Friday, February 06, 2009

पुलिस भई दादा,कोई नई केने वाला

12 साल के लड़के पर शांति भंग का मामला!
अभी छह वर्षीय बालिका को पुलिस द्वारा पीटने का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि उत्तरप्रदेश के सहारनपुर जिले में पुलिस ने एक 12 वर्षीय बच्चे पर शांति भंग की धारा लगाकर एकबार फिर अपनी किरकिरी कराई है। अब इस मामले के लिए जिम्मेदार थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया गया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि एक बाद एक ऐसी घटनाएं क्‍यों हो रही हैं। इस मामले में दो पक्ष सामने आ रहे हैं। एक पक्ष का कहना है कि पुलिस अगर कोई कार्रवाई कर रही है तो उसे मीडिया में इस प्रकार विलेन बनाकर अपमानित नहीं करना चाहिए। लेकिन दूसरे पक्ष का कहना है कि पुलिस को कोई अधिकार नहीं है कि वह बिना जांच के किसी के भी खिलाफ कोई प्रकरण दर्ज करे और वह भी बच्‍चों के मामले में तो बिल्‍कुल नहीं। यहां में कुछ ऐसे उदाहरण देना चाहुंगा जिससे दूसरे पक्ष की बातें सही लगती है।

प्रकरण क्‍यों दर्ज नहीं किया-भोपाल के दो अलग-अलग थानों में दो मामले आए जिनमें से पहला मामला था एक अनुसूचित जाति की महिला का। महिला एक सरकारी कार्यालय में अस्‍थायी पद पर काम करती थी लेकिन उसका अधिकारी उसे बहुत ज्‍यादा परेशान करता था। यहां तक की वह उस महिला को सार्वजनिक रूप से अपमानित भी कर चुका था। बहुत ज्‍यादा परेशान होने के बाद महिला ने अजाक थाना कोहेफिजा में शिकायत की और दो गवाह भी प्रस्‍तुत किए। लेकिन पुलिस वालों ने उसके सबूतों को नकारते हुए मामले में ढील बरती और शिकायत के दो माह बाद भी एफआईआर नहीं की। क्‍योंकि जिसके खिलाफ महिला ने उक्‍त आरोप लगाए थे वह एक अधिकारी है। तो सवाल यह उठता है कि क्‍या कोई अधिकारी है तो उसे अपराध करने का पूरा मौका मिल जाता ?

प्रकरण भी दर्ज किया और जेल भी भेज दिया-दूसरा मामला भोपाल के गांधीनगर थाने का है, जहां महेश नामक एक युवक के खिलाफ उसके ससुराल वालों ने थाने में शिकायत की। शिकायत में आरोप लगाए गए कि उनके दामाद महेश ने उनकी बेटी की दहेज के लिए हत्‍या कर दी इसलिए उसके खिलाफ दहेज हत्‍या और दहेज मांगने का प्रकरण दर्ज किया जाए। पुलिस ने मामले में आनन-फानन में महेश के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर उसके अगले दिन उसे न्‍यायालय में पेश कर रिमांड पर ले लिया। जबकि महेश की पत्‍नी ने क्षेत्रीय नायब तहसीलदार को मरते समय बयान दिया था कि उस मौत की वजह वह स्‍वयं है और खाना बनाते समय स्‍वयं की गलती से वह झुलस गई। इसलिए उसके ससुराल वालों को परेशान न किया जाए। इस पूरे बयान को दरकिनार कर पुलिस ने महेश पर दादागिरी दिखाई क्‍योंकि वह ऐसा युवक था जो न तो पुलिस की मुठ़ठी गरम कर सकता था और न ही उसके पक्ष में कोई बोलने वाला था। इन दो उदाहरणों से पुलिस का दोगलापन साबित हो जाता है। शायद यही वजह रही कि उत्तरप्रदेश के सहारनपुर जिले में पुलिस ने एक 12 वर्षीय बच्चे पर शांति भंग की धारा लगाई। अफसोस बहुत अफसोस।

एक नजर में उत्‍तरप्रदेश का समस्‍त घटनाक्रम
पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) आरके. रघुवंशी ने शुक्रवार को मामले को संज्ञान में लेते हुए सरसावा थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया गया है। बच्चे के खिलाफ लगाई गई धारा समाप्त करने की कार्रवाई की जा रही है। सरसावा थाना प्रभारी ने कुतुबपुर गांव के तहसीन नामक एक 12 वर्षीय बच्चे पर शांति भंग का आरोप लगाया और उसे दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा- 107/16 के तहत निरुद्ध कर दिया। इसके बाद मामले की रिपोर्ट उप जिलाधिकारी को भेज दी। उप जिलाधिकारी ने बच्चे के खिलाफ सम्मन जारी कर दिया। शुक्रवार को उप जिलाधिकारी के यहां न्याय की गुहार लगाने गए बच्चे के पिता नजरा ने संवाददाताओं को बताया कि पुलिस ने गलत तरीके से उनके बेटे को फंसाया है। नजरा ने कहा कि जब उनके घर सम्मन आया तो उन्हें पुलिस की इस कार्रवाई की जानकारी हुई। घटना के बाद से ही बच्चा सदमे में है। वह बहुत डरा हुआ है।

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1 comment:

अनिल कान्त said...

और करवा भी क्या सकती है .....

अनिल कान्त
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