Monday, February 09, 2009

फिर पिटा फोटोग्राफर

मीडिया नहीं दे सका खुलकर साथ, फोटोग्राफर पर हमला करने वाले वकीलों के खिलाफ नहीं हुई कार्रवाई
उज्‍जैन। अभी पांच दिन ही बीत हैं जब बीबीसी की एक खबर ने भारत के पत्रकारों और के साथ दुनिया भर में पत्रकारिता के पेशे से जुड़े लोगों को चिंता में डाल दिया था। उस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में पत्रकारों और फोटोग्राफरों पर हमले के मामले में 2008 में पाकिस्तान दूसरे और भारत तीसरे नंबर पर रहा है। जबकि इराक नंबर वन के पायदान पर रहा है। तो रही बीबीसी की रिपोर्ट, लेकिन ये रिपोर्ट तब सच जान पढती है जब प्रदेश के नंबर एक अखबार के एक फोटोग्राफर शाहिद खान के उपर भरी अदालत में वकीलों द्वारा हमला किया जाता है। ये वही शाहिद खान हैं जो संवेदनशील स्थिति में फोटो खींचकर लाते हैं और सुबह लोग उनके फोटो देख अपने दिन की शुरूआत करते हैं। इनकी पिटाई होने के बाद स्‍‍थानीय अखबारों में बडी-बडी खबरें प्रकाशित हुई मगर वकीलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
जिन अखबारों में खबरें प्रकाशित हुई उनमें दैनिक भास्‍‍कर, सांध्‍‍‍यदैनिक अग्निबाण, दैनिक अवंतिका, दैनिक अग्निपथ और राज एक्‍सप्रेस शामिल हैं। लेकिन शाहिद खान के लिए मीडिया ने बहुत
ज्‍‍यादा हंगामा मीडिया कर्मियों ने किया हो ऐसा कहीं दिखाई नहीं दिया। ये घटना है 3 फरवरी को दोपहर साढे 12 बजे की जिस पूरे मध्‍यप्रदेश में वकीलों धारा दं‍ड विधान(सीआरपीसी) की धाराओं में संशोधन को लेकर एसोसिएशन ने कलमबंद हडताल की थी और सभी वकील कोठी पैलेस गए हुए थे। उनके पहले अपने दायित्‍व को ध्‍यान में रखकर उज्‍जैन के सभी पत्रकार और प्रेस फोटोग्राफर कोठी पैलेस पहले ही पहुंच गए थे। इसी दौरान एक वकील ने शाहिद से कहा कि हमारा भी फोटो भी खींच लिया करो तो उसके जबाव में शाहिद ने कहा कि आप भी नेता बन जाए तो हम फोटो खींच लेंगे। बस इतना कहना शाहिद को भारी पड गया और शाहिद और मनोज में विवाद हो गया। विवाद इतना बढा कि वकील शाहिद के साथ हाथापाई करने लगे। वहां मौजूद पत्रकारों ने उन्‍हें अलग किया। इसके बाद वकीलों ने शाहिद खान के खिलाफ भी एक आवेदन दिया और शाहिद को अदालत में घसीटने की धमकी दी। इस पूरे मामले में मीडिया कर्मियों ने शाहिद के पक्ष में जिस प्रकार खुलकर समर्थन करना चाहिए था,नहीं किया। आज शाहिद के सामने दिक्‍कत यह है कि वह अगर वकीलों से समझौता नहीं करता है तो वे उसे अदालत में ले जाने की बात करते हैं और और अगर वह ऐसा करता है तो यह स्‍वयं के प्रोफेशन के साथ्‍ा नाइंसाफी होगी। बीबीसी की रिपोर्ट हमें बताती है कि हम पाकिस्‍तान से पीछे नहीं है मनमानी करने में और यह घटना बताती है कि एक मीडिया कर्मी भी कितनी मुश्किलों में काम करता है।

1 comment:

विष्णु बैरागी said...

समाचार लज्‍जाजनक भी है और चिन्‍ताजनक भी। उज्‍जैन के मीडीयाकर्मी इस गम्‍भीर घटना पर एकमत होकर शाहिद के बचाव में ख्‍रुलकर सामने नहीं आए। यह अपने आप में लज्‍जाजनक है। उन्‍हें याद रखना चाहिए कि वे एकजुट नहीं रहेंगे तो चुन-चुन कर मारे जाएंगे। आज शाहिद पिटा है, कल कोई और पिटेगा।
आपकी पोस्‍ट पढ कर लग रहा है कि शाहिद को समझौता करना पडेगा। यदि ऐसा न हो और उज्‍जैन के मीडीयाकर्मी यदि कोई धरना/अनशन करते हों तो मैं उसमें शामिल होना पसन्‍द करूंगा।
मैं शाहिद के साथ हूं।


हर तारीख पर नज़र

हमेशा रहो समय के साथ

तारीखों में रहता है इतिहास