कभी सुनील मंडीदीप में पत्रकारिता करता था और लोकल राजनेता से लेकर अन्य लोगो की जान हुआ करता था लेकिन आज उनमे से लगभग सभी ने सुनील से दूरी बना ली है। सुनील कहता है की जिन्दगी है वेवफा एक दिन ठुकराएगी। वह कहता है की खबर बनाना ठीक है लेकिन खबर बनना ठीक नही और ओह भी ऐसे।
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Monday, October 27, 2008
ख़बर करना ठीक, ख़बर बनना नही
हँसता मुस्कुराता २८ वर्षीय नौजवान सुनील यादव अपने चेहरे से किसी को ये अहसास तक नही होने देता है की उसे ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारी है, लेकिन एसा सच में है। यह सुनील कोई और नही बल्कि मीडिया का एक सिपाही है जो जिन्दगी के सबसे बडे अभिशाप गरीबी के साथ बीमारी से भी जूझ रहा है। थोड़े दिन पहले दैनिक भास्कर के लिए मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में अपनी खबरों से धूम मचाने वाला सुनील आज मदद की आस में भटक रहा है। लेकिन उसने हिम्मत नही हारी है और आज भी अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन बखूबी कर रहा है। जुलाई 2008 में सुनील के ब्रेन ट्यूमर का आपरेशन भोपाल मेमोरियल अस्पताल में हुआ और डॉ ने भरोसा दिलाया की वह ठीक हो जाएगा लेकिन उसके सपनो को उस वक्त झटका लगा जब उस ये मालूम हुआ की उस एक और ब्रेन ट्यूमर है किसका आपरेशन संभव नही है। बीमारी और कमजोरी के चलते उसे घर बैठना पड़ रहा है और अपनों ने उससे मुंह मोड़ लिया है। सुनील मंडीदीप के पास सतलापुर का रहने वाला है और उसके पिता व् भाई एक कंपनी में काम करके जेसे तैसे घर चलते है। पहले हुए आपरेशन में एक लाख रूपये लग चुका है और इलाज के लिए फ़िर एक लाख से भी ज्यादा की जरूरत उसे है। सुनील जिन्दगी तो जी रहा है लेकिन दिन गिन-गिनकर। अब तक मदद के लिए कोई हाथ आगे नही आए हैं।
Saturday, October 25, 2008
माइक पर भारी डंडा
भोपाल के पत्रकारों ने कभी नही सोचा था की उनके ऊपर पुलिस के डंडे बरसेंगे और वे कुछ कर भी नही पायेंगे। लेकिन ऐसा हुआ है और वह भी तब जब पत्रकार सपा नेता अमरसिंह को कवर करने गए थे। अब समझ नही आता की पत्रकारों को अमरसिंह को कवर करने की सजा मिली है या पुलिस ने इस बात का अहसास दिलाया है की अब आचार संहिता लग गई है और अब माइक की जगह डंडे का बोलबाला होगा। इंडिया टीवी के पत्रकार अनुराग उपाध्याय तो पूरे दिन अस्पताल से बहार नही आ सके। वही बीटीवी के कैमरामेन इकबाल आज भी अपने हाथ पर लगे पुलिस के डंडे की दास्ताँ अपने साथियों को सुना रहे है और उस दिन को कोस रहे हैं जब वे अमर सिंह को कवर करने एअरपोर्ट गए थे। इस घटनाक्रम के बाद पुलिस के आला अधिकारियो ने दो पुलिस वालों को सस्पेंड कर इतिश्री कर दी लेकिन क्या इससे पत्रकारों के जख्मो पर मरहम लग जायेगा। प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियों ने भी बहुत ज्यादा तवज्जो इस मामले को नही दी और हालचाल पूछकर अपने होने का अहसास करा दिया। सबसे ज्यादा असंवेदनशीलता अगर किसी ने दिखाई है तो वह हैं टीवी चेनल जिन्होंने अपने ही चेनल में काम करने वाले पत्रकारों की ख़बर को तवज्जो नही दी। इसकी एक वजह तो जान्हवी दुबे ने bhadas4media पर अमर सिंह को कवर करने जाओ तो हेलमेट पहनो बता दी है और इसकी दूसरी वजह मध्य प्रदेश के पत्रकारों के प्रति पक्षपात वाला मामला लगता है। इसमे कोन सी बात सही है ये चेनल वाले ही जाने लेकिन पत्रकारों पर लगातार हमले सोचने पर जरूर majboor करते हैं
Friday, October 24, 2008
अमां हम क्यों खामोश रहे
क्या सूरमा भोपाली खुश होंगे
sholy फ़िल्म में जितने भी पात्र थे वे सभी लोकप्रिय हुए लेकिन सूरमा भोपाली ने अपनी अलग जगह बनाई लेकिन वे आज दुखी होंगे क्योंकि जब इस ब्लॉग को बनाना शुरू किया तो लोगो ने कहा की इसका नाम भोपाली शब्द से मत जोड़ना और वजह बताई भोपाली शब्द को इज्ज़त की नजरो से न देखा जाना। क्या भोपाली शब्द इतना गया गुजरा है की उसके नाम से ब्लॉग नही बना सकते। रतलाम के रवि, रवि रतलामी नाम से ब्लॉग बनाते है और वह पुरे देश में हिट होता है लेकिन भोपाल का रहने वाले कहते है की में भोपाली शब्द का इस्तेमाल न करूँ। क्यों न करू भोपाली शब्द का इस्तेमाल, मेरे भोपाल ने गैस हादसे को सहा और आज उससे उबरकर विकाश के चरम की और बढ रहा है। अगर किसी को भोपाली शब्द से नफरत है तो वह भोपाल क्यों नही छोड़ देता। क्या आप बिहारी कहलाना पसंद करोगे जहाँ खुलेआम हिंसा होती है, क्या आप मराठी कहलाना पसंद करोगे जहाँ किसी और को रहने का अधिकार नही दिया जाता। कोई प्रदेश या जाती ख़राब नही होती है ये तो माहोल बनाया जाता है।
भोपाल को सलाम
आज हम भोपाल की तारीफ़ करते नही थकते क्योंकि ये तालो का शहर है लेकिन तालो के लिए भोपाल की तारीफ़ करने के बजाय उसकी जिजीविषा के लिए यहाँ के लोगो की तारीफ़ करना चाहिए ऐसा हुआ भी है, लेकिन अपने ब्लॉग पर में उनको सलाम न करू जिन्होंने विश्व की सबसे भीषण त्रासदी में अपनी जान खोई और इस हादसे में जिन्होंने सीधे यमराज से भिड़ने का जज्बा दिखाया, तो ये सरासर बेईमानी होगी
भीम सिंह\जाहिद मीर
आज हम भोपाल की तारीफ़ करते नही थकते क्योंकि ये तालो का शहर है लेकिन तालो के लिए भोपाल की तारीफ़ करने के बजाय उसकी जिजीविषा के लिए यहाँ के लोगो की तारीफ़ करना चाहिए ऐसा हुआ भी है, लेकिन अपने ब्लॉग पर में उनको सलाम न करू जिन्होंने विश्व की सबसे भीषण त्रासदी में अपनी जान खोई और इस हादसे में जिन्होंने सीधे यमराज से भिड़ने का जज्बा दिखाया, तो ये सरासर बेईमानी होगी
भीम सिंह\जाहिद मीर
इनका अंदाज निराला है
ये जाहिद मीर
जब डीबी स्टार शुरू हुआ था तो में राज एक्सप्रेस में था और हर दिन डीबी स्टार पड़कर लगता था की कोन है ये जाहिद मीर जो इतना बिंदास होकर काम करता है जब १ जुलाई को मैने डीबी स्टार में काम शुरू किया तो जाहिद मीर के साथ कम किया और लगा की वाकई जाहिद भाई को फोटो जर्नलिस्ट कहलाने का haqdaar है वे न केवल एक अच्छे फोटोग्राफर है बल्कि एक अच्छे इन्सान भी है ये में इसलिए नही लिख रहा हूँ की मेरे साथ ब्लॉग में सहयोग करेंगे बल्कि में यहाँ इस बात का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ की ब्लॉग अभिव्यक्ति का मंच है और हम अक्सर अपनों की खूबियों को बयान नही करते है जाहिद भाई में एक पत्रकार बनने की सारी संभाvanaa hai lekin ve ispar dhyan nahi dete
भोपाल के लिए कुछ भी करेगा
नमस्कार
स्वागत है आपका भोपाल के इस bheembhopali ब्लॉग पर जिसमे मिलेगा आपको भोपाल की उन शाख्सियितो से रूबरू होने का मोका जो अपने दिलो में रखते है अपने तालो के ताल भोपाल के लिए जज्बा
इनमे शामिल होंगे शहर के तमाम लोग fir chahe ve shayar ho, polition ho ya fir ho adhikari is abhiyan me मेरा साथ देंगे रतलाम से भोपाल आए जाहिद मीर, वे अपनी खूबसूरत तस्वीरों से आप तक लायेंगे हकीकत को सामने
तो तैयार हो जाइये उन लोगो से मिलने के लिए जो न केवल बताते है समस्या बल्कि सुझाते है रास्ता
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