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Wednesday, May 11, 2011

एक में से पांच युवतियां निकली और बन गया गूगल

यूं आप ढूंढने जाओगे कि गूगल के बिना कोई इंटरनेट सर्फिंग कर ले तो आप शायद ही कोई मिले। वैसे भी अब गूगल को लोग गूगल गुरू कहने लगे हैं। फिर भी मैं आज गूगल गुरू को देखने की सिफारिश आपसे कर रहा हूं। क्योंकि जब हम गूगल डॉट को डॉट इन पर जाएंगे तो गूगल रोज की तरह दिखाई नहीं देता। हमेशा जबरदस्त प्रयोग करने वाला गूगल आज खास लेकर आया है। जिस अंदाज में गूगल ने महिलाओं के कैरीकेचर द्वारा नृत्य करवाकर गूगल लिखवाया है वह अदुभत है। गूगल लिखने के लिए अंग्रेजी के जी.ओ.ओ.एल.ई. वर्ड का प्रयोग किया जाता है। इनमें से सबसे पहले बनता है ई। ई बनाने के लिए जिस कैरीकेचर का प्रयोग किया है वह शुरू में अफगानिस्तान की महिला की तरह लगता है। यह महिला मिस्त्र की तरह नृत्य करती है। इसके बाद इसी महिला में से एक साया निकलता है और एक सुंदर मूर्ति के रूप में खड़ा हो जाता है और बन गया एल.। इसी मूर्ति में से एक और साया निकलता है जो योग करती हुई महिला के रूप में जी. बन जाता है। जी. से निकलकर एक सुंदर से महिला हवा में गोता लगाते हुए दो ओ. बनाती है और हवा में ही अटक जाती है। इसी महिला में से एक और महिला निकलती है जो गूगल का जी. बनाती है। और ऐसे पूरा होता है आज गूगल।

Sunday, May 08, 2011

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे कलाम के हाथो ‘भोजपुरी सिनेमा के पचास साल किताब’ का विमोचन

नई दिल्ली, 'भोजपुरी सिनेमा का पचास साल : २५ चर्चित फिल्में' लेखक कुलदीप श्रीवास्तव की पुस्तक का विमोचन पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने हिंदी भवन के सभागार में किया. इस अवसर पर कार्टून वाटच के त्रिंबक शर्मा और हरिभूमि समाचार के संपादक हिमांसु द्विवेदी भी मौजूद थे. यह पुस्तक भोजपुरी सिनेमा के पचास साल के सफ़रनामा परप्रकाश डालती है. कुलदीप श्रीवास्तव मूलत: बिहार सिवान के रहने वाले है, जो पिछले कई सालो से भोजपुरी फिल्मो पर लिखते आ रहे है. इसमें १९३१-३२ में कुछ हिंदी फिल्मो में भोजपुरी गानों की शुरुआत, १९४८ में दीलिप कुमार की 'नदिया के पार' में ८ गाने थे और सभी गाने भोजपुरी भाषा में थी, जिसकी जिक्र इस पुस्तक में मिलती है, साथ ही १९६१ में जब पहिली भोजपुरी फिल्म 'गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो', तथा लागी नहीं छूटे राम, धरती मइया, बिदेसिया, बालम परदेसिया, दगाबाज़ बलमा सहित कुल २५ चर्चित फिल्मो के बारे में जिसने भोजपुरी सिनेमा के ५० साल के इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी है. इस किताब ने भोजपुरी सिनेमा के असली रूप को समेटा है, और अब तक चली आ रही यह धारणा कि भोजपुरी फिल्मों में केवल अश्लीलता ही रहती है को झूठा साबित करती है. लेखक ने अपनी पुस्तक में बताया है कि जब भोजपुरी फिल्मे बनने लगी, शुरू से ही सभी फिल्मों में समाज के लिए कुछ न कुछ सन्देश होती थी.

BHOJPURI SANSAR PATRIKA - DELHI
23/116, Veer Sarvarkar Block
(Near Janta Book Depo), Main Vikash Marg, Shakarpur, Delhi - 110092
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