Friday, September 04, 2009

अब पत्रकारिता के ब्राम्हणों का विरोध

मध्यप्रदेश में पत्रकारों के बीच में वैमनस्य पैदा करने के लिए पहले ब्राम्हण पत्रकारों के नाम पर लाबिंग की गई तो अब इसके जवाब में गैर ब्राम्हण पत्रकार एक जुट हो रहे हैं मामले ने अब तूल पकड़ लिया है और मध्य प्रदेश में पत्कारिता के इतिहास में पहली बार पत्रकार जाती को लेकर आमने-सामने हैं। ब्राम्हण पत्रकारों को एक जुट करने में मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार शलभ भदौरिया सक्रिए हो गए हैं शलभ भदौरिया का कहना हैं पत्रकार किसी जात-पात में बँटा व्यक्ति नहीं होता और कुछ लोग अपने निजी स्वार्थो के लिए पत्रकारों को जाती और वर्ग में बांटे इसे भी ठीक नहीं कहा जा सकता मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में ब्राम्हण पत्रकार समागम मध्यप्रदेश के एक मंत्री की सोची समझी चाल का नतीजा था ऐसा करके पद, पैसा और स्त्री लोलुप पत्रकारों के जरिये इस बात का प्रचार करना था कि प्रदेश के तीन प्रमुख ब्राम्हण मंत्री अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले हैं लेकिन ब्राम्हण पत्रकारों में ही इस समागम के बाद मतभेद शुरू हो गए ईमानदार और सद्चरित्र ब्राम्हण पत्रकारों ने ऐसे किसी भी आयोजन से अपने को दूर बताया और साफ़ कहा "हम तो सिर्फ खाना खाने गए थे " वैसे भी उस आयोजन में तमाम सारे ब्राम्हण पत्रकारों ने दूरी बना ली थी मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष शलभ भदौरिया के नेत्रत्व में गैर ब्राम्हण पत्रकार एकजुट हो रहे हैं गैर ब्राम्हण पत्रकारों का समागम भी अब जल्द भोपाल में होने वाला हैं इस आयोजन के बारे में 'दखल' को खबर मिली हैं कि इसमें मूलत: सिर्फ पत्रकारिता करने वाले लोग शामिल होंगे और आयोजन से उन पत्रकारों को दूर रखा जायेगा जो पत्रकारों के बीच में जाति और मजहब की दीवारे खड़ी कर रहे हैं पत्रकारों के शीर्ष नेता शलभ भदौरिया ने बताया कि १३ सितंबर को उज्जैन में श्रमजीवी पत्रकार संघ कि वर्किंग कमेटी कि मीटिंग में यह मसला उठेगा , वहां ऐसे पत्रकारों कि घोर निंदा कि जायेगी जो पत्रकारों के बीच में विभेद पैदा कर के लाभ लेना चाहते हैं युवा पत्रकार प्रदीप जायसवाल का साफ़ कहना हैं कि पत्रकार समाज से जातपात मिटने का काम करे यह तो समझ में आता हैं, कथित बड़े पत्रकार अपनी सुख सुविधाओं और खुद कि दुकाने चलती रहे इसलिए ऐसा करे यह समझ से परे हैं यह कथित सुविधा भोगी ,शराबी अय्याश पत्रकार अब समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं टेलीविजन पत्रकार टाइम्स नाउ के राहुल सिंह कहते हैं "यह ठीक नहीं हैं" जाती के आधार पर पत्रकारों का विभाजन ठीक नहीं हैं, अपने लाभ के लिए पत्रकारों को जाति में बांटा जाना घोर निंदनीय हैं समाज पत्रकारों को उनके पेशे के लिए सम्मान देता हैं जाती के आधार पर नहीं राहुल कहते हैं "पत्रकारों को जातपात' राजनैतिक दलों में आस्था जैसे मसलों से बचना चाहिए वहीँ सी एन ई बी के पत्रकार अनुराग अमिताभ मिश्रा का साफ़ कहना हैं जो ब्राम्हण पत्रकारों के नाम पर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं वे आइना देखे और अपने आप से पूंछे कि लोग उन्हें ब्राम्हण होने के नाते जानते हैं या पत्रकार के रूप में वैसे भी इस तरह का घिनौना काम करने वाले लोग पत्रकार छोड़ बाकि सब होंगे अनुराग अमिताभ कहते हैं कि अब पत्रकारों के भेस में तमाम सारे दलाल, अय्याश और धंधेबाज इकठ्ठा हो गए हैं समाज को चाहिए कि वे ऐसे लोगो को सबक सिखाये मध्यप्रदेश में कुछ पत्रकारिता से असबंध लोगो ने ब्राम्हण पत्रकारों के नाम पर जब जमावडा शुरू किया तो इसका पत्रकारों ने ही खासकर ब्राम्हण पत्रकारों ने विरोध शुरू कर दिया हैं इसके बाद से पत्रकारिता के कथित ब्राम्हणवादियों की मुसीबते शुरू हो गयी हैं
साभार। ww.dakhal.net

3 comments:

Arvind Mishra said...

ब्राह्मणों का विरोध कोई नयी बात नहीं है -यह सनातन है !

Anjli bedwal said...

khabar achhi hai. iske phle bhi aapne hi mamle ka khulasa kiya tha.lekin patrkaron me is tarh aaps me vemnasy theek nahi hai

दिनेशराय द्विवेदी said...

जब जब श्रमजीवी संगठित होते हैं तो मालिकों के काम खड़कने लगते हैं। वे घबरा उठते है कि ये संगठन अब उन की कमाई में हिस्सा और बेहतर काम की सुविधाएँ मांगेंगे। संगठनों को तोड़ने के लिए मालिक जाति, धर्म आदि के आधार पर श्रमजीवियों के बीच फूट पैदा करने के यत्न करता है। यह सब उसी का नतीजा है। श्रमजीवी पत्रकारों को इस साजिश का पर्दाफाश कर उसे नाकाम करना चाहिए।


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