Wednesday, July 06, 2011

मैंने ही कार बदल ली और खुद ही थाने में शिकायत कर दी...

  • जिंदगी में कई बार ऐसे पल आते हैं जिनकी आप सपनों में भी उम्मीद नहीं करते हो। ऐसा ही कुछ मेरे साथ आज हुआ जिसे में शेयर किए बिना नहीं मान सकता-
  • ...रोज की तरह आज भी ऑफिस का काम निपटा कर कवरेज पर निकल गया। करीब ढाई बजे नगर निगम के दफ्तर पहुंचा और वहां कमिश्नर से मुलाकात की। मोबाइल पर कॉल आने का सिलसिला बदस्तूर जारी था। करीब चार बजे नगर निगम के छह नंबर स्थित दफ्तर पहुंचा और अपनी 800 मारुति कार को दफ्तर के सामने ही पार्क कर बिल्डिंग के भीतर चला गया। वहां जिन अधिकारियों से मिलना था उनसे मिलकर नीचे उतरा। इस दौरान मेरी मोबाइल पर लगातार बात चल रही थी। मैंने कार के गेट में चाबी लगाई और सीधा दैनिक भास्कर दफ्तर के लिए रवाना हो गया।
  • डीबी मॉल के पास आकर सोचा कि क्यों न कांग्रेस कार्यालय और हो आऊं, क्योंकि वहां से दो स्टोरी कलेक्ट करना थी। यह सोचकर व्यापमं और मंत्रालय होता हुआ लिंक रोड एक स्थित कांग्रेस कार्यालय पहुंचा। वहां अपनी कार पार्क कर कार्यालय की दूसरी मंजिल पर चला गया। अब तक सब कुछ सामान्य था। कार्यालय में मैंने पूर्व प्रवक्ता जेपी धनोपिया और नवनियुक्त महामंत्री कटियार साहब से मुलाकात की।
  • करीब 15 मिनट की मुलाकात और मोबाइल नंबरों का आदान-प्रदान कर नीचे आ गया।
  • जैसे ही कांग्रेस कार्यालय की सामने की पार्किंग में पहुंचा तो अपनी कार गायब देखकर हैरत में पड़ गया। चारों तरफ देख ली। हैरत तो इस बात की हो रही थी कि जिस जगह मैंने अपनी कार पार्क की थी वहां सफेद रंग की एक दूसरी 800 मारुति कार कैसे खड़ी। गौर से देखने पर समझ में आया कि यह कार तो मैंने ही पार्क की है। तब मुझे पता चला कि मैं अपनी बजाय किसी और की कार ले आया। हैरत तो इस बात पर भी हुई कि दूसरी कार में मेरी कार की चाबी कैसे लगी और यहां तक मैं कैसे उसको बिना पहचाने ले आया। जब कार को दोबारा खोला तो देखा कि वह 2003 की कार है और बेहद कंडम स्थिति में है। फिर मुझे लगा कि शायद किसी ने मेरी कार चुरा ली है और उसकी जगह यह पुरानी कार खड़ी कर गया। यह विचार आते ही मैंने क्षेत्रीय सीएसपी राजेश भदौरिया को कॉल कर पूरी स्थिति से अवगत कराया। पूरी बात अपने छोटे भाई ओमवीर को भी बताई और मेरे मित्र राजू मीणा को भी बताई। तो दोनों तत्काल मौके पर पहुंच गए। काफी सोच विचार करने के बाद हम लोग छह नंंबर पहुंचे तो वहां अपनी कार को खड़े पाया तब समझ में आया कि मैं ही दूसरी कार उठा लाया था। तब मैंने फिर से स्थिति से सीएसपी भदौरिया को अवगत कराया, क्योंकि अब समस्या यह थी कि कहीं असली मालिक थाने में एफआईआर न करा दे। ऐसा विचार आते ही हम लोगों ने कार में मालिक के नंबर ढूंढना शुरू किए। नंबर तो नहीं मिला, लेकिन एक शादी का कार्ड और इंश्योरेंस पॉलिसी मिल गई जिसमें कार मालिक का नाम लिखा था। यहां पत्रकारों वाला दिमाग काम आया और मैंने कार्ड के ऑनर को कॉल कर कार मालिक का नाम बताकर उनका नंबर ले लिया। नंबर मिलते ही कॉल किया तो कार मालिक श्रीमान सीएन सक्सेना साहब हबीबगंज थाने में एफआईआर कराने के लिए बैठे थे। और ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब उनके साथ भास्कर के ही वरिष्ठ पत्रकार श्री अलीम बज्मी साहब भी बैठे थे। मैंने उनसे बात कर सारी स्थिति से अवगत कराया और छोटे भाई को उन्हें लेने के लिए थाने भेजा। करीब दो घंटे तक चली धमा-चौकड़ी को आखिरकार विराम मिला और कार अपने असली मालिक के पास पहुंच गई।
  • ...और यह सब हुआ माननीय मोबाइल महोदय के कारण जिनपर बात करते-करते अपनी बजाय दूसरी कार उठा ली थी।
  • भीम सिंह मीणा, रिपोर्टर दैनिक भास्कर

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