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Wednesday, April 20, 2011

इस पोस्ट को तो लेना ही होगा

समाचार4मीडिया।कॉम पर एक पोस्ट आई जिसमे स्कूल लेवल पर मीडिया पाठ्यक्रम लागु करने की बात की गई। मैं इसे अपने ब्लॉग पर डाल रहा हूँ ताकि इसके लिए मैं भई प्रयास कर सकूँ।
भीम सिंह मीणा
कितना बहता होगा स्कूली पाठ्यक्रम में मीडिया को शामिल करना
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड(सीबीएसई) देश भर के स्कूलों में नए सत्र से मीडिया स्टडीज को 11 वीं और 12 वीं क्लास के छात्रों के पाठ्यक्रम में शामिल करने जा रहा है। छात्र वैकल्पिक विषय के रूप में मीडिया स्टडीज को चुन सकते हैं। इस कोर्स को पांच भागों में बांटा गया है। जिसमें मीडिया कम्यूनिकेशन, अंडरस्टैंड टू मास कम्यूनिकेशन, एडवरटाइजिंग एंड पब्लिक रिलेशन, फोक मीडिया और मीडिया रोल इन ग्लोबलाइजेशन शामिल हैं। एनसीईआरटी ने इस कोर्स को तैयार करने के लिए एक टीम का गठन किया है और इसके साथ ही इसे और बेहतर बनाने के लिए एनसीईआरटी ने विशेषज्ञों के सहयोग से देश भर के स्कूलों में पांच महीने तक फीड बैक लिया है। इसके पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने पर कई तरह से सवाल मीडिया इंडस्ट्री के सामने उभर कर आ रहे हैं। क्या इस कोर्स के माध्यम से वो स्किल विकसित हो सकेंगी जो मीडिया प्रोफेशन में चाहिए। क्या इसी उम्र में बच्चों को व्यावसायिक कोर्स में शामिल करना उचित है। सीबीएसई का कहना है कि हमारा उद्देश्य ग्लोबलाइजेशन के दौर में स्कूल से ही बच्चों के अंदर बेहतर कम्युनिकेशन स्किल विकसित की जाए और बच्चों में मीडिया की समझ बढ़ाई जाए। इस बारे में समाचार4मीडिया के संवाददाता आरिफ खान मंसूरी ने कुछ विश्वविधालयों के जनसंचार और कम्यूनिकेशन के प्रोफेसरों से बात करके उनकी राय जानी। इस कदम को लेकर कुछ प्रोफेसर इसका स्वागत कर रहे हैं तो कुछ का कहना है कि इसे स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करने का कोई औचित्य नजर नहीं आता।
पक्ष-
वर्तिक नंदा, जनसंचार विभागाध्यक्ष, लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली विश्वविधालय- सीबीएसई और एनसीईआरटी की यह पहल आज के दौर में बेहद महत्वपूर्ण है। इससे छात्रों को नई चुनौती मिलेगी क्यों कि अभी तक यह कोर्स सिर्फ कॉलेज लेवल तक ही उपलब्ध था लेकिन अब यह स्कूल लेवल पर पहुंच गया है। मीडिया स्टडीज के सीबीएसई बोर्ड में शामिल होने से पत्रकारिता में गंभीरता के साथ रिसर्च वर्क भी प्रारम्भ होगा।
मुझे कोर्स तैयार करने वाली कमेटी में भी रखा गया है और इस कोर्स को तैयार करने वाली कमेटी ने कोर्स के पाठ्यक्रम को बड़ी गंभीरता और सोंच-विचार के साथ तैयार किया है। जिससे जो छात्र इस क्षेत्र में आएंगे उनमें कुछ क्वालिटी जरूर होगी और वे अपनी दिशा तय भी कर चुके होंगे कि उन्हें इस क्षेत्र में आना भी है या नहीं। मैं इसका बहुत दूरगामी असर देख रही हूं साथ ही इससे मीडिया को मजबूती भी मिलेगी।
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता और संचार विश्वाविधालय, भोपाल- मेरा मानना है कि सरकार नें यह बहुत ही अच्छा कदम उठाया है। आमतौर पर देखा जाए तो बच्चों में संवाद की कमी देखी जाती है। इस पहल के जरिए बच्चों में कम्यूनिकेशन स्किल को बढ़ावा मिलेगा। जिस तरह से नैतिक शिक्षा की जरुरत होती है उसी तरह कम्यूनिकेशन शिक्षा की जरुरत है। इस पाठ्यक्रम के बारे में मेरा यही कहना है कि इसे सैद्धांतिक रूप से पढ़ाया जाना चाहिए। फोक मीडिया को भी पाठ्यक्रम में शामिल करके बहुत अच्छा काम किया गया है। इससे पश्चिमी सभ्यता की चल रही बयार में भारतीय संस्कृति को जानने और समझने का बच्चों को मौका मिलेगा। और इससे भारतीय संस्कृति भी बढ़ेगी।
डॉ. शाहिद अली, अध्यक्ष और रिडर, जनसंचार और मास विभाग, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविधालय रायपुर- सीबीएसई और एनसीईआरटी की इस शुरुआत का मैं स्वागत करता हूं। इसका असर अच्छा पड़ेगा। पहले पत्रकारिता की पढ़ाई ग्रेजुएशन के बाद होती थी। लेकिन कुछ विश्वविधालयों ने स्नातक लेवल पर जब इस पाठ्यक्रम की शुरुआत की तो इसको अच्छा रिस्पांस मिला। और मुझे लगता है कि इस पाठ्यक्रम को भी पसंद किया जाएगा। पाठ्यक्रम में 60 फीसदी सैद्धांतिक और 40 फीसदी व्याहारिक ज्ञान पर जोर होना चाहिए। जैसा आपने फोक मीडिया के बारे में पूछा तो मेरा तो यही कहना है कि फोक मीडिया के जरिए पत्रकारिता में सुधार होगा और समाज को एक ताकत मिलेगी। इससे संवाद को भी बढ़ावा मिलेगा और और सामाजिक मूल्यों के साथ मीडिया को भी फायदा होगा।
रमा शर्मा, अध्यक्ष, पत्रकारिता विभाग, हंसराज कॉलेज (दिल्ली विश्वविधालय)- इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने के बाद लोगों की मीडिया की मडिया में जागरुकता बढ़ जाएगी। मैं सोचती हूं कि 11 और 12 क्लास का बच्चा इतना परिपक्व हो जाता है कि वो तय कर सकता है कि उसे किस लाइन में अपना कॅरियर बनाना है। जिनको मीडिया में कॅरियर बनाना है उनके लिए तो अच्छी बात है ही और जिनको मीडिया में अपना कॅरियर भी नहीं बनाना उनके लिए भी अच्छी बात हैं क्योंकि उन्हें इसके जरिए मीडिया की बेसिक नॉलेज हो जाएगी। कोर्स के प्रारूप की बात करें तो यह इस पर आधारित है कि इस कोर्स को कौन विकसित कर रहा है। पाठ्यक्रम बनाने वाली टीम में स्कूल या कॉलेज से जुड़े हुए लोग है या नहीं। क्योंकि बच्चों को पढ़ाना और कॉलेज में पढ़ाने मे फर्क है। इस टीम में स्कूल से जुड़े हुए लोग शामिल होने चाहिए। मुझे लगता है इस पाठ्यक्रम में सैद्वांतिक से ज्यादा व्यावहारिक ज्ञान पर ज्यादा जोर होना चाहिए।
विपक्ष
मुकुल श्रीवास्तव, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, लखनऊ विश्वविधालय - 11वीं और 12 वीं कक्षा में मीडिया स्टडीज पाठ्यक्रम में शामिल करने पर में कतई सहमत नहीं हूं। उस उम्र के छात्र इतने म्योचर नहीं होते कि वो निश्चित कर पाएं कि उन्हें करना क्या है। उस उम्र में हमारा जिंदगी को देखने का नजरिया स्पष्ट नहीं होता। मुझे नहीं लगता कि इस पाठ्यक्रम के जरिए हम मीडिया प्रोफेशन के लायक स्किल का विकास कर पाएंगे। और अगर मीडिया प्रोफेशन के स्किल को विकसित नहीं किया गया तो जाहिर सी बात है कि गलतियां होंगी। हां, एक बात है इसके जरिए मीडिया की समझ हो जाएगी। जैसा आपने कहा कि संवाद की कमी है इसके जरिए हम पूर्ति कर सकते हैं। अगर संवाद की कमी है तो इसके लिए भी अध्यापक जिम्मेदार हैं। मुझे नहीं लगता कि किताबें पढ़ाकर कम्यूनिकेशन स्किल बढ़ाई जा सकती है।
डॉ. संगीत रागी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, अग्रसेन कॉलेज(दिल्ली विश्वविधालय) - देखिए मैं खुद मीडिया प्रोफेशनल रहा हूं और पिछले 12 साल से मीडिया स्टडीज पढ़ा रहा हूं। मुझे नहीं लगता कि ग्रेजुएशन के पहले ऐसे कोर्सेज शुरू किए जाएं। क्योंकि मीडिया वैसे ही आज के समय में गंभीरता खोती जा रही है। अगर ये कोर्स शुरू हो जाएगें तो वो गंभीरता और भी ज्यादा कम हो जाएगी। क्योंकि मेरे हिसाब से 12वीं क्लास के बच्चों में गंभीरता की पूरी तरह से कमी होती है। मुझे मीडिया स्टडीज को पाठ्यक्रम में शामिल करने में कोई अच्छी बात नजर नही आई। हां इससे संवाद को मजबूती तो मिलेगी, उस साइड से देखे तो अच्छा हैं लेकिन इसके बहाने मीडिया स्टडीज का कोर्स थोपने की जरुरत तो नहीं थी।
डॉ. श्रुति आनंद, अध्यक्ष पत्रकारिता विभाग, रामलाल आनंद कॉलेज (दिल्ली विश्वविधालय)- मुझे मीडिया स्टडीज को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करने में कोई औचित्य नजर नही आता। यह एक प्रोफेशनल कोर्स है। और मुझे नहीं लगता कि इस स्तर पर मीडिया की पढ़ाई होनी चाहिए। इसका प्रोफेशन पर भी असर पड़ेगा क्योंकि जो स्किल्स मीडिया प्रोफेशन में चाहिए वो विकसित नहीं हो पाएंगी। 11 या 12 वीं के बच्चे इतने परिपक्व नहीं होते कि उन्हें मीडिया के बारे में पढ़ाया जाए। वैसे बेसिक नॉलेज दे सकते हैं। जहां तक इससे संवाद को ताकत मिलने का सवाल है तो उसके लिए दूसरे बहुत सारे तरीके हैं, कई कोर्स हैं। फोक मीडिया के जरिए छात्रों को भारतीय संस्कृति को जानने और पहचानने का मौका मिलने की जो बात है तो उस पर मेरा यही कहना है कि इसे सामान्य ज्ञान के पाठ्यक्रम में शामिल करके भी हम बच्चों को भारतीय संस्कृति के बारे मे पढ़ा सकते थे।
सभी प्रोफेसरों के विचार सुनने के बाद लगता है कि इसे 11वीं और 12 वीं के पाठ्यक्रम में शामिल करने लिए सीबीएसई को गहन चिंतन करने की जरूरत है। इस पर बिना कुछ सोंचे समझे काम नही करना चाहिए। और पाठ्यक्रम को इस प्रकार से तैयार किया जाना चाहिए ताकि उस लेवल के बच्चों में वैसी स्किल्स विकसत कर सके जो इस प्रोफेशन में चाहिए।

Saturday, December 11, 2010

दंगा कोई भी करे, दर्द तो घर की महिला को ही मिलेगा

कल सुबह जब मैं अखबार पढ़ रहा था तो पीपुल्स समाचार में प्रकाशित भूमिका कलम की खबर ने मुझे फिर सोच में डाल दिया। इस खबर का विषय जितना संवेदनशील था, उतने ही संवेदनशील तरीके से इसे लिखा गया था। मामला था रतलाम में दंगा होने के बाद वहां की मुस्लिम महिलाओं पर हुए असर का। खबर लिखी तो मानव अधिकार दिवस के अवसर पर ऐसे विषय हमको हर दिन झंकझोरते हैं। खबर में रानी-बी ने बताया कि उसकी सास को पुलिस ने बालों से पकड़कर घसीटा और जब ऐसा करने से रोका तो उसे भी मारा। वहीं आफरीन ने बताया कि उसके भाई और पिता को भी पुलिस ने बेदर्दी से पीटा। अब वह बच्चों के शोर से भी डरने लगी है। 17 साल की समरोज के पिता को पुलिस उठाकर ले गई और छह दिन जेल में बंद रखा। 43 साल की अख्तर बी और उसके शौहर को पुलिस के जवानों ने केवल इसलिए पीटा कि वे मुस्लिम थे। आज भी अख्तर के पेट में दर्द होता है और वह दो महीने से चंदे पर गुजारा करने को मजबूर है।

अब मध्यप्रदेश में भी सब कुछ ठीक नहीं है
मप्र में शिवराज सिंह चौहान उम्दा काम कर रहे हैं, लेकिन कहीं न कहीं उनकी आंख से चूक हो रही है। भूमिका कलम की ये खबर मध्यप्रदेश में गरीबों के साथ होने वाली घटनाओं को छोटा सा नमूना भर है। इसके पहले रायसेन जिले के औबेदुल्लागंज ब्लॉक में भी ऐसा ही हुआ था। बात केवल मुस्लिमों की ही नहीं है, बल्कि हर वो आदमी पुलिस से पीडि़त है जो आम है और वो किसी अपराध का शिकार हो गया है।

हर तारीख पर नज़र

हमेशा रहो समय के साथ

तारीखों में रहता है इतिहास