Thursday, February 05, 2009

उन्‍होंने नाकाबिल को काबिल बना दिया।

नया दिन होगा, नई रात होगी,
नए सिलसिले की शुरुआत होगी,
मुसाफिर हो तुम भी,
मुसाफिर हैं हम भी,
किसी मोड़ पर मुलाकात होगी।
ये लाइनें हैं मध्‍यप्रदेश में इलेक्‍टानिक पत्रकारिता को एक मुकाम देने वाले राजेश बादल की। उन्होंने हाल ही में भारी मन से वॉइस ऑफ इंडिया से इस्‍तीफा तो दे दिया, लेकिन हमेशा की तरह मन में साथियों के लिए जो भाव रहे उसको अभिव्‍यक्‍त नहीं कर पाए। नतीजतन दफ़तर छोडने से पहले उन्‍होंने सभी साथियों को ईमेल भेजकर दिल के गुबार को उसमें व्‍यक्‍त किए। उनके बारे में कुछ कहूं ऐसा मुझमें सामर्थ्‍य तो नहीं, लेकिन गुरु-शिष्‍य परंपरा को कैसे भूल जाउं। उनके इस ईमेल और उसमें लिखी हुई कविता को पढकर याद आता है वो दौर जब मैं और वे साथ थे। अगर ये कहूं कि वे मुझे कलम पकडना सिखा रहे थे तो कुछ गलत नहीं होगा। प्रस्‍तुत उस सुनहरे अध्‍याय की कुछ यादें---
नाकाबिल को काबिल बना दिया
मुझे पत्रका‍रिता का ककहरा सिखाने वाले राजेशजी थे और उन्‍होंने जो सिखाया उसका अनुसरण कर आज दैनिक भास्‍कर जैसे बैनर में काम कर रहा हूं। लेकिन दुख इस बात का है कि हमारे जैसे नौजवानों को राह दिखाने वाले चलते-फिरते संस्‍थान को एक ऐसा संस्‍थान नहीं मिल पा रहा है, जहां उनके सिद्वांतों को मानने वाला कोई हो । खैर स्थिति क्‍या रही होगी ये बता पाना मुश्‍िकल है लेकिन मैंने जो दो साल बादलजी के साथ बिताएं वे निश्चित ही मेरी पत्रकारिता के शैशवकाल के थे। वर्ष 2001 में जब आज तक चैनल लांच होने वाला था, उसी दरम्‍यान मेरा उनके साथ जुड़ना हुआ। 25 दिसम्‍बर 2000 को उनसे मेरा पहली बार सामना हुआ। मित्र घनश्याम के माध्‍यम से मैं उनसे मिला। जब पहली बार उन्‍हें देखा तो अपने मित्र से कहा कि यार यह तो वहीं बादलजी हैं जो टीवी पर दिखते हैं। तो मित्र ने मेरा कौतुहल शांत करते हुए कहा कि बिल्‍कुल ये वही बादलजी हैं जो टीवी पर आते हैं। बस इसके बाद सफर शुरु हो गया पत्रकार बनने का। पहला मौका मिला कैमरा असिसटेंट का, लेकिन मन में पत्रकार बनने की इच्‍छा बलवती जा रही थी। मेरे ख्‍याली पुलावों से बादलजी भी अनभिज्ञ नहीं थे इसलिए वे मुझे अच्‍छे से पढाई करने(उस समय में कालेज में था) का कहा करते थे। वे बार-बार कैमरे और एंगलों पर ध्‍यान देने का बोलते थे लेकिन मैं हूं कि अखबार पढने में और संपादक के नाम पत्र लिखने में खोया रहता था। उन्‍होंने शायद मुझमें कुछ देखा था इसलिए बिना कुछ कहे मुझे पत्रकार बनाने के गुर सिखाने लगे थे। हालांकि उस समय उनकी हर डांट मुझे बुरी लगती थी। लेकिन खुशी तब होती थी जब माखनलाल पत्रकारिता संस्‍थान के छात्र बादलजी से मिलने के लिए मुझसे प्राथर्ना करते थेतो मैं अपनी किस्‍मत पर रस्‍क करने लगता।। खैर समय बीतता गया और मैं धीरे-धीरे एक ठीकठाक कैमरामेन बनने की तरफ बढने लगा। इसी दरम्‍यान कुछ ऐसा‍ घटा कि मुझे उनका साथ छोडना पडा, लेकिन उनका हाथ मेरे उपर हमेशा रहा। उनकी हर डांट में प्‍यार था लेकिन उससे भी ज्‍यादा थी सीख और आज इस ब्‍लॉग के माध्‍यम से यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि बादलजी एक अच्‍छे पत्रकार तो हैं ही लेकिन उससे भी ज्‍यादा अच्‍छे हैं इंसान। निश्‍िचत रूप से वीओआई को उनकी कमी खलेगी और उससे भी ज्‍यादा कमी खलेगी वीओआई के स्‍टाफ को, क्‍योंकि उनका साथ छूटने के बाद मुझे भी उनकी कमी खली थी। उन्‍होंने नाकाबिल को काबिल बना दिया।
-भीमसिंह मीणा
भडास की खबर का मजमून
वीओआई के ग्रुप एडीटर बादलजी ने इस्तीफा दे दिया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अऩुसार बादलजी पर वीओआई से स्टाफ कम करने को लेकर दबाव था जिसे उन्होंने एक हद तक तो स्वीकार किया लेकिन दबाव ज्यादा बढ़ने पर इस्तीफा देना उचित समझा। वीओआई के ग्रुप एडीटर पद पर साल भर के भीतर तीन लोग बैठ चुके हैं। शुरुआत में रामकृपाल सिंह थे। उनके बाद रविशंकर बनाए गए। बाद में रविशंकर को हटाकर राजेश बादल को ग्रुप एडीटर बनाया गया। सीईओ राहुल कुलश्रेष्ठ के इस्तीफे के बाद रविशंकर को सीईओ की जिम्मेदारी दी गई। अब बादलजी के ग्रुप एडीटर पद से इस्तीफा देने से वीओआई को काफी बड़ा झटका लगा है।
बादलजी के इस्तीफे को अप्रत्याशित माना जा रहा है। बादलजी प्रबंधन के साथ मिल-जुल कर काम करने और कराने में यकीन रखते थे। वीओआई के मालिकों के साथ बादलजी की नजदीकी को देखते हुए यह कयास लगाया जा रहा था कि वे लंबी पारी खेलेंगे। कई राज्यों में वीओआई के लिए कंटेंट के साथ-साथ बिजनेस मैनेज कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बादलजी के प्रैक्टिकल एप्रोच से स्टाफ और मैनेजमेंट दोनों प्रसन्न रहा करते थे।
बादलजी के जाने के बाद से माना जा रहा है कि वीओआई को संभाल पाना अब किसी के बूते की बात नहीं रही। वीओआई में लोग वैसे ही कई महीनों से बिना सेलरी के काम कर रहे हैं। मुंबई समेत कई ब्यूरो आफिसों से स्टाफ को या तो निकाला जा रहा है या फिर लोग खुद छोड़कर जा रहे हैं। संसाधनों के अभाव में चल रहे इस चैनल के लिए बादलजी का इस्तीफा काफी बड़ा झटका माना जा रहा है।
भड़ास4मीडिया की रिपोर्ट से इस बादलजी के इस्तीफे की पुष्टि हुई है.
बादलजी ने जुलाई 2008 में वीओआई ज्वाइन किया था। बादलजी ने इस्तीफा देने के बाद सभी वीओआईकर्मियों को मेल कर कुछ इस अंदाज में थैंक्यू कहा-
साथियों
जा रहा हूं। सबसे एक एक कर शायद न मिल पाऊं। माफ करिएगा। पर आपके साथ जो भी वक्त बीता, अच्छा रहा। बहुत कुछ सीखने को मिला। कई बार काम को लेकर गुस्से में कुछ कहा हो तो भूल जाएं। मेरे दिल में आप सभी को लेकर बेहद सम्मान है। जानबूझ कर मैंने आपको ठेस पहुंचाने का कोई काम नहीं किया। आप सबके सहयोग से इतने कम समय में पांच-छह चैनलों को शुरू कर पाए। अच्छी पत्रकारिता करने की कोशिश की। ये हमेशा याद रहेगा।
नया दिन होगा, नई रात होगी,
नए सिलसिले की शुरुआत होगी,
मुसाफिर हो तुम भी,
मुसाफिर हैं हम भी,
किसी मोड़ पर मुलाकात होगी.

4 comments:

Ashish Maharishi said...

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Ashish Maharishi said...

राजेश जी वाकई एक अच्छे इंसान हैं, इसमें कोई शक नहीं है।

संगीता पुरी said...

मध्‍यप्रदेश में इलेक्‍टानिक पत्रकारिता को एक मुकाम देने वाले राजेश जी को उनके अच्‍छे भविष्‍य के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं।

Anonymous said...

राजेश भाई के बारे में पहली बार कुछ जाना। उनके बारे में जानकारी देते रहिएगा। वे जहां भी रहेंगे वहां की अमूल्‍य परिसम्‍पत्ति बन कर रहेंगे।


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तारीखों में रहता है इतिहास