- खबर है कि मध्य प्रदेश सरकार ने अपने यहां पाठ्यपुस्तकों से सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता से वह एक लाइन हटवा दी है जिससे सिंधिया राजघराने के अंग्रेजों के मित्र होने का पता चलता है, जिससे पता चलता है कि सिंधिया राजघराने ने रानी लक्ष्मीबाई का नहीं बल्कि अंग्रेजों का साथ दिया था, जिससे पता चलता है कि सिंधिया राजघराने ने आजादी के आंदोलन के दिनों में गद्दारी की थी और गोरों का साथ दिया था.
- आजादी के बाद इन्हीं सिंधियाओं ने चोला बदलकर कांग्रेस से लेकर भाजपा तक की टोपी पहन ली और सत्ता-सिस्टम के पार्ट बन गए.
- चूंकि मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है और भाजपा में ज्यादातर राजे-रजवाड़े-सामंत किस्म के लोग ही नेता, सांसद, मंत्री बनते हैं, सो लगता है कि सिंधिया राजघराने के नए नेताओं ने शिवराज सरकार को प्रभाव में लेकर अपनी बदनामी वाली कहानी को डिलीट करा दिया है. यहां कविता की वो लाइन बोल्ड में दी जा रही है जिसे पाठ्यपुस्तक से हटाया गया है...
- रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - तो मध्य प्रदेश के बच्चे सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता झांसी का रानी में इस लाइन ''अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी'' को नहीं पढ़ेंगे क्योंकि वहां की सरकार ने इसे हटवा दिया है. सोचिए, कितने नीच लोग हैं. अगर कविता पसंद नहीं है तो पूरा का पूरा हटा दो. या पसंद है तो पूरा का पूरा लगा लो. ये क्या कि उसमें छेड़छाड़ कर देंगे. यह घोर अपराध है और इसके लिए शिवराज सरकार की निंदा का जानी चाहिए. जनसत्ता को यह खबर छापने के लिए बधाई. अब आप सुभद्रा कुमारी चौहान लिखिति झांसी का रानी कविता का पूरा पाठ कीजिए... और सिंधियाओं के साथ साथ शिवराजों पर भी थू थू करिए...
- यशवंत
- एडिटर, भड़ास4मीडिया
- yashwant@bhadas4media.com
झांसी की रानी
- -सुभद्राकुमारी चौहान-
- सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। - चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी। - वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़| - महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में, - चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई। - निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया। - अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया। - रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात। - बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'। - यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान। - हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी, - जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम। - लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में। - ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार। - अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी। - पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार। - घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी, - दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी। - तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। - साभार-भड़ास4मीडिया
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Wednesday, July 06, 2011
सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता से वह एक लाइन हटवा दी है जिससे सिंधिया राजघराने के अंग्रेजों के मित्र होने का पता चलता है,
मैंने ही कार बदल ली और खुद ही थाने में शिकायत कर दी...
- जिंदगी में कई बार ऐसे पल आते हैं जिनकी आप सपनों में भी उम्मीद नहीं करते हो। ऐसा ही कुछ मेरे साथ आज हुआ जिसे में शेयर किए बिना नहीं मान सकता-
- ...रोज की तरह आज भी ऑफिस का काम निपटा कर कवरेज पर निकल गया। करीब ढाई बजे नगर निगम के दफ्तर पहुंचा और वहां कमिश्नर से मुलाकात की। मोबाइल पर कॉल आने का सिलसिला बदस्तूर जारी था। करीब चार बजे नगर निगम के छह नंबर स्थित दफ्तर पहुंचा और अपनी 800 मारुति कार को दफ्तर के सामने ही पार्क कर बिल्डिंग के भीतर चला गया। वहां जिन अधिकारियों से मिलना था उनसे मिलकर नीचे उतरा। इस दौरान मेरी मोबाइल पर लगातार बात चल रही थी। मैंने कार के गेट में चाबी लगाई और सीधा दैनिक भास्कर दफ्तर के लिए रवाना हो गया।
- डीबी मॉल के पास आकर सोचा कि क्यों न कांग्रेस कार्यालय और हो आऊं, क्योंकि वहां से दो स्टोरी कलेक्ट करना थी। यह सोचकर व्यापमं और मंत्रालय होता हुआ लिंक रोड एक स्थित कांग्रेस कार्यालय पहुंचा। वहां अपनी कार पार्क कर कार्यालय की दूसरी मंजिल पर चला गया। अब तक सब कुछ सामान्य था। कार्यालय में मैंने पूर्व प्रवक्ता जेपी धनोपिया और नवनियुक्त महामंत्री कटियार साहब से मुलाकात की।
- करीब 15 मिनट की मुलाकात और मोबाइल नंबरों का आदान-प्रदान कर नीचे आ गया।
- जैसे ही कांग्रेस कार्यालय की सामने की पार्किंग में पहुंचा तो अपनी कार गायब देखकर हैरत में पड़ गया। चारों तरफ देख ली। हैरत तो इस बात की हो रही थी कि जिस जगह मैंने अपनी कार पार्क की थी वहां सफेद रंग की एक दूसरी 800 मारुति कार कैसे खड़ी। गौर से देखने पर समझ में आया कि यह कार तो मैंने ही पार्क की है। तब मुझे पता चला कि मैं अपनी बजाय किसी और की कार ले आया। हैरत तो इस बात पर भी हुई कि दूसरी कार में मेरी कार की चाबी कैसे लगी और यहां तक मैं कैसे उसको बिना पहचाने ले आया। जब कार को दोबारा खोला तो देखा कि वह 2003 की कार है और बेहद कंडम स्थिति में है। फिर मुझे लगा कि शायद किसी ने मेरी कार चुरा ली है और उसकी जगह यह पुरानी कार खड़ी कर गया। यह विचार आते ही मैंने क्षेत्रीय सीएसपी राजेश भदौरिया को कॉल कर पूरी स्थिति से अवगत कराया। पूरी बात अपने छोटे भाई ओमवीर को भी बताई और मेरे मित्र राजू मीणा को भी बताई। तो दोनों तत्काल मौके पर पहुंच गए। काफी सोच विचार करने के बाद हम लोग छह नंंबर पहुंचे तो वहां अपनी कार को खड़े पाया तब समझ में आया कि मैं ही दूसरी कार उठा लाया था। तब मैंने फिर से स्थिति से सीएसपी भदौरिया को अवगत कराया, क्योंकि अब समस्या यह थी कि कहीं असली मालिक थाने में एफआईआर न करा दे। ऐसा विचार आते ही हम लोगों ने कार में मालिक के नंबर ढूंढना शुरू किए। नंबर तो नहीं मिला, लेकिन एक शादी का कार्ड और इंश्योरेंस पॉलिसी मिल गई जिसमें कार मालिक का नाम लिखा था। यहां पत्रकारों वाला दिमाग काम आया और मैंने कार्ड के ऑनर को कॉल कर कार मालिक का नाम बताकर उनका नंबर ले लिया। नंबर मिलते ही कॉल किया तो कार मालिक श्रीमान सीएन सक्सेना साहब हबीबगंज थाने में एफआईआर कराने के लिए बैठे थे। और ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब उनके साथ भास्कर के ही वरिष्ठ पत्रकार श्री अलीम बज्मी साहब भी बैठे थे। मैंने उनसे बात कर सारी स्थिति से अवगत कराया और छोटे भाई को उन्हें लेने के लिए थाने भेजा। करीब दो घंटे तक चली धमा-चौकड़ी को आखिरकार विराम मिला और कार अपने असली मालिक के पास पहुंच गई।
- ...और यह सब हुआ माननीय मोबाइल महोदय के कारण जिनपर बात करते-करते अपनी बजाय दूसरी कार उठा ली थी।
- भीम सिंह मीणा, रिपोर्टर दैनिक भास्कर
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