- खबर है कि मध्य प्रदेश सरकार ने अपने यहां पाठ्यपुस्तकों से सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता से वह एक लाइन हटवा दी है जिससे सिंधिया राजघराने के अंग्रेजों के मित्र होने का पता चलता है, जिससे पता चलता है कि सिंधिया राजघराने ने रानी लक्ष्मीबाई का नहीं बल्कि अंग्रेजों का साथ दिया था, जिससे पता चलता है कि सिंधिया राजघराने ने आजादी के आंदोलन के दिनों में गद्दारी की थी और गोरों का साथ दिया था.
- आजादी के बाद इन्हीं सिंधियाओं ने चोला बदलकर कांग्रेस से लेकर भाजपा तक की टोपी पहन ली और सत्ता-सिस्टम के पार्ट बन गए.
- चूंकि मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है और भाजपा में ज्यादातर राजे-रजवाड़े-सामंत किस्म के लोग ही नेता, सांसद, मंत्री बनते हैं, सो लगता है कि सिंधिया राजघराने के नए नेताओं ने शिवराज सरकार को प्रभाव में लेकर अपनी बदनामी वाली कहानी को डिलीट करा दिया है. यहां कविता की वो लाइन बोल्ड में दी जा रही है जिसे पाठ्यपुस्तक से हटाया गया है...
- रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - तो मध्य प्रदेश के बच्चे सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता झांसी का रानी में इस लाइन ''अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी'' को नहीं पढ़ेंगे क्योंकि वहां की सरकार ने इसे हटवा दिया है. सोचिए, कितने नीच लोग हैं. अगर कविता पसंद नहीं है तो पूरा का पूरा हटा दो. या पसंद है तो पूरा का पूरा लगा लो. ये क्या कि उसमें छेड़छाड़ कर देंगे. यह घोर अपराध है और इसके लिए शिवराज सरकार की निंदा का जानी चाहिए. जनसत्ता को यह खबर छापने के लिए बधाई. अब आप सुभद्रा कुमारी चौहान लिखिति झांसी का रानी कविता का पूरा पाठ कीजिए... और सिंधियाओं के साथ साथ शिवराजों पर भी थू थू करिए...
- यशवंत
- एडिटर, भड़ास4मीडिया
- yashwant@bhadas4media.com
झांसी की रानी
- -सुभद्राकुमारी चौहान-
- सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। - चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी। - वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़| - महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में, - चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई। - निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया। - अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया। - रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात। - बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'। - यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान। - हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी, - जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम। - लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में। - ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार। - अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी। - पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार। - घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी, - दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी। - तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - साभार-भड़ास4मीडिया
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Wednesday, July 06, 2011
सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता से वह एक लाइन हटवा दी है जिससे सिंधिया राजघराने के अंग्रेजों के मित्र होने का पता चलता है,
मैंने ही कार बदल ली और खुद ही थाने में शिकायत कर दी...
- जिंदगी में कई बार ऐसे पल आते हैं जिनकी आप सपनों में भी उम्मीद नहीं करते हो। ऐसा ही कुछ मेरे साथ आज हुआ जिसे में शेयर किए बिना नहीं मान सकता-
- ...रोज की तरह आज भी ऑफिस का काम निपटा कर कवरेज पर निकल गया। करीब ढाई बजे नगर निगम के दफ्तर पहुंचा और वहां कमिश्नर से मुलाकात की। मोबाइल पर कॉल आने का सिलसिला बदस्तूर जारी था। करीब चार बजे नगर निगम के छह नंबर स्थित दफ्तर पहुंचा और अपनी 800 मारुति कार को दफ्तर के सामने ही पार्क कर बिल्डिंग के भीतर चला गया। वहां जिन अधिकारियों से मिलना था उनसे मिलकर नीचे उतरा। इस दौरान मेरी मोबाइल पर लगातार बात चल रही थी। मैंने कार के गेट में चाबी लगाई और सीधा दैनिक भास्कर दफ्तर के लिए रवाना हो गया।
- डीबी मॉल के पास आकर सोचा कि क्यों न कांग्रेस कार्यालय और हो आऊं, क्योंकि वहां से दो स्टोरी कलेक्ट करना थी। यह सोचकर व्यापमं और मंत्रालय होता हुआ लिंक रोड एक स्थित कांग्रेस कार्यालय पहुंचा। वहां अपनी कार पार्क कर कार्यालय की दूसरी मंजिल पर चला गया। अब तक सब कुछ सामान्य था। कार्यालय में मैंने पूर्व प्रवक्ता जेपी धनोपिया और नवनियुक्त महामंत्री कटियार साहब से मुलाकात की।
- करीब 15 मिनट की मुलाकात और मोबाइल नंबरों का आदान-प्रदान कर नीचे आ गया।
- जैसे ही कांग्रेस कार्यालय की सामने की पार्किंग में पहुंचा तो अपनी कार गायब देखकर हैरत में पड़ गया। चारों तरफ देख ली। हैरत तो इस बात की हो रही थी कि जिस जगह मैंने अपनी कार पार्क की थी वहां सफेद रंग की एक दूसरी 800 मारुति कार कैसे खड़ी। गौर से देखने पर समझ में आया कि यह कार तो मैंने ही पार्क की है। तब मुझे पता चला कि मैं अपनी बजाय किसी और की कार ले आया। हैरत तो इस बात पर भी हुई कि दूसरी कार में मेरी कार की चाबी कैसे लगी और यहां तक मैं कैसे उसको बिना पहचाने ले आया। जब कार को दोबारा खोला तो देखा कि वह 2003 की कार है और बेहद कंडम स्थिति में है। फिर मुझे लगा कि शायद किसी ने मेरी कार चुरा ली है और उसकी जगह यह पुरानी कार खड़ी कर गया। यह विचार आते ही मैंने क्षेत्रीय सीएसपी राजेश भदौरिया को कॉल कर पूरी स्थिति से अवगत कराया। पूरी बात अपने छोटे भाई ओमवीर को भी बताई और मेरे मित्र राजू मीणा को भी बताई। तो दोनों तत्काल मौके पर पहुंच गए। काफी सोच विचार करने के बाद हम लोग छह नंंबर पहुंचे तो वहां अपनी कार को खड़े पाया तब समझ में आया कि मैं ही दूसरी कार उठा लाया था। तब मैंने फिर से स्थिति से सीएसपी भदौरिया को अवगत कराया, क्योंकि अब समस्या यह थी कि कहीं असली मालिक थाने में एफआईआर न करा दे। ऐसा विचार आते ही हम लोगों ने कार में मालिक के नंबर ढूंढना शुरू किए। नंबर तो नहीं मिला, लेकिन एक शादी का कार्ड और इंश्योरेंस पॉलिसी मिल गई जिसमें कार मालिक का नाम लिखा था। यहां पत्रकारों वाला दिमाग काम आया और मैंने कार्ड के ऑनर को कॉल कर कार मालिक का नाम बताकर उनका नंबर ले लिया। नंबर मिलते ही कॉल किया तो कार मालिक श्रीमान सीएन सक्सेना साहब हबीबगंज थाने में एफआईआर कराने के लिए बैठे थे। और ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब उनके साथ भास्कर के ही वरिष्ठ पत्रकार श्री अलीम बज्मी साहब भी बैठे थे। मैंने उनसे बात कर सारी स्थिति से अवगत कराया और छोटे भाई को उन्हें लेने के लिए थाने भेजा। करीब दो घंटे तक चली धमा-चौकड़ी को आखिरकार विराम मिला और कार अपने असली मालिक के पास पहुंच गई।
- ...और यह सब हुआ माननीय मोबाइल महोदय के कारण जिनपर बात करते-करते अपनी बजाय दूसरी कार उठा ली थी।
- भीम सिंह मीणा, रिपोर्टर दैनिक भास्कर
Thursday, May 12, 2011
"कलयुग' का कल्कि अवतार
मृणाल पाण्डे, लेखिका जानी-मानी साहित्यकार और वरिष्ठ पत्रकार हैं।
दाग अच्छे नहीं होते
असत्यापित टेपों ने बहस का ऐसा मुद्दा बना दिया कि अन्ना आंदोलन का असली मुद्दा पीछे रह गया। साबुन के विज्ञापन झूठ कहते हैं। दाग अच्छे नहीं होते। बेबुनियाद दाग तो कभी नहीं। युग इतनी तेजी से बदल रहा है कि मीडिया के संदर्भ में बदलाव शब्द अपने पुराने मायने खो चला है। पिछली सदी के पहले साठ बरसों में खबरिया जगत में प्रिंट मीडिया की भव्य बादशाहत कायम रही। फिर ट्रांसमीटरों और फिर जमीनी केबलों से घरों तक खबरें और मनोरंजन परोसने वाला टीवी सैटेलाइट से जुड़कर मीडिया का नया आकाशोन्मुखी नेता बन गया। न बे के दशक में इराकी हमले के दौरान अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन ने हजारों मील दूर अटलांटा से इराक युद्ध का चमत्कारी लाइव कवरेज दुनिया भर तक बीम करते हुए जिस नई ग्लोबल सूचना संचार व्यवस्था का ध्वजारोहण कराया, उसकी मदद से लोग दिन या रात को जब जी चाहे 24 & 7 छोटे पर्दे पर ताजातरीन खबरों का पीछा कर सकते थे। पेंटागन के निर्देश में सुदूर इराक पर सफलतापूर्वक दागी जा रही पेंटागन की मिसाइलों की छवियों ने अमेरिका से एशिया तक प्रिंट मीडिया का एकछत्र वर्चस्व खत्म कराया और बीबीसी सरीखे धाकड़ प िलक ब्रॉडकास्टर तक को खमठोंक चुनौती दे दी। भारत में जब उपग्रह से दुनियाभर की ताजा खबरें चौबीसों घंटे हवा के घोड़े पर सवार हो आने लगीं तो रात को छपकर सुबह बंटने वाले अखबारों से हमारे ग्राहकों को भी बासी गंध आने लगी। केबल युग की धमाकेदार शुरुआत के बाद तेजी से खबरिया टीवी के लोकप्रिय भाषायी संस्करण बन गए। बीस सालों से भी कम समय में केबल टीवी ने मीडिया की हर विधा में खबरों की भाषा, चित्रों की प्रस्तुति, खबरों का तर्जे बयां और उन पर बहस के तरीके बदल दिए और खबरों के संकलन से लेकर उन पर सार्वजनिक बहस के मंचों तक जनभागीदारी बढ़ाई। टैगोर ने सदी पहले कह दिया था कि कलियुग नहीं, एक कलयुग आ रहा है, जिसका कल्कि अवतार घोड़े की बजाय कल (यानी मशीनों) पर सवारी करते हुए आसमान से उतरेगा। सचमुच, उपग्रह से वायु तरंगों पर सवार होकर नया कलयुगी मल्टीमीडिया खबरों की दुनिया में जब से अवतरित हुआ है, उसने टीवी के साम्राज्य पर वैसा ही हल्ला बोल दिया है, जैसा कभी युवा टीवी ने बुढ़ाते प्रिंट मीडिया पर बोला था। युवा पीढ़ी नवीन मल्टीमीडिया टीवी का असली हरावल दस्ता है। ऊर्जामय और निरंतर हलचलभरी जिंदगी के प्रेमी शहरी युवाओं को लंबे-चौड़े अखबार जितना उबाते हैं, उतना ही चटपटी छोटी खबरों को कहीं भी, कभी भी पकड़ सकने वाले लैपटॉप, आईपैड और थ्रीजी मोबाइल के मल्टीपरपज मॉडल उनको मोहते हैं। वे कमरे में सोफे पर बैठे-बैठे टीवी भी यों देखें? उन्नत, सस्ते और यूजर फ्रेंडली लैपटॉप और थ्रीजी मोबाइल बातून युवा बहुल एशिया को ज्यों ही उपल ध हुए, वे टीवी या अखबारों को हमारे यहां भी वैसे ही अप्रासंगिक बना देंगे, जैसा मोबाइल ने फोन की लैंडलाइनों को बना डाला है। फेसबुक और ट्विटर सरीखी सोशल नेटवर्किंग साइट्स नेट पर उतरते ही दुनियाभर के युवाओं को आपस में जोड़ चुकी हैं और इस सोशल मीडिया के मार्फत युवा पीढ़ी ने मनोरंजन व खबरों की दुनिया के साथ अपना एक सीधा नया रिश्ता बना लिया है। अब उनकी खुद की भूमिका खबरों के निष्क्रिय पाठक या दर्शक या श्रोता के बजाय उनमें एक सक्रिय आक्रामक भागीदार की है। आज फेसबुक के करोड़ों सदस्य हैं और इसका दूसरा बिरादर ट्विटर भी उतना ही लोकप्रिय है, क्योंकि वह शाहरुख से शशि थरूर तक हर अभिनेता या नेता, मंत्री या संतरी को आपस में तुरंत जानकारी साझी करने और संक्षिह्रश्वत निजी राय प्रसारित करने का मौका दे रहा है। इस नई तरह की लोकतांत्रिकता का असर है कि साल के शुरुआती तीन महीनों में ही (ट्विटर पर) चीन से शुरू लोकतंत्र समर्थक 'चमेली क्रांतिÓ (जैस्मीन रिवोल्यूशन) की सुगंध ने चंद दिनों में पूरे मध्य एशिया में फैलकर वहां दशकों से स ाा पर काबिज होस्नी मुबारक और गद्दाफी सरीखे ताकतवर तानाशाहों का इंद्रासन भी हिला दिया। इसके असर का ताजा सबूत ओसामा के घर पर किए गए हमले और उसकी हत्या की सचित्र खबरें फेसबुक पर फटाफट दिखाना है, जिसने प्रिंट-टीवी के अनुभवी व खुर्राट मुगलों को एक और पटखनी दे दी है।
न्यूयॉर्क टाइ स के अनुसार ओसामा की मौत की पुष्टि होते ही सभी बड़े अमेरिकी अखबारों और टीवी चैनलों को सरकारी ब्रीफिंग दे दी गई थी। पर उन सभी ने राष्ट्रपति ओबामा द्वारा खबर के औपचारिक (राष्ट्र के नाम संदेश के तहत) प्रसारण के बाद ही इसे देने के सरकारी अनुरोध का मान रखा। सोशल मीडिया निकला बेलगाम कल्कि अवतार। सिर्फ कयास के आधार पर रात 10:45 पर एबटाबाद के एक व्यक्ति ने अमेरिकी हमले और ओसामा के मारे जाने की खबर फेसबुक पर डाल दी। ओबामा द्वारा विधिवत घोषणा से दो घंटे पहले ही यह खबर दुनिया
भर में पहुंच चुकी थी और करोड़ों मोबाइल घनघनाने लगे थे। ट्विटर पर भी यह टीवी के लाइव प्रसारण से 20 मिनट पहले आ चुकी थी। खबर जगत को नौसिखिये और अ सर सीमित मानसिक क्षितिज वाले स्वयंभू संवाददाताओं की बढ़ती क्षमता और संगीन जटिल मामलों की सनसनीखेज और गैरजि मेदाराना रिपोर्टिंग से सावधान रहने की भी जरूरत है। मल्टीमीडिया लोकतंत्र की रक्षा के लिए तलवार जरूर है, पर अनुभवहीन मूर्खों या चतुर तानाशाहों और गलत सूचनाएं देने के खेल में माहिर आतंकी धड़ों के हाथों में यह बंदर के हाथ का उस्तरा भी
बन सकता है। मल्टीमीडिया का विकास इतनी तेजी से हुआ है कि अब तक साइबर कानूनों के विशेषज्ञ भी सोशल मीडिया की वे स्वस्थ सीमाएं और नियम नहीं तय कर सके हैं, जो पारंपरिक मीडिया को लक्ष्मण रेखा
के भीतर रखते हैं। पु ता सबूत के बिना, अदालती कार्यवाही पूरी होने से पहले कई बार किसी इज्जतदार व्यक्ति का पक्ष सुने बिना ही उसको नया मीडिया अभियु त करार दे देता है। हर किसी को लोकतंत्र में सुने जाने का हक है, जरूर है, पर दूसरे के इस हक का छिछोरेपन से किया गया उल्लंघन उनको अपूरणीय क्षति भी पहुंचा सकता है। इसका शर्मनाक उदाहरण हमने अभी अन्ना के साथियों के बारे में अचानक अनजान स्रोतों से जारी कर दिए गए उन असत्यापित टेपों के असर में देखा है, जिनको बहस का ऐसा मुद्दा बना दिया गया कि आंदोलन का असली
मुद्दा पीछे रह गया। साबुन के विज्ञापन झूठ कहते हैं। दाग अच्छे नहीं होते। बेबुनियाद दाग तो कभी नहीं।
Wednesday, May 11, 2011
एक में से पांच युवतियां निकली और बन गया गूगल
Sunday, May 08, 2011
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे कलाम के हाथो ‘भोजपुरी सिनेमा के पचास साल किताब’ का विमोचन
Editor
www.mediaclubofindia.com
www.purvanchalexpress.com
Wednesday, May 04, 2011
Wednesday, April 20, 2011
इस पोस्ट को तो लेना ही होगा
भीम सिंह मीणा
कितना बहता होगा स्कूली पाठ्यक्रम में मीडिया को शामिल करना





Monday, March 28, 2011
मीडिया के पास जाओगे तो छीन लेंगे अफगानिस्तान की औरतों की तरह तुम्हारी भी आजादी

Monday, February 07, 2011


Saturday, December 11, 2010
दंगा कोई भी करे, दर्द तो घर की महिला को ही मिलेगा
अब मध्यप्रदेश में भी सब कुछ ठीक नहीं है
मप्र में शिवराज सिंह चौहान उम्दा काम कर रहे हैं, लेकिन कहीं न कहीं उनकी आंख से चूक हो रही है। भूमिका कलम की ये खबर मध्यप्रदेश में गरीबों के साथ होने वाली घटनाओं को छोटा सा नमूना भर है। इसके पहले रायसेन जिले के औबेदुल्लागंज ब्लॉक में भी ऐसा ही हुआ था। बात केवल मुस्लिमों की ही नहीं है, बल्कि हर वो आदमी पुलिस से पीडि़त है जो आम है और वो किसी अपराध का शिकार हो गया है।
Saturday, November 13, 2010
आज खुशवंत सिंह की वजह से एक नया ज्ञान मिल गया है
राधे-यार भीम तुम्हे मालूम है कि वाइन, विस्की, वोदका, मॉल्ट, स्कॉच और रम में क्या अंतर होता है।
भीम-यार कभी इस बारे में सोचा नहीं।
राधे-लेकिन मैं इस बारे में जानना चाहता हूं।
भीम-अचानक दारू के प्रकारों के बारे में जानने का विचार कैसे आ गया।
राधे-खुशवंत सिंह की वजह से।
भीम-खुशवंत सिंह!
राधे-अरे आज दैनिक भास्कर के संपादकीय पेज पर उनका आर्टिकल छपा है और एक जगह उन्होंने जिक्र किया है कि एक कार्यक्रम में मेरे यहां आने वालों से पूछा कि वे लोग क्या लेना पसंद करेंगे। स्कॉच, वाइन, वोदका या अन्य कोई। तो उन्होंने मना कर दिया कि कोई नहीं।
बस इस आर्टिकल को पढ़कर लगा कि आखिर इन सब में अंतर क्या होता है?
भीम-चिंता की कोई बात नहीं। अभी पूछे लेते हैं किसी से।
भीम फोन से मोबाइल नंबर डायल करते हैं
सामने से एक आवाज गूंजती है जो कि सुनील नामक पत्रकार की थी।
भीम-हां जी भीमसिंह बोल रहा हूं। कल आप याद कर रहे थे आज हमने याद कर लिया।
सुनील-खुशकिस्मती हमारी। याद करते रहना चाहिए। बताए कुछ खास।
भीम-मुझे वोदका, वाइन, व अन्य शराबों में अंतर जानना है।
सुनील-ठीक है इसके लिए एक ही आदमी सबसे बेहतर हैं और वो अपने बॉस। अभी बात कराता हूं।
बॉस-क्या हाल है मीणा जी। बहुत दिनों बाद याद किया।
भीम-बस सर काम चल रहा है। आपसे ज्ञान लेना है।
बॉस-बताए।
भीम-वाइन, वोदका, स्कॉच, मॉल्ट, विस्की और रम में क्या अंतर होता है?
बॉस-अचानक आज ये जानकारी लेने की क्या जरूरत पड़ गई। क्या कोई खबर
भीम-नहीं, बस यूं ही सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिए।
बॉस-ठीक है।
वाइन अंगूर से बनती है।
मॉल्ट में फ्लेवर मिला होता है और एक तरह से इसे विस्की भी कह सकते हैं। जैसे पीटर स्कॉच और रेड नाइट।
वोदका व्हाइट कलर की होती है जिसमें स्मैल कम आती है।
स्कॉच 12 साल से पुरानी शराब को कहते हैं और स्कॉच की बोतल पर बराबर लिखा रहता है।
भीम-जानकारी के धन्यवाद
राधे-क्या बताया।
भीम-ये पढ़ो।(कागज राधे की तरफ बढ़ाया)
राधे-ये जानकारी तो जबरदस्त है। आज खुशवंत सिंह की वजह से एक नया ज्ञान मिल गया।
Thursday, April 29, 2010
ये तो कुछ भी नहीं.....
भोपाल। जबलपुर से एक रिपोर्ट भड़ास4 media par प्रकाशित हुई है की जबलपुर के कलेक्टर ने पत्रकारों को अपमानित करने वाली टिप्पणी की है. यु तो मामला गंभीर है लेकिन मध्य प्रदेश की पूरी स्थिति देखें तो हर दिन एक वाकया मिल जायेगा। ये तो कमिश्नर हैं, यहाँ के तो एसडीएम भी सवाल पसंद नहीं आने पर नए पत्रकारों से कह देते हैं की पहले सवाल करना सीख लो। इतना ही नहीं दैनिक भास्कर भोपाल के फोटो जर्नलिस्ट ने जब कुछ किसानों के साथ जाकर उनकी समस्या ओबेदुल्लागंज ब्लाक( ये मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में) के एसडीएम संजय सिंह के सामने रखी तो उन्होंने फोटो जर्नलिस्ट को दलाल कह दिया। इस टिप्पणी का मकसद किसी को आहत करना कतई नहीं है, लेकिन मध्य प्रदेश में पत्रकारों के अपमान की बानगी जरुर है।
ये है वो खबर
पत्रकारों से बोले कमिश्नर- चुल्लू भर पानी में डूब मरो
पत्रकारों के सवालों से झल्लाए जबलपुर के कलेक्टर ने पत्रकारों को चुल्लू भर पानी में डूब मरने की नसीहत दे डाली. उन्होंने ये बात उस समय कही जब पत्रकार शहडोल संभाग के कमिश्नर हीरालाल त्रिवेदी से उनकी नयी कार के बारे में पूछ रहे थे. मामला उस समय हुआ जब मध्यप्रदेश के वित्त मंत्री राघव जी जबलपुर में जबलपुर, शहडोल और रीवा संभाग की समीक्षा बैठक लेने आये थे.इस समीक्षा बैठक में शहडोल संभाग के कमिश्नर हीरालाल त्रिवेदी बिना नंबर की लक्जरी फोर्ड इन्डिवर वाहन में जबलपुर आये थे. जब ये बात पत्रकारों को पता चली तो उन्होंने वित्त मंत्री के जाते ही कमिश्नर साहब को घेर लिया और उनसे इस लक्जरी फोर्ड इन्डिवर वाहन के बारे में सवाल दाग दिए. कमिश्नर साहब अपना बचाव करते हुए कहने लगे की सरकार ने ये सुविधा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत कलेक्टर और कमिश्नर को प्रदान की है. इसी कारण इस सुविधा का लाभ हम उठा रहे हैं. ये बात जबलपुर कलेक्टर गुलशन बामरा को ठीक नहीं लगी और उन्होंने पत्रकारों को नसीहत देते हुए कहा की इस तरह के सवाल आप लोगों को यहां नहीं करने चाहिए. कमिश्नर साहब हमारे मेहमान है और उनसे इस तरह के आप लोग सवाल कर रहे हैं. आप लोगों को तो चुल्लू भर पानी में डूब जाना चाहिए.
अब साहब, कमिश्नर साहब आपके मेहमान हैं, और पत्रकार उनसे सवाल पूछ रहे हैं, और उन्हें इसका जवाब देने में कोई दिक्कत नहीं हो रही है, तो आपको ख़राब बिल्कुल नहीं लगना चाहिए.
इधर शहडोल कमिश्नर हीरालाल त्रिवेदी ने ये भी कहा कि सरकार ने 15 हज़ार रुपये किराये पर कोई भी वाहन लेने के लिए कहा है. लेकिन अब सवाल उठता है कि क्या 15 हज़ार रुपये में लक्जरी फोर्ड इन्डिवर वाहन किराये पर मिल सकता है. क्योंकि इस वाहन का एवरेज ही 6-8 प्रति किलोमीटर है. प्रदेश के वित्त मंत्री राघव का कहना है कि प्रदेश पर बहुत ढेर सारा कर्ज का बोझ है पर कमिश्नर साहब लक्जरी कार में घूम रहे हैं.
जबलपुर से आशीष विश्वकर्मा की रिपोर्ट
साभार-bhadas4media
Tuesday, April 27, 2010
संजीवनी

मन की स्वरलहरिया का स्वरूप हो तुम,
विचारों के आवेग में बसने वाले,
मेरी अभिव्यक्ति, मेरी अनुभूति का अभिप्राय हो तुम,
तीव्र तृष्णा के बीच में अतृप्त सा मन,
मन की मृग-तृष्णा को दूर करने का आधार हो तुम,
नहीं लांघना मर्यादाओं की लक्षमणरेखा,
मेरे लिए जीवन का अटल सत्य हो तुम,
मन के प्रवाह पर एकाधिपत्य है तुम्हारा,
मन जीवन की स्वर्ण जड़ित पतवार हो तुम,
जीवन बेला में कुछ भी असंभव नहीं लगता,
मेरे लिए प्राणवायु और संजीवनी से बढकर हो तुम।।
डॉ.सुरेन्द्र मीणा
डी/16, बिरलाग्राम नागदा जंक्शन, जिला उज्जैन(मध्य प्रदेश)
मोबाइल-09827305628
(डॉ सुरेन्द्र मीणा पेशे से एक कालेज में प्रोफ़ेसर हैं। साहित्य में विशेष रूचि रखते हैं और नागदा में होने वाले सामाजिक कार्यक्रमों में भी बढ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।)
Monday, April 26, 2010
मेरी बीबी अली बाबा चालीस चोर पड़ रही है
दरअसल हुआ यूं की कुछ साहित्यकार काफी हॉउस में चाय की चुस्कियों के बीच पुस्तक चर्चा कर रहे थे।
एक ने कहा-पुस्तकों का जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।
दुसरे ने सहमत होते हुए कहा-जैनेन्द्र कुमार ने साहित्य का श्रेय और परे में ठीक ही लिखा है की एक कहानी से या पुस्तक से कुल मिलकर एक प्रभाव पड़ना चाहिए।
सो कैसे? " तीसरे ने पूछा"
जब मेरी पत्नी गर्भवती थी तो वह सुरेन्द्र शर्मा का उपन्यास 'दो मुर्दों के लिए गुलदस्ता' पड़ रही थी और उसने दो मृत जुड़वां बच्चों को जन्म दिया।" पहले ने कहा।
"मेरी पत्नी गर्भवती होने के समय जेरोम के जेरोम का उपन्यास ' थ्री मेन इन ए बोट' पड़ रही थी और उसने तीन बच्चों को एक साथ इलाहाबाद में नाव में उस समय जन्म दिया जब हम लोग 'संगम स्नान' के लिए जा रहे थे, " दूसरे ने कहा।
यह सुनते ही तीसरा व्यक्ति गश खाकर कुर्सी से नीच गिरकर बेहोश हो गया। लोगों ने उसे उठाकर कुर्सी पर बैठाया और उसे किसी प्रकार होश में लाएउसके सामान्य होने पर लोगों ने उससे पूछा, " क्यों क्या हुआ? ठीक तो हो न?"
तब उसने कहा, " मैं तो ठीक हूँ लेकिन मेरी पत्नी गर्भवती है और आजकल वह' 'अलीबाबा चालीस चोर' पड़ रही है।
Sunday, April 11, 2010
एमपी पोस्ट ने कराइ चुनाव प्रक्रिया पर चर्चा
डॉ न भास्कर राव
विशिष्ट वक्तव्य-
राज्यसभा सदस्य और भाजपा के प्रदेश उपाध्क्ष अनिल माधव दावे।
मध्य पदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता अरविन्द मालवीय।
इनके अलावा चुनाव प्रक्रिया को कवर करने वाले
पत्रकारों ने भई कार्यक्रम को संबोधित किया।
इनमें दैनिक भास्कर के स्टेट ब्यूरो चीफ श्री गणेश संकल्ले, स्टार न्यूज़ के विशेष संवाददाता श्री ब्रिजेश राजपूत, हिंदुस्तान टाइम्स के विशेष संवाददाता श्री रंजन श्रीवास्तव और इंडिया टुडे के प्रमुख संवाददाता अम्बरीश मिश्र शामिल थे।
Tuesday, April 06, 2010
पहली बार पत्रकार आये खुद के खिलाफ

भोपाल। आमतौर पर नेताओं, अफसरों और दूसरे के खिलाफ लिखने वाले खबरनवीश यानि पत्रकार अब पहली बार अपने खिलाफ खबर लिखने लगे हैं। देश में पेड न्यूज को लेकर मचे हंगामे के बाद लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभाओं के साथ–साथ पूरे देश में चौराहे–चौराहे पर चर्चा हो रही है। क्यों बिक जाते हैं अखबार मालिक? क्या कर रहे हैं पत्रकार? क्या देख रहे हैं संपादक? क्यों चुनाव के समय लाखों रुपए लेकर पाठकों को धोखा देते हुए गलत उम्मीदवारों को चुनाव जीताने के लिए सकारात्मक ही नहीं, चापलूसी की खबरें छापी जाती है।
पहले बार देश के दिग्गज पत्रकार प्रभाष जोशी ने पेड न्यूज के खिलाफ मोर्चा संभाला था। इसी बीच उनका निधन हो गया। प्रभाष जोशी और राजेंद्र माथुर जैसे पत्रकारों को समर्पित करते हुए इंदौर प्रेस क्लब ने ‘‘अपने गिरेबां में...’’ शीर्षक से स्मारिका का प्रकाशन किया है। जिसका विमोचन प्रेस कौन्सिल ऑफ इंडिया के

Wednesday, March 10, 2010
मप्र विधानसभा में बढेगी पत्रकारों की सुविधा

is baithak में bani us samiti में patrika ke state beuro cheif dhanjay prtap singh, star news ke brijesh rajput, sharad dwedi, dinesh nigam, ranjan shrivastav ke saath saaini ks shamil hain। paden sachiv suchna adhikari deepak duby honge। samiti dus din में apna prtivedan patrkar deergha salahkar samiti ko soupegi।
पत्रकारिता के पर्चे में पकड़े गए नकलची

अपात्र करा रहे परीक्षा
विश्वविद्यालय ने परीक्षा कक्ष में वीक्षक की डच्यूटी के लिए जिन कर्मचारियों को नियुक्त कर रखा है, वे इसकी पात्रता ही नहीं रखते हैं। परीक्षा कक्ष में पत्राचार संस्थान में टच्यूटर किरण त्रिपाठी, शारीरिक शिक्षा संस्थान में कोच के पद पर पदस्थ नितिन गरुड़, खेल अधिकारी खलील खान वीक्षक की डच्यूटी कर रहे हैं।
कोई जवाब नहीं
कुलसचिव डॉ. संजय तिवारी ने कहा कि संबंधित विषय के शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं इसलिए उन्हें समन्वयक बनाया गया है। हालांकि अन्य सवालों पर वे चुप्पी साधे रहे।
