(साभार दखल नेट)
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Friday, August 21, 2009
ब्राम्हण पत्रकारों के भोज का सच
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को बदले जाने के लिए ब्राम्हण पत्रकारों ने लाबिंग शुरू कर दी हैं इंदौर के पैसे से भोपाल में पत्रकारों के लिए एक भोज रखा गया था भोज तो दरसल एक बहाना था इंदौर के एक बीजेपी नेता ने इस सब को प्रयोजित किया और ब्राम्हण पत्रकारों को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए ब्राम्हण मुख्यमंत्री को वक़्त की जरूरत बताया हलाकि इस आयोजन के जरिये एक तीर से दों निशाने साधने की कोशिश की गयी हैं एक तो ब्राम्हण मंत्रियों को इसके जरिये सीएम शिवराज सिंह से लड़वाने की कोशिश हैं और दूसरा अगर यह लडाई शुरू होती हैं तो इसका सीधा लाभ इंदौर को दिलवाया जाये और मालवा के दमदार नेता कैलाश विजयवर्गीय को मुख्यमंत्री बनवाया जाये इस सब जोर गणित के पीछे ब्राम्हण पत्रकारों को मोहरा बनाया जा रहा हैं और गरीब गुरबे पत्रकार अपने ही बीच के कुछ दल्ले नुमा पत्रकारों की चाल को भोज करने के बाद ही समझ पाए भोज में शामिल अधिकांश पत्रकार भोज कर वापस हो लिए क्यूंकि इस आयोजन में जो चहरे सामने आये उनमे कुछ घोषित दलाल , कुछ घोषित शराबी और कुछ घोषित स्त्रीलोलुप पत्रकार थे इनमे वे लोग भी शामिल हैं , जिनके दामन पर अमानत में खयानत और लड़कीबाजी तक के दाग लगे हैं इस भोज में गए पत्रकार सुरेश शर्मा ने बताया की मुझे तो इनका एजेंडा तक नहीं पता था , मुझे तो अचानक भाषण देने को खडा कर दिया गया इसका औचित्य क्या था मुझे तो यह तक नहीं पता था ब्राम्हण भोज के लिए लाखों रूपये एक इन्दौरी दलाल ने दिए थे उनका मकसद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ ब्राम्हण पत्रकारों को एकजुट करना और इस बात को फैलाना था कि शिवराज के सामने ब्राम्हण मंत्री अनूप मिश्रा , गोपाल भार्गव और लक्ष्मीकांत शर्मा अब एक चुनौती हैं लेकिन इस आयोजन में बिचौलिये और कुछ चरित्रहीन ब्राम्हण पत्रकारों के सामने आने से यह शो फ्लॉप हो गया , अच्छी संख्या के बावजूद सभी ब्राम्हण पत्रकारों को एक राए नहीं किया जा सका इसमें शामिल दो पत्रकारों को लाल बत्ती चाहिए थी तो आठ को सरकारी फिल्म के टेंडर तो बाकि को सप्लाई ऑडर चाहिए थे सब के अपने अपने एजेंडे थे इनमे से २७ लोग ऐसे थे जो पत्रकार बिरादरी में सिर्फ काले काम को छुपाने के लिए हैं एक एसा था जिसके चेहरे पर उसके काले कारनामो कि कालिख साफ़ नज़र आती हैं इनमे कुछ अपने कारनामों से इतने बदनाम हो चुके हैं कि वे ऐसे आयोजन के जरिये अपने अस्तित्व को तलाश रहे हैं इनमे से कुछ कि चिंता यह थी कि उनकी सरकारी नौकरी वाली बीवियों के तबादले न हो और अगर हो गया हैं तो उसे कैसे रुकवाया जाये ब्राम्हण पत्रकारों कि एकता के नाम हुए इस आयोजन से तमाम सारे उन पत्रकारों ने दूरी भी बनाये राखी जो सिर्फ पत्रकारिता में यकीन रखते हैं इंदौरी अंदाज में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलने के इस अभियान कि वैसे तो अपने आप ही हवा निकल गयी क्यूंकि २७ लोग मिलकर क्या खिचडी पका रहे हैं , यह बाकि पत्रकारों कि समझ में आ गया कार्यक्रम में शामिल मनोज मिश्रा ने कहा कि "दलालों और चरित्रहीन के रहते ऐसा कोई आयोजन सफल नहीं हो सकता क्यूंकि पत्रकारिता किसी जाती विशेष से जुडा मसला नहीं हैं हम सारे समाज के हैं सिर्फ ब्राम्हणों के नहीं जो लोग भी इस आयोजन के पीछे हैं वे भी समझ ले पहले पत्रकार को पत्रकार बन जाने दो फिर उसे ब्राम्हण और राजपूत या दीगर जात में बाँटना वैसे भी उस आयोजन में जो लोग सामने थे उनके लक्षण ब्राम्हणों वाले थे नहीं कुछ कि काम वास्नाये उनके चेहरे पर थी तो कुछ सुबह से ही दारु पी कर चले आये थे" इस आयोजन से उम्मीद थी कि सारे ब्राम्हण कलमघिस्सू एक हो कर राजनीती में बदलाव की नई इबारत लिखेंगे लेकिन हुआ ठीक उसका उल्टा इनमे जिन चेहेरों को सामने लाया गया उनके कारनामों से ब्राम्हण जाति और पत्रकारिता दोनों शर्मसार हुई सो अधिकांश ब्राम्हण पत्रकारों ने भोज किया और अपने-अपने घर खिसक लिए आयोजन स्थल पर जो लोग बचे थे वे सोंचे ,वे क्या वाकई पत्रकार हैं और क्या सिर्फ पत्रकारिता कर रहे हैं या इसकी आड़ में उनकी मंशा कुछ और हैं
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6 comments:
bahut badiya bhiya. sahi poll kholi
achchhe jaa rahe ho boss, mantriyon ki poll kholna jaroori hai.
Media apne khud ke liye kam or doosron ke liye jyada istemal hota hai.
अच्छा काम कर रहे हैं आप.
nice
बहुत सही आईना दिखाया आपने दल्लों को
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