चेहरे को अब न ढांप मुझे डूबते भी देख
-शकेब जलाली
ठीक एसा ही कह रही थी वे बंद आँखे जब लोग उनका अन्तिम दर्शन करने आ रहे थे। क्या लगता? क्या उम्र के क़दमों ने साथ छोड़ दिया था इसलिए हबीब साहब हमसे दूर चले गए। या फ़िर उस कमबख्त अस्थमा ने उन्हें हमसे छीन लिया। हो सकता है ये सभी कारण हो सकते हैं उनके हमारे बीच से चले जाने के, लेकिन एक कारण मैं भी जानता हूँ। वह कारण जिसने न केवल उनको हमसे दूर किया बल्कि हबीब साहब के सपने को भी तोडा हैं। जी हाँ हबीब साहब
का एक सपना था की वह कलाकारों के लिए मध्यप्रदेश में एक नया थियेटर बनाये, जिसमे एक ही छत के नीचे कलाकारों के लिए वे सभी सुविधा हो जो एक आम कलाकारों को नही मिल पाती है। जिस पीड़ा को हबीब साहब दूर करना चाहते थे वह पीड़ा कभी न कभी उन्होनें ख़ुद झेली है। खेर मैं बात कर रहा हूँ उनके सपने की।
दिल्ली का सपना भोपाल में भी पुरा न हो सका
दरअसल हबीब साहब जो नया थियेटर बनाना चाहते थे उसके लिए केन्द्र और राज्य सरकार से वे लंबे समय से मांग कर रहे थे। उनको वर्ष 2000 के पहले दिल्ली के बेग्सरय में जमीन दी गयी थी। लेकिन बाद में जब खेल गाँव की बात चली तो उनसे वह जमीन छीन ली गयी, लेकिन हबीब साहब ने हार नही मानी और अपने संघर्ष को जारी रखा। उन्होंने अपनी मांग और योजना के बारे में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह को
भी बताया। दिग्विजयसिंह ने वर्ष 2000 में राजधानी भोपाल के पास बावडियाकलां में 0.60 एकड़ जमीन आवंटित कर दी। हबीब साहब अपनी व्यस्ताओं के चलते उस जमीन पर नया थियेटर का काम शुरू नही कर सके। इस बात का फायदा उठाकर एक स्थानीय भू-माफिया ने उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया। मामला स्थानीय अदालत तक गया और वर्ष 2005 में अदालत ने हबीब साहब के पक्ष में फ़ैसला सुनाया। इसके बाद हबीब साहब और उनके शागिर्दों ने मिलकर उस जमीन पर नया थियेटर यानी ग्लोबल वर्कशॉप बनने का काम शुरू करने की तैयारी कर ली। इस दौरान हबीब साहब फ़िर से अपने नाटकों में व्यस्त हो गयी और एक बार फ़िर नया थियेटर बनने की बात आई गई हो गयी। इसके बाद जून 2008 में हबीब साहब को मालूम चला की उनकी जमीन पर लगे पदों
को कटा जा रहा है तो वे व्यथित हो गए मामले की सुचना राजधानी के शाहपुरा थाने में दी, लेकिन वहां से केबल आश्वासन मिला। जब कलेक्टर मनीष रस्तोगी को ये बात पता चली तो उन्होंने तत्काल मामले में हस्तक्षेप किया और कब्जे धारीओं के वहां से हटाया। आखिकार सरकार से उम्मीद बंधी लेकिन वह भी फौरी निकली और फ़िर से वही ढाक के तीन पात वाला मामला हो गया। बीच में कई बार सरकार को चेताया-बताया लेकिन उनके सपने से किसी ने सरोकार नही जताया और आख़िर वो दिन भी आगे जब हबीब अपने टूटे सपने के साथ दुनिया से विदा हो गए। शायद हबीब साहब को अपने अन्तिम समय
का भानहो गया था, इसलिए उन्होंने एक माह पहले ही नया थियेटर के लिए के समिति गठित कर दी। जिसमे शायर मंजूरे एहतेशाम, कवि और लेखक कमला प्रसाद व राजेन्द्र सिंह समेत शामिल किया। अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है की जब हबीब साहब ख़ुद अपने सपने कोई पूरा नही कर सके तो क्या कोई और कर पायेगा। संभवत हम इसका जवाब हाँ में चाहेंगे , लेकिन इसकी गूंजाइस कम है। हाँ ये सकता है अगर हबीब साहब के तमाम शागिर्द व अन्य कलाकार मिलकर सरकार के पीछे लग जाए।
गौरतलब है की जब मध्य प्रदेश में सन दो हजार तीन में पोंगा पंडित और लाहौर का मंचन शुरु हुआ तो भगवा ब्रगेड के कार्यकर्ताओं ने जमकर विरोध प्रदर्शन कर इन दोनों नाटको के मंचन को रुकवाने की कोशिश की । लेकिन हबीब की जिजीविषा पर कोई असर नहीं हुआ और अपने नाटकों के माध्यम से वो अलख जगाते रहे, बगैर डरे, बगैर घबराए । रंगमंच की इस महान विभूति को हमारी श्रद्धांजलि ।
No comments:
Post a Comment