पॉलिटिक्स की समझ की वजह से उनकी क्रिकेट की पॉलिटिक्स की समझ काफी अच्छी थी। कपिल देव ने जब क्रिकेट खेलना शुरू किया और जब कपिल किसी विदेशी दौरे पर जाते थे, तो प्रभाष जी अपने पास कपिल को बुलाते थे और समझाते थे कि 'डाउन टू अर्थ' रहो, ग्लैमर की दुनिया आदमी को ख़राब भी कर सकती है। अगर क्रिकेट के प्रति आपकी कमिटमेंट रहेगी तो आप काफी आगे जाओगे। उन्होने काफी युवा खेल पत्रकारों को बढ़ावा दिया। जब 1982 में दिल्ली में एशियन गेम्स हुए, तब इंडियन एक्‍सप्रेस का सेंट्रल डेस्क बना और प्रभाष जी उसके हेड बने। उनके मार्गदर्शन में क्रिकेट अलावा बाकी खेलों को भी बढावा दिया गया। कई सीनियर क्रिकेटर उनकी काफी इज्जत करते थे। उनसे हमेशा सर, सर कहकर बात करते थे। उन्होंने क्रिकेट से जुड़े कई बड़े मुद्दों को उछाला और क्रिकेट को विस्‍तार से कवर किया, चाहे वो देश में हो या विदेश में।कपिल देव, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तानकाफी नेक इंसान थे प्रभाष जी। जब हम छोटे से थे, काफी प्रोत्‍साहित किया करते थे हमें। उन्होंने हमारे साथ प्रेस जैसा व्यवाहर नहीं किया। जब भी मुझे उनकी जरूरत होती थी, तो वो हमेशा मेरे साथ खड़े होते थे। उन्होने जिंदगी हमसे कहीं ज्यादा देखी थी... अपने अनुभव से वो हमेशा मुझे समझाते रहते थे। क्रिकेट के वे बहुत बड़े लेखक थे। बाद में वो दिल्ली आ गए, फिर उनसे थोड़ा संपर्क छूट गया, लेकिन जब भी मिलते थे, पुराने दिनों को याद करके उनमें खो जाया करते थे।बिशन सिंह बेदी, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तानवे बहुत ही क्वालीफाइ राइटर थे। जर्नलिज्‍म की दुनिया में बहुत आदरणीय शख्सियत थे। अपने निजी फायदे के लिए नहीं लिखते थे और उसूलों वाले व्यक्ति थे। मेरे क्रिकेट कॅरियर के दौरान उन्होंने मुझे काफी क्रिटिसाइज भी की, लेकिन मैंने हमेशा उनकी बातो को पॉजिटिव लिया।चेतन चौहान, पूर्व सलामी बल्लेबाज़, भारतीय क्रिकेट टीमकाफी स्पष्टवादी जर्नालिस्ट थे। फ्रैंक थे, ब्‍लंट थे और बहुत ही ईमानदारी से पत्रकारिता करते थे। वो एक ऑलराउंडर खिलाड़ी थे, जितनी जानकारी उनकी पॉलिटिक्स में थी, उतनी ही क्रिकेट में। एक बड़ा ऊंचा स्थान था उनका पत्रकारिता में। उनके ना होने से पत्रकारिता जगत की बड़ी क्षति हुई है। अक्सर जब उनसे क्रिकेट के बारे में बाते होती थीं, तो सुनकर आश्‍चर्य होता था कि उन्हें क्रिकेट की कितनी नॉलिज है।-अमित रायकवार, खेल पत्रकार

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